संपादकीय

संवाद-संप्रेषण का सशक्त माध्यम है हिंदी (10 जनवरी विशेष)

-सुनील कुमार महला
स्वतंत्र लेखक, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड

सभी जानते हैं कि भाषा संवाद संप्रेषण का एक बहुत ही सशक्त व जोरदार माध्यम है। मनुष्य इस संसार में परमात्मा की श्रेष्ठतम कृति है। मनुष्य को इसलिए परमात्मा की श्रेष्ठ कृति कहा जाता है कि वह भाषा का उपयोग कर अपने भावों को अभिव्यक्त करने में सक्षम है। अन्य जीव मनुष्य की भांति भावों का बोलकर संप्रेषण नहीं कर सकते। दस जनवरी का दिन हिंदी की दृष्टि से हमारे देश के लिए अत्यंत विशेष है क्योंकि विश्व हिन्दी दिवस (विश्व हिंदी दिवस) प्रति वर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान एवं अनेक प्रकार के कार्यक्रम, संगोष्ठियां व सेमिनार आयोजित किये जाते हैं। विश्व में हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ तब से ही इस दिन को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। जानकारी देना चाहूंगा कि हमारे देश के लिए चौदह सितंबर का दिन विशेष है क्योंकि इसी दिन हमारे देश की संविधान सभा द्वारा हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। हिंदी भाषा अपने आप में खास और विशेष है। जानकारी मिलती है कि आज संसार में 6809 से अधिक भाषाएं और अनगिनत बोलियां हैं, जिसमें से एक भाषा हिंदी भी है। यह हमारे लिए हर्ष का विषय है कि हिन्दी संसार की दूसरी बड़ी भाषा है, जिसका उपयोग सर्वाधिक युवा आबादी करती है। हिन्दी का व्यक्तित्व इसकी वर्णमाला के कारण विराट है। हिंदी की खासियत है कि इसमें जैसा बोला जाता है, वैसा ही सुना जाता है और वैसा ही लिखा भी जाता है। हिंदी में सामर्थ्य की सुरभि है, सुगंध है,तभी शायद यह विश्व की सब भाषाओं से अलग और अनूठी भाषा है। आज देश में हिंंदी के प्रयोग को पूर्ण रूप से व्यवहार में लाने के लिए समर्पित प्रयासों की आवश्यकता है। जिस प्रकार से सदियों के लंबे विरोध और संघर्ष के बाद अंग्रेजी इंग्लैंड में न केवल राजकार्य की भाषा बनी,बल्कि विश्व की संपर्क भाषा का भी रूपाकार ले सकी है, आने वाले समय में निश्चित ही हिंदी भी ऐसा ही स्थान ले सकेगी, क्योंकि हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसकी अपनी एक विशिष्ट ,दमदार, सरल,सुबोध शब्दावली है। हिंदी वैज्ञानिकता का पुट लिए हुए ऐसी भाषा है जो आज न केवल हमारे देश में बल्कि विदेशों में भी लगातार पल्लवित व पोषित हो रही है, क्योंकि आज हर कोई भारत देश की संस्कृति- सभ्यता व यहाँ की अनूठी परंपराओं, संस्कारों से रूबरू होना चाहता है, जिसके लिए हिंदी का ज्ञान होना अति आवश्यक और जरूरी है। बिना हिंदी जाने, समझे कोई भी भारत जैसे बड़े राष्ट्र को नहीं समझ सकता है। हमारे देश के बड़े नेताओं अटल बिहारी वाजपेयी, सुषमा स्वराज ने वैश्विक मंचों पर हिंदी का गौरव और वर्चस्व स्थापित किया। वर्तमान में हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ऐसा कर रहे हैं। आज हिंदी की चमक धमक हरेक जगह व स्थान पर है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स से लेकर सिनेमा, व्यापार जगत कोरपोरेट वर्ल्ड, शिक्षा, चिकित्सा समेत कोई क्षेत्र आज ऐसा नहीं बचा होगा,जहाँ हिंदी का प्रयोग, उपयोग नहीं किया जाता होगा। हिंदी एक भाषा मात्र नहीं है, यह हमारे देश की आन-बान व शान है। हिंदी हमारी पहचान है, हिंदी हमारी संस्कृति है, हमारी सभ्यता है, हमारे संस्कारों में यह निहित है। हमें ज्यादा से ज्यादा हिंदी बोलनी चाहिए, पढ़नी चाहिए, सीखनी चाहिए और सिखानी भी चाहिए।
