संपादकीय

कंटीले तार जीरो लाईन से दूर क्यों?

-विमल वधावन योगाचार्य
एडवोकेट (सुप्रीम कोर्ट)

वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी तथा उनके साथ गृहमंत्री श्री अमित शाह की जोड़ी लाजवाब है। जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के लिए समाचार पत्रों तथा चैनलों पर काफी दिनों से मुख्यतः तीन विकल्पों पर चर्चा हो रही थी। प्रथम, जम्मू कश्मीर का तीन खण्डों में विभाजन, द्वितीय, अनुच्छेद-35ए को अवैध घोषित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष स्वीकृति देना और तीसरा, विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन करके कश्मीर की सीटों को कम करना और जम्मू की सीटों में वृद्धि करना शामिल था। इस प्रकार धीरे-धीरे कुछ समय के बाद अनुच्छेद-370 की समाप्ति का मार्ग प्रशस्त करने पर चर्चाएँ चल रहीं थी, परन्तु इस जोड़ी ने अन्तिम उपाय के रूप में जम्मू कश्मीर का पूरा विशेष दर्जा समाप्त करके इन सारे विकल्पों को भी उसी उपाय में शामिल कर दिया। इस राजनीतिक जोड़ी की संकल्प शक्ति और संसद तथा संसद के बाहर अभिव्यक्त विचारों में राष्ट्र के प्रति समर्पण की एक जबरदस्त प्रबलता दिखाई देती है जिसके सामने संख्या बल में पहले से ही कमजोर और बंटा हुआ विपक्ष वैचारिक रूप से भी इतना अधिक बंट गया है कि मोदी सरकार के इन प्रयासों का छुट-पुट विरोध केवल नाटकबाजी सा प्रतीत होता है। इस प्रयास का विरोध कश्मीर घाटी के नेतृत्व और आम जनता की तरफ से होता तो वह वास्तविक लगता। नेतृत्व के नाम पर 500 से 1000 लोगों के जमघट को सावधानी के तौर पर हिरासत में रखा गया है और दूसरी तरफ कश्मीर की सामान्य जनता को अधिक से अधिक सुख-सुविधाओं के आश्वासन दिये गये हैं। इसलिए प्रारम्भिक दौर में शांति दिखाई दे रही है। इस शांति को लम्बे समय में बनाये रखने के लिए कश्मीर के नेतृत्व पर कड़ी निगरानी भी लम्बे समय तक चलानी पड़ेगी और 6 महीने से एक वर्ष के भीतर कश्मीरी जनता को दिये गये आश्वासनों को पूरा करने का शुभारम्भ भी करके दिखाना होगा। भाजपा के लोग अक्सर यह नारा लगाते हैं ‘मोदी है तो मुमकिन है’। इसमें कोई सन्देह भी दिखाई नहीं देता। प्रधानमंत्री के रूप में श्री नरेन्द्र मोदी एक ईमानदार देशभक्त छवि के मालिक हैं। ऐसा व्यक्ति जब संकल्प करता है तो सारे विकल्प एकत्रित होकर उसके लिए एक निश्चित मार्ग प्रशस्त कर देते हैं। सारे देश को यह आशा और विश्वास है कि श्री नरेन्द्र मोदी और श्री अमित शाह की जोड़ी जम्मू कश्मीर और लद्दाख राज्यों में पूरी ईमानदारी के साथ आगे बढ़ेगी और एक-दो वर्ष के भीतर जम्मू कश्मीर नाम की कोई समस्या नहीं रहेगी। वास्तव में जम्मू कश्मीर की समस्या एक राज्य की समस्या नहीं थी अपितु यह भारत के विरुद्ध पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को बहुत बड़ी सुविधा दे रही थी। 1965, 1971 के युद्धों में करारी हाल का मुँह देखने वाले पाकिस्तान को कारगिल, उरी या बालाकोट से भी शायद इतना बड़ा झटका नहीं लगा था जितना महाझटका उसे अब जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने से लगा है।
