संपादकीय

सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन में भारत बनेगा ग्लोबल सेंटर !

-सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार (उत्तराखंड)

भारत सेमीकंडक्टर(अर्धचालक) प्रोडक्शन (उत्पादन) में अपने कदम आगे बढ़ा रहा है। यह वाकई अत्यंत ही काबिलेतारिफ है कि भारत सरकार हमारे देश को सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन में ग्लोबल सेंटर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। सर्वप्रथम हमें यह जानने की जरूरत है कि आखिर सेमीकंडक्टर होते क्या हैं और उनका उपयोग क्या है ? तो इस संबंध में जानकारी देना चाहूंगा कि अर्धचालक (सेमीकंडक्टर) या एडवांस्ड माइक्रोचिप उन पदार्थों को कहते हैं जिनकी विद्युत चालकता चालकों (जैसे ताँबा) से कम किन्तु अचालकों (जैसे कांच) से अधिक होती है। सिलिकॉन, जर्मेनियम, कैडमियम सल्फाइड और गैलियम आर्सेनाइड आदि कुछ सेमीकंडक्टर पदार्थों के उदाहरण हैं। जानकारी मिलती है कि आधुनिक युग में प्रयुक्त तरह-तरह की युक्तियों (डिवाइसेज) के मूल में ये अर्धचालक या सेमीकंडक्टर पदार्थ ही हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि सेमीकंडक्टर पदार्थों की सहायता से ही पहले डायोड बनाया गया और फिर ट्रांजिस्टर। वास्तव में सच तो यह है कि इन्हीं के कारण एलेक्ट्रॉनिक युग की असली शुरूआत हुई। विद्युत और एलेक्ट्रानिकी में इनकी बहुत बड़ी भूमिका रही है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि अर्धचालक प्रकाश एवं अन्य विद्युत संकेतों को आवर्धित (एम्प्लिफाई) करने वाली युक्तियाँ बनाने, विद्युत संकेतों से नियंत्रित स्विच बनाने, तथा ऊर्जा परिवर्तक के रूप में काम करते हैं और आज के इस आधुनिक युग में सेमीकंडक्टरों का बहुत बड़ा उपयोग व महत्व है। पाठकों को शायद ही इस बात की जानकारी होगी कि मिसाइल गाइडेंस प्रणाली, विमानन और नौसैनिक नौवहन के साथ कई अन्य रक्षा प्रणालियों के लिए सेमीकंडक्टर बहुत जरूरी हैं। ऐसे में सेमीकंडक्टर चिप की कमी दूर करने के लिए, भारत को अपने इस उद्योग को बढ़ावा देना आवश्यक हो गया है और जानकारी देना चाहूंगा कि इसी क्रम में हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के गांधीनगर में इंडिया सेमिकॉन सम्मेलन का उद्घाटन किया है। इस दौरान उन्होंने प्रौद्योगिकी फर्मों को भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग लगाने के लिए 50 प्रतिशत वित्तीय सहायता देने की बात भी कही है। वास्तव में आज का युग सूचना क्रांति का युग है, कम्प्यूटर, एंड्रॉयड मोबाइल, इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग है और इस युग में सेमीकंडक्टरों का जितना महत्व है उतना शायद किसी अन्य चीजों का नहीं। अब तक जापान, चीन, ताइवान, दक्षिणी कोरिया और अमेरिका जैसे देश ही सेमीकंडक्टर उत्पादन में आगे रहे हैं और भारत सेमीकंडक्टरों के लिए विदेशों पर ही निर्भर रहा है लेकिन अब भारत इस क्षेत्र में नये प्रतिमान स्थापित करने के लिए निरंतर आगे बढ़ता दिख रहा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि 80 प्रतिशत सेमीकंडक्टरों का निर्माण एशिया में ही होता है और दुनिया के सर्वाधिक उन्नत किस्म के सेमीकंडक्टर के 92 प्रतिशत का निर्माण ताइवान में होता है। ताइवान इस क्षेत्र में अग्रणी है।
एक जानकारी के अनुसार सेमीकंडक्टर का मार्केट दुनियाभर में करीब 500 अरब डॉलर का है । बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, सेमीकंडक्टर दुनिया में चौथा सबसे ज्यादा ट्रेड होने वाला प्रोडक्ट है। इसमें दुनिया के 120 देश भागीदार हैं। सेमीकंडक्टर से ज्यादा ट्रेड सिर्फ क्रूड ऑयल, मोटर व्हीकल व उनके कल-पुर्जों और खाने वाले तेल का ही होता है। जानकारी मिलती है कि कोरोना से पहले साल 2019 में टोटल ग्लोबल सेमीकंडक्टर ट्रेड की वैल्यू 1.7 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गई थी। जानकारी देना चाहूंगा कि सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग एक बहुत ही जटिल एवं प्रौद्योगिकी-गहन क्षेत्र है जिसमें भारी पूंजी निवेश, उच्च जोखिम, लंबी अवधि तथा पेबैक अवधि तथा प्रौद्योगिकी में तीव्र बदलाव शामिल हैं, जिसके लिये महत्त्वपूर्ण और निरंतर निवेश की आवश्यकता होती है। भारत में फेब्रिकेशन क्षमताओं की भी विदेशों की तुलना में अब तक कमी थी, सेमीकंडक्टर निर्माण का सेट अप भी काफी महंगा पड़ता है। यहां तक कि एक जानकारी के अनुसार एक सेमीकंडक्टर