संपादकीय

चम्बल नदी में क्रूज चलाने और फ्रंट रिवर की मुहिम

">(27 सितंबर) विश्व पर्यटन दिवस

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
लेखक एवं पत्रकार

कोटा से होकर प्रवाहित होने वाली चम्बल नदी को केंद्र बिंदु मान कर पर्यटन में फिक्स डिपॉजिट हाड़ौती के लिए इस विश्व पर्यटन दिवस पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला की तरफ से खुशी की सूचना आई है कि सब कुछ ठीक रहा तो वह दिन दूर नहीं जब चम्बल में क्रूज चलने से पर्यटन के नए द्वार खुलेंगे। चम्बल नदी में क्रूज कोटा बैराज से जवाहरसागर तक चलाये जाएंगे। मुकन्दरा में टाइगर रिजर्व बनाये जाने के बाद चम्बल में वाटर सफारी का अन्य आकर्षण होगा। उधर प्रदेश के नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने करोड़ो रूपये की चम्बल रिवर फ्रंट योजना की मुहिम शुरू की है। ऐसे में ये दोनों कदम सोने में सुहागे की तरह होंगे। जब हाड़ौती के पर्यटन पर चर्चा चल पड़ी और पर्यटन विकास की बयार बह निकली है तो ऐसे में पुरातत्व सम्पदा के धनी इस अंचल में धरोहरों का सर्वे और जीर्णोद्धार कर पर्यटन मानचित्र पर लाने की मुहिम चलाने की भी महत्ती आवश्यकता हैं। इन प्राचीन धरोहरों, लोक- संस्कृति, जैव-विविधता को जोड़ कर इस क्षेत्र में रोजगार बढ़ा कर इस क्षेत्र को भी देश और विश्व के पर्यटन मानचित्र पर लाया जा सकता हैं।
चम्बल में क्रूज चलाने को तैयार जहाजरानी मंत्रालय ने प्रारंभिक सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर इसे उपयुक्त माना है और राज्य मंत्री ने डीपीआर बनाने के निर्देश अधिकारियों को दिए हैं। इसके शुरू होने पर करीब 29 किमी. जलमार्ग के मध्य कोटा बैराज, गढ़ पैलेस, हैंगिग ब्रिज, कोटिया भील का महल, गेपरनाथ, गरडिया महादेव जैसे दर्शनीय स्थलों को शामिल किया जाएगा। उधर करीब 500 करोड़ रुपये की चम्बल रिवर फ्रंट योजना का कार्य भी प्रारम्भ किया जा चुका है। बैराज के डाउन स्ट्रीम में साबरमती से बेहतर बनाने की कल्पना संजोई गई हैं।चम्बल के किनारे टापू पर दोनों तरफ दीवारें बना कर मध्य में गार्डन, पैदल परिपथ,फव्वारें,स्थानीय शिल्प की संरचनाएं विकसित कर खूबसूरत दर्शनीय स्थल बनाया जाएगा। सम्भव हुआ तो इसे केशवरायपाटन तक लेजाया जा सकता है।
चम्बल के किनारे-किनारे कोटा में भीतरिया कुंड उद्यान, गोदावरी धाम, अधरशिला, चम्बल गार्डन, गांधी उद्यान, यातायात पार्क,जुरासिक पार्क, मौजी बाबा गुफा धाम, करेर के बालाजी, कोटा बैराज, कोटा का गढ़, छोटी समाध एवं बड़ी समाध आदि रमणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल पहले से ही चम्बल की शान हैं। चम्बल से जुड़ा किशोरसागर तालाब का खूबसूरत दृश्य मुम्बई के मेरीन ड्राइव से कम नहीं है। इसके मध्य स्थित छत्रविलास महल और संगीतमय फव्वारा, रात में चारों और विद्युत बल्बों के आलोक से बिखरती रंग-बिरंगी रोशनी की छटा, तालाब के सुंदर घाट, मंदिर, विश्व के सात आश्चर्यो की प्रतिकृति लिए सेवन वंडर्स पार्क, परकोटे की ऊँची-ऊंची बुर्ज, छत्रविलास उद्यान में इसकी सेर कराती टॉय ट्रेन, प्राचीन वस्तुओं, मूर्तियों, चित्रों का असीम खजाना समेटे राजकीय संग्रहालय चिड़ियाघर,वर्ष भर चित्रकारों को प्रोत्साहन देती कला दीर्घा उद्यान की अपनी शोभा हैं। उद्यान के साथ सड़क के उस और अनेक और उद्यान तथा प्राचीन राजाओं की स्मृति में बनी कलात्मक स्मारक छतरियां सभी कुछ दर्शनीय हैं। किशोरसागर के सम्पूर्ण परिसर को शान-ए-कोटा कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इतने आकर्षणों के मध्य प्रमुख रूप से कोटा में वैष्णव सम्प्रदाय की प्रथम पीठ मथुरेश जी का मंदिर, चरण चैकी, प्राचीन कांसुवा महादेव मंदिर, चन्ड्रेसल मठ, अभेडा महल आदि के साथ-साथ समस्त धर्मों के अनेक धार्मिक स्थल दर्शनीय हैं। कोटा के समीप ही कैथून में भारत का एकमात्र विभीषण मंदिर, चारचैमा में महादेव मंदिर,आंवा में बद्री विशाल मंदिर एवं बूढादित में सूर्य मंदिर प्राचीन एवं पुरातत्व महत्व की निधि हैं।
