संपादकीय

बूम पर है भारतीय खिलौना इंडस्ट्री !

-सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार

वर्तमान में हमारा देश भारत लगातार विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनता चला जा रहा है और सफलता की ऊंचाइयों को छू रहा है। आत्मनिर्भर भारत का अर्थ है स्वयं पर निर्भर होना, यानि खुद को किसी और देश पर किसी भी उत्पाद या चीज के लिए आश्रित न करना। आज भारत विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनकर लगातार प्रगति के नवीन सोपानों को छू रहा है, यह हम सभी के लिए गौरव का विषय है। वास्तव में, आत्मनिर्भरता का सीधा सा मतलब यह है कि हमारे पास जो भी हुनर या काबिलियत है उसके माध्यम से एक छोटे स्तर पर खुद को आगे की ओर बढ़ाना या फिर बड़े स्तर पर अपने देश के लिए कुछ करना है। जानकारी देना चाहूंगा कि कोरोना काल में भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत 12 मई वर्ष 2020 को की गई थी और यह अभियान कोरोना काल के दौरान भारत को इस भीषण संकट से लड़ने के लिए तैयार करने के लिए बनाया गया था। आज भारत अनाज उत्पादन(कृषि क्षेत्र),रक्षा ,स्वास्थ्य क्षेत्र समेत अनेक क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हो चला है। यहां पाठकों को अवगत कराया जाना बहुत जरूरी है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री ने कोरोना महामारी से पहले तथा बाद की दुनिया के बारे में बात करते हुए कहा था कि 21 वीं सदी के भारत के सपने को साकार करने के लिये देश को आत्मनिर्भर बनाना ज़रूरी है। प्रधानमंत्री ने उस समय इस बात पर बल दिया था कि भारत को कोरोना महामारी संकट को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए। जानकारी देना चाहूंगा कि आत्मनिर्भर भारत मिशन को दो चरणों में लागू किया गया था, जिसमें क्रमशः पहले चरण में चिकित्सा, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक, खिलौने जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया गया और दूसरे चरण के अंतर्गत रत्न एवं आभूषण, फार्मा, स्टील जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया गया था। उल्लेखनीय है कि आत्मनिर्भर भारत के कुल पांच स्तंभ हैं जिनमें क्रमशः अर्थव्यवस्था, अवसंरचना (ऐसी अवसंरचना जो आधुनिक भारत की पहचान बने), प्रौद्योगिकी, गतिशील जनसांख्यिकी और मांग को शामिल किया गया है। आज भारत खिलौना निर्माण में चीन से आगे निकल रहा है और चीन को खिलौना क्षेत्र में पटखनी दे रहा है। पिछले कुछ समय में ही भारत की खिलौना इंडस्ट्री में आमूलचूल परिवर्तन आएं हैं और आज भारत की खिलौना मैनुफैक्चरिंग में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है।
आज हम न केवल अपने देश के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए खिलौने बना रहे हैं। दरअसल सरकार ने खिलौना इंडस्ट्री को प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना में शामिल किया है जो इस उद्योग की लंबे समय से चली आ रही मांग में शामिल है। अब तक हम ज्यादातर खिलौने चीन से एक्सपोर्ट करते थे। भारतीय बाजार में चीनी खिलौनों की भरमार थी और एक प्रकार से हम चीनी खिलौनों को खरीदने के लिए मजबूर थे। जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 2020 के अंत तक भारत में खिलौना बाज़ार तकरीबन 16 हजार करोड़ रुपये का था, जिसमें से 25 फीसदी ही स्वदेशी हुआ करता था तथा बाकी 75 फीसदी में से 70 फीसदी सामान चीन से आता था और 5 फीसदी ही दूसरे देशों से एक्सपोर्ट होता था। वास्तव में अब तक सभी भारतीय बाजार चीनी खिलौनों से ही