निर्माण इकाई (या फैब) की लागत अपेक्षाकृत छोटे पैमाने पर भी स्थापित करने में इसकी लागत अरबों डॉलर की हो सकती है और यह तकनीक के संदर्भ में एक या दो पीढ़ी पीछे की भी हो सकती है। जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 2021 में भारत ने देश में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये लगभग 10 बिलियन डॉलर की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना की घोषणा की थी और वर्तमान में भारत की तरफ से दुनियाभर की चिप मैन्‍युफैक्‍चरिंग कंपनियों को निवेश के लिए आमंत्रित किया गया है। भारत की ओर से इस आमंत्रण पर चीन खिसियानी बिल्ली की तरह खम्भा नोंच रहा है क्यों कि चीन को भारत का सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में आगे बढ़ना रास नहीं आ रहा है। यह ठीक है कि चीन स्वयं सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में किंग की भूमिका में रहा है लेकिन भारत अब चीन समेत दुनिया के सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में महारथ हासिल देशों को टक्कर देने जा रहा है। चीन ने भारत के सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में प्रगति को लेकर भारत को ‘विदेशी निवेश की कब्रगाह’ तक करार दे दिया है।
चीन की मीडिया का कहना है कि अमेरिका के समर्थन के बावजूद भारत का रास्‍ता कठिन है। बहरहाल, चीन जो भी सोचे और समझें लेकिन वर्ष 2014 में राष्ट्रों की वैश्विक लीग में 10 वें स्थान पर रहने वाला भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत आज हरेक क्षेत्र में लगातार प्रगति के नये सोपानों को छू रहा है। आज कोई भी क्षेत्र हो, हर क्षेत्र को सेमीकंडक्टर की जरूरत है। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को बढ़ावा देना, प्रोत्साहन देना बहुत जरूरी है, क्यों कि आज हम कम्प्यूटर, संचार क्रांति व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के हसीन युग में सांस ले रहे हैं जो कि मानवता को बहुत सी सहूलियतें प्रदान करने जा रहा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा के दौरान तीन प्रमुख सेमीकंडक्टर समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। पहला माइक्रोन प्रौद्योगिकी, दूसरा अनुप्रयुक्त सामग्री, सबसे जटिल उपकरण जो सेमीकंडक्टर निर्माण में प्रयोग किया जाता है, उसका निर्माण भी भारत में करने से सबंधित है। तीसरा लैम रिसर्च से हुआ समझौता है, यह अपने सेमीवर्स प्लेटफॉर्म पर 60,000 इंजीनियरों को प्रशिक्षित करेगा। आज लैपटॉप से लेकर फिटनेस बैंड तक और महीन कंप्यूटिंग मशीन से लेकर मिसाइल तक में आज एक ही चीज धड़क रही है और यह सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप ही है।
आज डेटा का युग है और डेटा बिना सबकुछ अधूरा ही है। जिसके पास आज डेटा वह दुनिया का सबसे ताकतवर देश है और डेटा, कम्प्यूटर, लैपटॉप, इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एंड्रॉयड स्मार्टफोन (मोबाइल) कहीं न कहीं सेमीकंडक्टर पर ही आधारित हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि कोविड महामारी के उफान के दिनों में जब इन सेमीकंडक्टर्स या माइक्रोचिप्स की सप्लाई धीमी हो गई थी तो दुनिया भर के लगभग सैकड़ों बड़े उद्योगों में हड़कंप मच गया था। यहां तक कि बहुत सी दिग्गज और बड़ी कंपनियों को भी अरबों डॉलरों का नुकसान उठाना पड़ा था। पाठकों को जानकारी प्राप्त करके हैरानी होगी कि चीन, अमेरिका और ताइवान जैसे माइक्रोचिप्स के सबसे बड़े निर्यातक देशों की कंपनियों को भी प्रोडक्शन रोकना पड़ा था। बहरहाल, भारत के लिए सेमीकंडक्टर अब एक हसीन पल है। यह हम सभी को गौरवान्वित करता है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी ने सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के निवेशकों को आमंत्रित करते हुए यह बात कही है कि, ‘भारत में 2026 तक 80 अरब डॉलर के सेमीकंडक्टर की खपत होने लगेगी और 2030 तक ये आंकड़ा 110 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।’ उम्मीद करते हैं जल्द ही भारत भी चीन, अमेरिका, ताइवान, जापान और दक्षिणी कोरिया जैसे देशों,जो कि सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन में बहुत आगे हैं,को पछाड़कर सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में सिरमौर बन जाएगा।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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