कोटा के साथ-साथ बूंदी, बारां एवं झालवाड़ जिलों अर्थात सम्पूर्ण रूप से हाड़ौती क्षेत्र में अनेक किले और 8वीं से 12 वीं शताब्दी के अनेक मंदिर अमूल्य सम्पदा के रूप में बिखरें पड़े हैं। अतीत में वैभव का प्रतीक पुरातात्विक महत्व की सम्पदा असुरक्षित,उपेक्षित और लुप्त होने के कगार पर है। बाकी रहे अवशेष अंतिम सांसे गिन रहे हैं। इनकी मूर्तियां एवं कलात्मक प्रस्तर खण्ड संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं। अब तो इतिहास और पुरातत्व में रुचि रखने वाले या कोई शोधकर्ता यदाकदा इनकी ओर रुख करते हैं। स्थानीय निवासियों को तो यही संतोष है कि उनके पास ऐसा कुछ है, जिसे कभी-कभी कुछ लोग देखने आते हैं।
बारां जिले में अटरू के मंदिर, काकूनी के मंदिर समूह, शेरगढ़ का जलदुर्ग, रामगढ़ में पहाड़ी पर किशनई माता मंदिर एवं तलहटी में भंडदेवरा मंदिर, कपिल धारा,कृष्ण विलास के अवशेष, शाहबाद को किला,नाहरगढ़ का किला आदि के संरक्षण की दरकार है और इन्हें ग्राम्य पर्यटन की नई अवधारणा से जोड़ा जा सकता है। ऐसे ही झालवाड़ जिले में चंद्रभागा मंदिर समूह एवं कोलवी की बौद्ध गुफाओं को भी संवारने एवं पर्यटन से जोड़ने की जरूरत हैं। बूंदी में सुखसागर की पाल और डाकबंगले का जीर्णोद्धार के आकर्षक बनाये जाने की आवश्यक्ता है।
पर्यटन के नूतन आयामों की स्थापना, प्राचीन धरोहरों के संरक्षण, पर्यटक सुविधाओं के विकास की दिशा में यद्यपि आजादी के बाद अनेक कदम उठाये गये, परन्तु जितनी संजीदगी सरकार के स्तर पर होनी चाहिए वह कहीं नजर नहीं आती। कोटा का दशहरा मेला आज तक रास्ट्रीय पहचान नहीं बना सका। किशोरसागर आज भी वाटर स्पोर्ट्स से महरूम हैं। बूंदी उत्सव जबरदस्त जनभागीदारी और प्रशासनिक दृढ़ता से बहुत ही कम समय में ही लोकप्रिय हो गया जब कि हाड़ौती उत्सव ने दम तोड़ दिया। लोक कलाकारों और लोक संस्कृति से भरपूर है हाड़ौती।आज तक हाड़ौती में समग्र पर्यटन विकास की दृष्टि से कोई भी एकीकृत योजना नहीं बनाई गई। अब जब कि अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान बढ़ रहा है ऐसे में क्षेत्र की पर्यटन शक्ति को पहचान कर, आंकलन कर ठोस योजना बना कर क्रमबद्ध रूप से आगे बढ़ना होगा।
आज जब कि केंद्र एवं राज्य सरकार के स्तर पर कोटा का मजबूत प्रतिनिधित्व है, उनकी प्रबल इच्छाशक्ति भी है तो हाड़ौती के समग्र पर्यटन विकास का खाका तैयार कर पर्यटन विकास की दिशा में योजनाबद्ध प्रयासों को बढ़ावा देने की पहल करनी होगी, जिससे देश और विदेश के सैलानी हाड़ौती का रुख कर सकें, पर्यटन विकसित हो और इसमें रोजगार के अवसर भी बढ़े। इसमें कला-संस्कृति एवं पर्यटन विभाग, पुरातत्व विभाग, देवस्थान विभाग, केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, पर्यटन से जुड़ी संस्थाओं, टूर ऑपरेटर्स, प्रशासन, कॉरपोरेट संस्थाओं और स्थानीय जनभागीदारी भी जोड़नी होगी। वर्तमान में हाड़ौती में स्वेच्छा से आने वाले सैलानियों की आवक बहुत कम हैं,केवल अवसर विशेष पर इन्हें बुलाया जाता हैं। प्रमुख रूप से यहां सैलानी बूंदी चित्रकला एव बूंदी उत्सव के लिये आते हैं।

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