सटे पड़े रहते थे और अधिकतर खिलौना मार्केट पर हमारे पड़ोसी चीन का ही एकाधिकार था। वास्तव में चीन ने भारत में सस्ती दरों पर खिलौनों को बेचकर अपना एकाधिकार जमाया और यही कारण था कि भारतीय बाजार में चीनी खिलौनों की भरमार थी और हम चीनी खिलौनों को खरीदने के लिए एक प्रकार से मजबूर थे, लेकिन अब भारत खिलौना इंडस्ट्री में चीन से आगे बढ़ चुका है और आज हमारे यहां खिलौनों को बनाया जा रहा है। आज भारत में खिलौनों के लिए कच्चा माल तथा प्लास्टिक, कपड़ा, अच्छी तकनीक व प्रशिक्षित श्रम मौजूद है। भारत सरकार ने खिलौना निर्माताओं को महत्त्वाकांक्षी बनने के लिए मन की बात से समय समय पर प्रेरित व प्रोत्साहित किया और शायद यही कारण भी है कि आज भारत में खिलौना इंडस्ट्री लगातार फल फूल रही है। वास्तव में, पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने देश में खिलौना बाजार से जुड़े तमाम खिलौना निर्माताओं और कारोबारियों को प्रोत्साहित करने का कार्य किया है। जानकारी देता चलूं कि पीएम मोदी ने अगस्त, वर्ष 2020 में अपने मन की बात के प्रसारण के दौरान भारत को एक वैश्विक खिलौना निर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने और घरेलू डिजाइनिंग तथा विनिर्माण क्षमताओं को सुदृढ़ बनाने की इच्छा व्यक्त की थी। इतना ही नहीं सरकार ने देश की जनता से भी घरेलू खिलौने खरीदने के अपील की है और यह इसी का असर है जो आज हमें धरातल पर नजर आने लगा है। कुछ समय पहले ही सरकार ने लगभग 160 चीनी कंपनियों को भारत में खिलौने बेचने के लिए अनिवार्य क्वालिटी सर्टिफिकेट जारी नहीं किया, यह भारत सरकार की एक अच्छी पहल कहीं जा सकती है, इससे भारतीय खिलौनों इंडस्ट्री को कहीं न कहीं बल मिलेगा‌। यह बात महत्वपूर्ण है कि सरकार ने 2021 में टॉयकैथॉन और टॉय फेयर की शुरुआत की। सरकार ने जनवरी 2023 में हेमलीज व आर्चीज जैसे चर्चित ब्रांड्स समेत कई अमानक खिलौनों के प्रमुख खुदरा स्टोरों से हजारों की संख्या में खिलौनों को जब्त भी किया है और विदेशी खिलौनों पर बीआईएस गुणवत्ता चिह्न की कमी और नकली लाइसेंस के उपयोग के कारण उपभोक्ता संरक्षण नियामक सीसीपीए ने खिलौनों की गुणवत्ता नियंत्रण आदेश के कथित उल्लंघन के लिए कठोर कदम उठाए गए हैं ‌।जानकारी देना चाहूंगा कि भारतीय खिलौना उद्योग का कारोबार करीब 1.5 अरब डॉलर का है जो वैश्विक बाजार हिस्सेदारी का 0.5% है। भारत में खिलौना निर्माता ज्यादातर एनसीआर, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और मध्य भारतीय राज्यों के समूहों में स्थित हैं। आज विश्व स्तर पर ‘मेड इन इंडिया’ खिलौनों की जबरदस्त मांग है और भारत वैश्विक खिलौना निर्माण केंद्र बनने की ओर लगातार अग्रसर है। आज चीन से खिलौनों का आयात घट चुका है और विदेशों में भारतीय खिलौनों या यूं कहें कि ‘मेड इन इंडिया ‘ खिलौनों की भारी डिमांड है।
आज भारत का खिलौनों का निर्यात बीते सात वर्ष में तीन गुना बढ़ गया है। अब दुनियाभर में भारतीय खिलौना पहुंच रहा है। एक आंकड़े के अनुसार भारत में साल 2024 तक 2-3 अरब डॉलर के खिलौनों के निर्यात की क्षमता है। आज एम एस एम ई क्षेत्र से करीब 4,000 खिलौना उद्योग इकाइयां हैं। वास्तव में,आत्‍मनिर्भर भारत अभियान के लिए यह एक बड़ा कदम है। आज अमेरिका, यूरोप, जापान, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया जैसे देशों के बच्चे भारतीय खिलौने से खेलते हैं। भारतीय खिलौना निर्माता ग्लोबल टाय ब्रांड के मूल निर्माता के रूप में काम कर रहे हैं। एक अन्य आंकड़ा यह बताता है कि भारतीय खिलौना उद्योग वैश्विक उद्योग के आकार का