संपादकीय

अमर रहे गणतंत्र हमारा

खंडित न हो तंत्र दुबारा
अमर रहे गणतंत्र हमारा

जोश एक हो ताव एक हो
बोली भिन्न भाव एक हो
भवसागर में पड़े उतरना
फिर भी वहां नाव एक हो

एक हो मंजिल एक किनारा
अमर रहे गणतंत्र हमारा

अंग भिन्न पर जिस्म एक हो
रंग अनेक पर किस्म एक हो
टूटे ना यह कभी किसी से
दृढ़प्रतिज्ञ यह भीष्म एक हो

मुष्टिबल का दिखे नजारा
अमर रहे गणतंत्र हमारा

कर्मकांड अन्य आशक्ति एक हो
पूजा जो अभिव्यक्ति एक हो
बहे लहू चाहे जितना भी
रणवीरों की पंक्ति एक हो

गण आपस में बनें सहारा
अमर रहे गणतंत्र हमारा

डॉ एम डी सिंह

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