आम आदमी की जिंदगी की कहानी है फिल्म ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है?’
फिल्म का नाम : ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है?’
फिल्म के कलाकार : मानव कौल, नंदिता दास, सौरभ शुक्ला, किशोर कदम और अन्य
फिल्म के निर्देशक : सौमित्र रानाडे
रेटिंग : 3/5
निर्देशक सौमित्र रानाडे के निर्देशन में बनी फिल्म ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है?’ कई साल पहले यानि सन् 1980 में निर्देशक सईद अख्तर मिर्ज़ा की फिल्म ‘‘अल्बर्ट पिंटो…..गुस्सा’’ की रीमेक है। उस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी लीड रोल में थे। अब 2019 में फिल्म का नाम वही है लेकिन किरदार और निर्देशक सब अलग हैं। जानते हैं फिल्म की कहानी के बारे में…….
फिल्म की कहानी :
अल्बर्ट पिंटो (मानव कौल) एक मिडिल क्लास आदमी है। जिसकी अभी तक शादी नहीं हुई है। उसकी एक गर्लफ्रेंड है जिसका नाम स्टेला (नंदिता दास) है। अल्बर्ट पिंटो के पिता भ्रष्टाचार के आरोप में सस्पेंड कर दिए जाते हैं। वो एक ईमानदार कर्मचारी हैं और उन्हें यह बात बर्दाश्त नहीं हो पाती तो वह खुदकुशी कर लेते हैं। इस बात को लेकर अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा आता है और वो निकल पड़ता है बदला लेने के लिए। उसकी गर्लफ्रेंड उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाती है। इस बीच अल्बर्ट एक साथी (सौरभ शुक्ला) के साथ रहता है। बीच-बीच में फ्लैशबैक में उसकी कहानी दिखाई जाती है। अल्बर्ट के परेशानी की मुख्य वजह उसका दिमाग है। पिता की मौत के बाद उसे इतना बुरा सदमा लगता है कि जब खुद के बच्चा होने की बात होती है तो वो भड़क जाता है और कहता है इतने भ्रष्ट और खराब दुनिया में बच्चे को लाने की जरूरत नहीं है।
उसे देश का हर मिडिल क्लास आदमी कौवे जैसा ही लगता है। उसे जब गरीब लोग खुश और हंसतेे दिखाई देते हैं तो उसे अजीब लगता है कि ये लोग इतने खुश क्यों हैं? उसे लगता है यह दुनिया जल रही है। अल्बर्ट हमेशा गुस्से में ही रहता है। क्या आगे वह अपने गुस्से पर काबू कर पाता है, क्या वह अपने पिता के खुदकुशी का बदला ले पाता है? आगे क्या होता है, यह सब जानने के लिए आपको सिनेमाघर का रूख करना होगा।
निर्देशक सौमित्र की यह फिल्म हर उस आम आदमी की कहानी से रिलेट करती है जो ईमानदारी की जिंदगी जीता है, टैक्स देता है लेकिन फिर भी परेशान रहता है इसलिए उसे गुस्सा है। वह अपने गुस्से और अपनी बदहाली का कारण सिस्टम को मानता है। फिल्म में कोई मसाला नहीं है, कोई तड़कता-भड़कता गाना नहीं है। सीधी सी कहानी है इसलिए इसकी रफ्तार धीमी है।
बात करें कलाकारों की अदाकारी की तो फिल्म में मानव कौल ने एक आम आदमी के किरदार को जिया है, मानव ने बहुत उम्दा एक्टिंग की है, दिन पर दिन उनकी एक्टिंग बेहतर होती जा रही है। नंदिता दास ने हमेशा से ही अपनी अदाकरी से अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया है। कहने का मतलब है कि उनकी अदाकारी कमाल की है। हल्के-फुल्के अंदाज़ में सौरभ शुक्ला कॉमेडी टाइमिंग ज़बर्दस्त है। अपनी एक्टिंग से वो हमेशा ही दर्शकों का दिल जीत लेते हैं। नंदिता दास का काम भी हमेशा की तरह बेहतरीन था।
फिल्म क्यों देखें? : यह आम आदमी की कहानी है कि आम आदमी अपनी खुशियों के लिए कितना कुछ करता है लेकिन फिर भी सिस्टम के हाथों मजबूर होकर हैरान और परेशान रहता है। फिल्म ठीक है, एक बार देखने में कोई बुराई नहीं है।