संपादकीय

बोल भारत (कविता)

बोल भारत तूने क्या देखा?
श्रृंगार-रस के गहनों में नारी को देखा,
प्रेम-रस की ग़ज़ल में नारी को देखा,
वीर-रस के छंद में नारी को देखा।
बोल भारत तूने क्या देखा ?

यशोदा की ममता में नारी को देखा,
सरस्वती की वीणा की तान में नारी को देखा,
दुर्गा-मां के नौ-रुप में नारी को देखा ।
बोल भारत तूने क्या देखा?

कुतुबमीनार की ऊंचाई में नारी को देखा,
जगन्नाथ की परछाईं में नारी को देखा,
ज्वाला देवी की तपन में नारी को देखा,
बोल भारत तूने क्या देखा?

बैलों की घंटियों के स्वर में नारी को देखा,
पत्तियों पर अलसाई शबनम की बूंद में नारी को देखा,
दुल्हन बनी प्रकृति के रूप में नारी को देखा,
बोल भारत तूने क्या देखा?

मां गंगा की निर्मल धार में नारी को देखा,
हनुमानजी की संजीवनी में नारी को देखा,
गौतम बुद्ध के शांति घोष में नारी को देखा।
बोल भारत तूने क्या देखा?

पद्मावत के जौहर में नारी को देखा,
लक्ष्मीबाई की कटार में नारी को देखा,
हाड़ा रानी के कटे शीश में नारी को देखा।
बोल भारत तूने क्या देखा?

कल्पना चावला की उड़ान में नारी को देखा,
चांद पर फहराते तिरंगें की शान में नारी को देखा,
छलनी हुई लाजवंती द्रोपदी के चीर में नारी को देखा।
बोल मानव फिर तूने क्या किया?

क्यों जिस्मों की मंडी में नारी का व्यापार किया?
क्यों पैसों के तराजू पर बाट नारी का‌ चढ़ाया?
क्यों परम्पराओं की वेदी पर नारी को स्वाहा‌ किया?
बोल मानव ये तूने क्या किया?

बाबुल के आंगन की दहलीज में नारी को देखा,
जवान के सिंदूरी लहू में नारी को देखा,
काला के‌ कपाल‌ पर लिखे सुखमंत्र में नारी को देखा।

बोल भारत तूने क्या देखा।

-शिखा अग्रवाल
1-एफ – 6, शास्त्रीनगर, ओल्ड हाउसिंग बोर्ड,भीलवाड़ा

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