संपादकीय

राजस्थान में आपसी कलह से हारी कांग्रेस

-रमेश सर्राफ धमोरा
सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार (झुंझुनू, राजस्थान)

राजस्थान विधानसभा चुनाव में लोगों को जैसी अपेक्षा थी उसी के अनुरूप चुनाव परिणाम देखने को मिले हैं। पिछले पांच विधानसभा चुनाव से प्रदेश में हर बार राज बदलने की परंपरा छठी बार भी कायम रही है। अशोक गहलोत के लाख प्रयासों के उपरांत भी कांग्रेस पार्टी प्रदेश में हर बार सत्ता बदलने का रिवाज नहीं बना बदल पाई और सत्ता गंवा दी। राजस्थान के मतदाताओं ने भाजपा की भारी बहुमत से ताजपोशी की है ताकि अगले पांच साल तक वह बिना किसी बाधा के राज कर सके।
प्रदेश में भाजपा 115 सीटों के पर्याप्त बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। वहीं कांग्रेस का आंकड़ा 108 से घटकर 69 सीटों पर ही सीमट गया है। प्रदेश के मतदाताओं ने तीसरे मोर्चे के नाम पर नेतागिरी कर रहे बड़बोले नेताओं को भी चुनाव में उनकी जगह दिखा दी है। बहुजन समाज पार्टी मात्र दो सीटों पर सीमट गई। वहीं सत्ता की चाबी अपने हाथ में होने का दावा करने वाले नागौर के सांसद व राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल अपनी खुद की खींवसर विधानसभा सीट पर मात्र 2059 मतों के अंतर से जीत सके हैं। उनकी पार्टी के सभी प्रत्याशी पराजित हो गए।
चुनाव से कुछ महीना पहले ही बांगड़ के आदिवासी क्षेत्र में बनाई गई भारतीय आदिवासी पार्टी के तीन विधायक जीतने में सफल रहे हैं। हालांकि भारतीय आदिवासी पार्टी आदिवासी क्षेत्र में पहले भारतीय ट्राईबल पार्टी के नाम से पिछले विधानसभा चुनाव में उतरी थी और उसके दो विधायक जीते थे। उन्ही दोनों विधायकों ने भारतीय आदिवासी पार्टी के नाम से नई पार्टी का गठन किया था। आठ निर्दलीय प्रत्याशी जीते हैं। जिनमें से एक कांग्रेस का व सात भाजपा के बागी थे।
विधानसभा चुनाव से पहले अशोक गहलोत ने चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए पूरा जोर लगा दिया था। मगर कांग्रेस में चल रही आपसे गुटवाजी के चलते मतदाताओं ने कांग्रेस पार्टी को सिरे से ठुकरा दिया। विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही पार्टी के मुख्य चेहरे बने हुए थे। उन्हीं के चेहरे पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था। पार्टी की सभी प्रचार सामग्री पोस्टर, बैनर, होर्डिंगों में अशोक गहलोत की छाए हुए थे। अशोक गहलोत द्वारा हायर की गई प्रचार कंपनी डिजाईन बाक्स व उसके बड़बोले निदेशक नरेश अरोड़ा भी चुनाव जितवाने में नाकाम रहे।
सचिन पायलट पूरे चुनाव में ही साइड लाइन रहे। टिकट वितरण के दौरान सचिन पायलट ने जिस तरह से गहलोत के सामने हथियार डाले दिये थे। उस पर बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों को भी आश्चर्य हुआ। चुनाव से पहले सुचिता की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले पायलट ने जिस तरह से गहलोत समर्थक शांति धारीवाल, प्रमोद जैन भाया जैसे विवादित लोगों को टिकट देने पर अपनी सहमति जताई उससे सभी अचंभित रह गए। लोगों का कहना था कि पायलट ने अपने समर्थक कुछ लोगों के टिकट क्लियर करवाने के चक्कर में गहलोत से अंदर खाने अघोषित समझौता कर लिया था। चुनाव में पायलट के कहने पर करीबन 40 लोगों को टिकट मिली जबकि गहलोत समर्थकों की संख्या 150 से भी ऊपर थी।
चुनाव से पहले गहलोत बार-बार कहते थे कि प्रदेश की जनता में सरकार के खिलाफ नकारात्मक माहौल नहीं है। जनता प्रदेश सरकार के कामों से खुश है। विधायकों को लेकर जनता में नाराजगी है। इसलिए हम बड़ी संख्या में नए लोगों को मैदान में उतरेंगे। मगर चुनाव आते-आते सारी बातें कागजों में ही रह गई और धड़ाधड़ बूढ़े व मौजूदा विधायकों को मैदान में उतार दिया गया। जिसका नतीजा कांग्रेस को करारी हार के रूप में देखना पड़ा।
अशोक गहलोत ने सबसे बड़ी गलती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने खुद को चेहरा बना कर कर दी। राजस्थान में भाजपा ने किसी को भी चेहरा बनाकर चुनाव नहीं लड़ा था। भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे व कमल के फूल के निशान पर चुनाव लड़ा था। वहीं अशोक गहलोत ने सामूहिक नेतृत्व के स्थान पर खुद को ही आगे कर पूरी चुनावी व्यूह रचना की थी जिसमें वह नाकाम रहे। कई विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को अपने बागी प्रत्याशियों की नाराजगी के चलते भी हार का सामना करना पड़ा है। समय रहते कांग्रेस पार्टी आंतरिक बगावत पर नियंत्रण नहीं कर पाई।
पार्टी के प्रदेश पर भारी सुखजिंदर सिंह रंधावा व तीनों सह प्रभारी का तो चुनाव के दौरान पता ही नहीं चला कि वो कहां रहे। राजस्थान में कांग्रेस को रसातल में पहुंचने में प्रभारी सुखजिंद्र रंधावा भी बहुत जिम्मेदार है। रंधावा का पूरा समय गहलोत सरकार की जी हुजूरी करते व लोगों को पदाधिकारी नियुक्त करने मे ही निकल गया और कांग्रेस पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि रंधावा ने जिनको पदाधिकारी बनाया है उसमें खुलकर भ्रष्टाचार हुआ है।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा से सीट व मत अधिक मिले थे। मगर इस बार कांग्रेस की सीटें घटने के साथ भाजपा की तुलना में मत भी कम हुए हैं। इस बार कांग्रेस को 39.53 प्रतिशत वहीं भाजपा को 41.69 प्रतिशत मत मिले हैं। बहुजन समाज पार्टी को 1.82 प्रतिशत वहीं हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को 2.39 प्रतिशत मत ही मिल पाए हैं। कांग्रेस पार्टी के प्रति जनता में इतनी अधिक नाराजगी थी की सरकार के 17 मंत्री सहित विधानसभा अध्यक्ष, सरकारी सचेतक तक चुनाव हार गए। यही नहीं अशोक गहलोत व सचिन पायलट के जीत का अंतर भी काफी कम हुआ है।
अशोक गहलोत ने चुनाव से पहले लोगों को सात गारंटी देकर वादा किया था कि फिर से सरकार बनने पर जनता को इन सात योजनाओं के तहत लाभ पहुंचाया जाएगा। मगर प्रदेश की जनता ने उनके वादों पर ध्यान ही नहीं दिया। मतदाताओं का कहना था कि पांच साल सत्ता में रहने के दौरान जो करना था कर दिया। अब सब चुनावी वायदे हैं। प्रदेश के किसानों का ना तो ऋण माफ हुआ ना ही बेरोजगारों को नौकरियां मिली। ऊपर से भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक होने से योग्य उम्मीदवारों का चयन होने से रह गया।
अशोक गहलोत का घमंड, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के बड़बोले बयान व उनके रिश्तेदारों का प्रशासनिक अधिकारी पदों पर चयन होना, मंत्री सुभाष गर्ग का भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक करवाने में नाम आना, मंत्री धारीवाल का विधानसभा में महिलाओं के प्रति अशोभनीय वक्तव्य, खान मंत्री प्रमोद जैन भाया के खुलआम भ्रष्टाचार के कारनामे, राजेंद्र गुढ़ा का लाल डायरी प्रकरण, शांति धारीवाल, महेश जोशी, धर्मेंद्र राठौर द्वारा आलाकमान के निर्देशों की अवहेलना करने जैसे मुद्दे कांग्रेस की छवि खराब करने के लिए काफी थे।
कांग्रेस पार्टी को अब अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू करनी चाहिए। पार्टी को संगठन में अध्यक्ष सहित आमूल चूल परिवर्तन करना होगा तथा विधायक दल के नेता के पद पर भी गैर विवादित विधायक का चयन करना होगा जो सभी को साथ लेकर चल सके। तभी जनता में अपनी खोई पैंठ फिर से स्थापित कर सकती है। वरना तो राजस्थान कांग्रेस की ओर अधिक दुर्गति होने से कोई नहीं रोक सकता है।

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