केवल 0.5% है जो एक बड़े संभावित विकास अवसर का संकेत देता है। वैश्विक औसत 5% के मुकाबले घरेलू खिलौनों की मांग 10-15% बढ़ने का अनुमान है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत के खिलौनों के निर्यात ने अप्रैल-अगस्त 2022 में 2013 की समान अवधि के मुकाबले 636 प्रतिशत की असीम वृद्धि दर्ज कराई है। खिलौनों पर जीएसटी की दर 12-18% के बीच है, लेकिन फिर भी कर में कटौती की गुंजाइश है, जिससे खिलौनों की कीमत में और कमी आ गई है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में 32 टाय क्लस्टर विकसित हो रहे हैं और इनमें से कइयों में यूनिट लग चुकी हैं और उत्पादन शुरू हो चुका है। भारत आज अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, मध्य पूर्व, इंडोनेशिया, मंगोलिया, केन्या, न्यूजीलैंड, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों को खिलौने भेज रहा है। जानकारी देना चाहूंगा कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के मुताबिक वित्त वर्ष 2018-19 में भारत ने 37.1 करोड़ डालर का खिलौना आयात किया था जो वित्त वर्ष 2021-22 में घटकर 11 करोड़ डालर रह गया। वित्त वर्ष 2018-19 में भारत ने 20 करोड़ डालर का खिलौना निर्यात किया था जो वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 32.6 करोड़ डालर का हो गया।पहले चीन के 80 से 90 परसेंट तक खिलौने देश में खपते थे, लेकिन अब अधिकांश खिलौने देश में बनते हैं। आंकड़े बताते हैं कि जुलाई 2022 में, भारत का खिलौनों का निर्यात 300-400 करोड़ रुपये से बढ़कर 2,600 करोड़ रुपये हो गया। पिछले कुछ समय में खिलौनों का आयात, जो 3,000 करोड़ रुपये से अधिक हुआ करता था, 70% तक गिर गया है, जो भारत के विदेशी खिलौनों – विशेष रूप से चीन पर निर्भरता में गिरावट का संकेत देता है। वास्तव में, इस गिरावट के पीछे एक प्रमुख कारण खिलौनों के आयात पर मूल सीमा शुल्क को 20% से बढ़ाकर 60% करना था। साथ ही, आयातित खिलौनों की गुणवत्ता पर कड़ी शर्तें आरोपित की गईं, जिससे चीनी खिलौनों की पहले जैसी मार्केट नहीं रही।
बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि खिलौना इंडस्ट्री का बाल विकास, मनोरंजन, शिक्षण और लर्निंग, रोजगार सृजन(आर्थिक प्रभाव), नवाचार और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में तथा हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और प्रवृत्तियों को परिलक्षित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, ‌ लेकिन अभी भी भारतीय खिलौना इंडस्ट्री के समक्ष बहुत सी चुनौतियां हैं जिनमें क्रमशः कच्चे माल की प्राप्ति के लिए विदेशों पर निर्भरता, प्रौद्योगिकी का अभाव, टैक्स की उच्च दरें, पर्याप्त परीक्षण प्रयोगशालाओं, खिलौना पार्कों यानी कि हमारे यहां अवसंरचनात्मक संरचना काफी कमजोर है। इसके अलावा, भारतीय खिलौना उद्योग अभी भी व्यापक (लगभग 90%) रूप से असंगठित है जिससे अधिकतम लाभ प्राप्त करना अत्यंत कठिन हो जाता है। हालांकि सरकार खिलौना कौशल प्रशिक्षण को उच्च प्राथमिकता दे रही है, खिलौना इंडस्ट्री को लगातार प्रोत्साहित कर रही है, लेकिनअब वैश्विक स्तर पर भारतीय खिलौनों को स्पर्धी बनाने के लिए नवाचार और वित्त पोषण के नए मॉडल को अपनाया जाने की जरूरत है। इसके अलावा असुरक्षित खिलौनों को देश में प्रवेश करने से रोकने और स्वदेशी खिलौनों को बढ़ावा देने के लिए सरकार को और भी बहुत से कदम उठाए जाने की आवश्यकता हैं।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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