पाकिस्तान के लिए यह एक बहुत बड़ा घाव है। इस दर्द को लेकर वह सारे विश्व में चक्कर काटने के लिए भी तैयार है परन्तु उसे अब यह भी महसूस हो चुका है कि मोदी की अन्तर्राष्ट्रीय छवि के चलते अब पाकिस्तान को विश्व के किसी कोने से भी कोई मदद नहीं मिलने वाली। अमेरिका, रूस और चीन सहित मुस्लिम देश भी पाकिस्तान की सहायता करने के लिए आगे नहीं आ पायेंगे। भारत विरोध को लेकर पाकिस्तान की संसद में भी बहुत बड़ा विरोधाभास दिखाई दे रहा है। पाकिस्तानी नेतृत्व इस वस्तुस्थिति को जानता है कि भारत के साथ सीधी लड़ाई का अर्थ पाकिस्तान के लड़खड़ाते ढांचे को पूरी तरह से नष्ट करने के रूप में ही सामने आयेगा। इसलिए इन परिस्थितियों में इतने बड़े घाव की दर्द के चलते और पाकिस्तानी सेना के मनोविज्ञान को समझने वाला व्यक्ति यह सहज अनुमान लगा सकता है कि पाकिस्तान अब केवल आतंकवादियों की घुसपैठ भारत में करवाकर ही कुछ नई शरारतों की योजना बना सकता है।
आतंकवादियों की घुसपैठ के लिए पाकिस्तान की सीमाएँ हमारे तीन मुख्य राज्यों की भूमि के साथ लगती हैं – राजस्थान, पंजाब और जम्मू कश्मीर। इसके अतिरिक्त गुजरात के साथ पाकिस्तान की जल सीमा लगती है। गुजरात की इस जल सीमा पर भारत की जल सेना दूर तक देखने वाले यंत्रों से पूरी चैकसी करती है। राजस्थान सीमा का अधिकांश भाग रेतीला है। पंजाब और जम्मू कश्मीर की सीमाएँ पाकिस्तान से आतंकवादियों को प्रवेश कराने के लिए बहुत सुविधाजनक रही हैं। वर्षों से इन दोनों राज्यों की सीमाओं को कंटीले और करंट वाले तार स्थापित करने की माँग राष्ट्रवादी संगठनों के द्वारा की जाती रही है। 1993 में नरसिंहा राव के प्रधानमंत्री काल में केन्द्र सरकार ने पंजाब और जम्मू कश्मीर के कुछ क्षेत्रों में कंटीले तार लगाने का कार्य प्रारम्भ किया। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित अन्तर्राष्ट्रीय मानदण्डों के अनुसार दो देशों की वास्तविक सीमा अर्थात् जीरो लाईन से 50 या 100 मीटर की दूरी पर तारें लगाने का कार्य होना चाहिए। परन्तु केन्द्र सरकार ने जब तार लगाने का प्रयास प्रारम्भ किया तो पाकिस्तानी सेना के द्वारा इसका भारी विरोध किया गया। यहाँ तक घोषणाएँ की गई कि तार लगाने वाले मजदूरों को गोलियों से उड़ा दिया जायेगा। इस विरोध के सामने झुकते हुए तत्कालीन केन्द्र सरकार ने जीरो लाईन से 150 मीटर से भी अधिक दूरी पर तारे लगाने का कार्य प्रारम्भ किया। परन्तु धरातल की वास्तविकता यह है कि यह तारों की दीवार जीरो लाईन से कहीं 200 मीटर है, कहीं 500 मीटर, कहीं एक किलोमीटर तो कहीं-कहीं उससे भी अधिक दूरी पर स्थित है। जीरो लाईन और तारों के बीच खेती की भूमि है। सीमावर्ती गाँवों के किसान इस भूमि पर खेती करने के लिए बी.एस.एफ. तथा सेना की अनुमति लेकर प्रतिदिन प्रातः 10 बजे के बाद तारों के पार जाते हैं और सायं 4-5 बजे से पूर्व उन्हें वापिस आना होता है। खेती करना इन किसानों के लिए प्रतिदिन सीमा पर पाकिस्तानी सैनिकों की बदमाशियों से संघर्ष करने के समान है। इन परिस्थितियों में सीमावर्ती गाँवों के युवकों को अपने जाल में फंसाकर पाकिस्तानी सैनिक तथा अन्य असामाजिक तथा आतंकवादी नशीले पदार्थ, हथियार और यहाँ तक कि आतंकवादियों के भारत प्रवेश को सफल बना लेते हैं। उपजाऊ भूमि और कड़ी मेहनत करने वाले पंजाबी किसानों को भी इन सारी अनिश्चित परिस्थितियों में गरीबी का जीवन जीना पड़ता है। कंटीली तारों के पार स्थित भूमि पर खेती की अनिश्चितताओं को देखते हुए केन्द्र तथा राज्य सरकार संयुक्त रूप से इन किसानों को 10 हजार रुपये प्रति एकड़ प्रतिवर्ष मुआवजा देती है। इतनी कम मुआवजा राशि अपने आप में ही निरर्थक सी दिखाई देती है। इन परिस्थितियों में पंजाब केसरी समाचार पत्र समूह ऐसे गाँवों में भिन्न-भिन्न प्रकार की राहत सामग्री तथा औषधियों आदि का वितरण करता है।
कुछ माह पूर्व मुझे भी ऐसे ही एक राहत दल के साथ सीमावर्ती गाँवों का दौरा करने का अवसर प्राप्त हुआ। इस अध्ययन के बाद मैंने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को इजराइल के सीमा प्रबन्धन की तरह वास्तविक जीरो लाईन से 50-100 मीटर की दूरी पर कंटीले और करंट वाले तार दोनों राज्यों में पूर्ण रूप से स्थापित करने का सुझाव दिया। 50 से 100 मीटर की भूमि को किसानों से खरीद लिया जाये और उन्हें उस भूमि का अधिग्रहण मूल्य दे दिया जाये। इस प्रकार इस 50-100 मीटर भूमि पर कैमरे तथा अन्य आधुनिकतम यंत्र लगाकर आटोमैटिक निगरानी व्यवस्था बनाई जा सकती है। इस भूमि पर ऐसे बम भी फि किये जा सकते हैं जिन पर पैर रखते ही जोर से बम फटने जैसी आवाज उत्पन्न होगी और कोई व्यक्ति कंटीली बाड़ के नजदीक तक भी नहीं पहुँच पायेगा। भारतीय सैनिक सीमा पर चैकसी करने के स्थान पर थोड़ी दूर स्थित नियंत्रण कक्षों में बैठकर भी अधिक चैकसी कर सकेंगे। प्रधानमंत्री को लिखा गया यह पत्र गृह मंत्रालय के पास भेजा गया जहाँ से एक अवर सचिव ने मुझे सूचित किया है कि इजराइल जैसी निगरानी व्यवस्था को भारत की भौगोलिक परिस्थितियों में लागू करना उचित नहीं है। दूसरी तरफ आज नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के युग में भी गृह मंत्रालय वही 1993 वाला कांग्रेसी स्पष्टीकरण प्रस्तुत कर रहा है। इस अवसर सचिव ने मुझे सूचित किया है कि 50-100 मीटर की एक समान दूरी पर तार लगाना सम्भव नहीं है क्योंकि पाकिस्तान सैनिकों के विरोध के कारण ही यह बाड़ 150 मीटर से दूर ही लगाये गये थे। नरेन्द्र मोदी और अतिम शाह के कानों तक यदि यह बात पहुँचे कि पाकिस्तान सैनिकों के विरोध के कारण हम कंटीले तारों को सीमा लाईन से 50-100 मीटर दूरी तक नहीं लगा सकते तो पूरी आशा है कि यह जोड़ी आज की परिस्थितियों में इस तर्क को कदापि स्वीकार नहीं करेगी। इस आशा के साथ मैंने प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री को पुनः एक पत्र के द्वारा यह सुझाव दिया है कि भारत पाकिस्तान सीमा को पूरी तरह सील करने से भारत की अनेकों समस्याओं का इकट्ठा समाधान हो सकता है। नशे और हथियारों के साथ आतंकवादियों के प्रवेश पर बहुत बड़ी रोक लग सकती है। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ भावना की इस विषय पर भी नितान्त आवश्यकता दिखाई दे रही है। सीमा को पूरी तरह से सीलबन्द करना जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने से उत्पन्न होने वाली संभावित समस्याओं को भी नेस्तनाबूत कर सकता है।

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