हिंदी वैज्ञानिक शब्दावली लिए हुए बहुत ही दमदार भाषा है, जिसमें वैज्ञानिकता का, संस्कृति का, संस्कारों का पुट है। हिंदी हमारा अभिमान है, यह हमारा स्वाभिमान है, हिंदी भारत के माथे की बिंदिया है जो अपने आप में मधुर है, सुरभि से ओतप्रोत है। हिंदी, सहज, सरल, सलोनी, सरस है। यह ज्ञान की खान है, ज्ञान का भंडार हिंदी में बहता है। हिंदी, हिंद देश की जान है। आज हिंदी का जादू सबके सिर चढ़कर बोल रहा है। विदेशी लोग हिंदी में रूचि ले रहे हैं और लगातार हिंदी सीख रहे हैं। हिंदी का वर्चस्व अमेरिका से लेकर फ्रांस, जर्मनी, चीन,इटली, जापान से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक में बढ़ा है। हमारे नेतागण हिंदी में भाषण देते हैं। हमारे यहां दुनियाभर के अखबार, पत्र-पत्रिकाएं हिंदी में निकलती हैं, प्रकाशित होतीं हैं। हिंदी में प्रचुर मात्रा में साहित्य उपलब्ध है। हिंदी का भारत संघ से सदियों सदियों से नाता रहा है। यह भाषा नहीं, बल्कि भाषा से बढ़कर है। हिंदी हमारे लिए प्रेरणा है, उत्साह है, नया जोश है। हिंदी में देश की एकता और अखंडता निहित है। दरअसल, हिंदी भारत के लिए एक चेतना है जो हमें हमेशा जगाये रखने का काम करती है। हिंदी में भाव है, अपनापन है। हिंदी स्नेह का सागर है। हिंदी हमें, हम सभी भारतवासियों को दैदीप्यमान करती है। हमारी वास्तविक पहचान हिंदी ही है क्योंकि-” हिंदी है हम वतन है, हिंदोस्तां हमारा।(इकबाल)।” हिंदी न किसी की बैरी (दुश्मन) है और न ही हिंदी में अलग होने का भाव ही मौजूद है। ये हमारी मातृभाषा है, हमारे देश की राजभाषा है, हमारे देश का असली गौरव है जिस पर हम सीना तान कर गर्व कर सकते हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में इस प्रकार वर्णित है- संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। कुल मिलाकर बात यह है कि हिंदी भारत देश की असली परिभाषा है। हिंदी हमारे भावों में सदैव नये प्राण फूंकती है। यह हमारे अंतर्मन व आत्मा को ही नहीं छूती है, अपितु सभी देश के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। हिंदी भारत संघ की शक्ति, भक्ति व राष्ट्र का अधिकार है। भले ही आज हमारी युवा पीढ़ी अंग्रेजी मानसिकता की शिकार है, वह अंग्रेजी मैकाले शिक्षा पद्धति में अधिक विश्वास करती है लेकिन हिंदी ने उनके मन व आत्मा के एक कोने में कहीं न कहीं जरूर जगह बनाई है। हमारी युवा पीढ़ी आज हिंदी समझती है, बोलती है, पढ़ती है, लिखती है। देश के आधे से अधिक राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की भाषा आज हिंदी है। हमारी युवा पीढ़ी धीरे धीरे हिंदी का महत्व, महत्ता समझ रही है और आने वाला समय हिंदी का ही होगा,इसमें कोई दोराय या शक किसी को भी नहीं होना चाहिए। भारत की वादियों में, भारत की हवाओं में, भारत की रगों में ,भारत की नदियों में, भारत के पहाड़ों में, प्रकृति में हिन्दी घुली है। यह मिठास है जिससे परे हम हिंदी लोग कभी भी अलग नहीं हो सकते हैं। हिंदी में भारत जीवंत है। हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि कोई भी राष्ट्र अपनी भाषा का आदर किये बगैर विकसित एवं समृद्धशाली नहीं हो सकता है। आज भारत ही नहीं विदेश भी लगातार हिन्दी भाषा को अपना रहे हैं तो यहां यक्ष प्रश्न यह उठता है कि फिर हम अपने देश में रहकर भी अपनी भाषा को बढ़ावा देने के बजाय उसको खत्म करने पर आखिर क्यों तुले हैं ? विश्व में अनेक देश जैसे- इंग्लैंड, अमेरिका, जापान, चीन और जर्मनी आदि अपनी भाषा पर गर्व महसूस करते हैं तो हम क्यों नहीं? हमें यह समझने की जरूरत है कि भाषा का बहुत बड़ा मार्केट होता है। भारत एक बड़ा देश है और इसमें सिर्फ किताबें ,उपन्यास और साहित्य ही नहीं, उद्योग, कला, विज्ञापन, अखबार, टीवी कार्यक्रम, फिल्में, पर्यटन, संस्कृति, धर्म, खान-पान, रहन-सहन, विचारधारा, आंदोलन और राजनीति भी शामिल है। भाषा किसी भी राष्ट्र की एक बड़ी शक्ति होती है। तकनीकी और विज्ञान के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस युग में हिंदी को अधिकाधिक प्रचारित प्रसारित करने की जरूरत है। हालांकि सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर आज हिंदी का जमकर उपयोग हो रहा है, लेकिन हमें हमारी भाषा को लेकर और अधिक समर्पित प्रयास करने की जरूरत है और संविधान के अनुच्छेद 351के अनुसार हिंदी के लिए काम करने की जरूरत है जिसमें यह कहा गया है कि ‘ संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्‍यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।’ अंत में यही कहूंगा कि निश्चित ही हिंदी संविधान घोषित राजभाषा से राष्ट्र भाषा बन सकेगी,ऐसी आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *