संपादकीय

ब्रिक्स को लेकर भारत का रूख सकारात्मक !

-सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, (उत्तराखंड)

हाल ही में हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में 22 से 24 अगस्त 2023 तक आयोजित 15वें अंतरराष्ट्रीय ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया। जानकारी देना चाहूंगा कि इस सम्मेलन में पांच सदस्य देशों को शामिल किया गया हैं जिनमें क्रमशः ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका हैं तथा जिसमें राष्ट्राध्यक्ष या सरकार के प्रमुख भाग लेते हैं। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि ब्रिक्स की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी और इसका पहला शिखर सम्मेलन 2009 में रूस में हुआ था। शुरुआत में इसमें कुल चार देश ब्राजील, रूस, भारत और चीन शामिल थे। बाद में ब्रिक्स समूह देशों की सहमति से दक्षिण अफ्रीका को भी वर्ष 2010 में इसमें शामिल किया गया था। उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स आपसी आर्थिक विकास की गतिविधियों को गतिशीलता प्रदान करने एवं ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम के लिए कार्य करता है। हाल ही में इसमें कुछ और देशों को भी शामिल किया गया है,जिसकी इस आर्टिकल में आगे बात करेंगे। हाल फिलहाल, प्रश्न यह उठता है कि आखिर ब्रिक्स है क्या और इस समूह के उद्देश्य क्या हैं? तो इस संबंध में सरल शब्दों में जानकारी देना चाहूंगा कि(जैसा कि ऊपर भी जानकारी दे चुका हूं कि) ब्रिक्स दुनिया की अग्रणी उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं, अर्थात् ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका देशों के शक्तिशाली समूह का एक संक्षिप्त रूप है। ब्रिक्स तंत्र का मुख्य उद्देश्य शांति, सुरक्षा, विकास और सहयोग को बढ़ावा देना है। उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स का मुख्यालय चीन के शंघाई में है। ब्रिक्स के सम्मेलन हर साल आयोजित होते हैं। यह जानना रूचिकर होगा कि ब्रिक शब्द का पहली बार प्रयोग वर्ष 2001 में गोल्डमैन के जिम ओ नील द्वारा किया गया था।
वर्तमान समय की बात करें तो ब्रिक्स देशों के पास दुनिया का 25.9 प्रतिशत भू-भाग एवं 43 प्रतिशत आबादी है। विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान करीब 30 प्रतिशत है और ये देश सकल वैश्विक पूंजी का 53% आकर्षित करते हैं। भारत के लिए ब्रिक्स का महत्व यह है कि भारत आर्थिक मुद्दों पर परामर्श और सहयोग के साथ-साथ सामयिक वैश्विक मुद्दों, जैसे- अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में सुधार आदि के माध्यम से ब्रिक्स की सामूहिक ताकत से लाभान्वित हो सकता है। बहरहाल, यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने भी 67 देशों के नेताओं को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया था, जिसमें 53 अन्य अफ्रीकी देश, बांग्लादेश, बोलीविया, इंडोनेशिया और ईरान शामिल हैं। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 2019 के बाद ये पहली बार है जब यह सम्मेलन ऑफलाइन आयोजित किया गया है। वास्तव में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित यह ब्रिक्स अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन उभरती अर्थव्यवस्थाओं के समूह के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी। जानकारी देना चाहूंगा कि इस शिखर सम्मेलन के परिणामस्वरूप कई महत्वपूर्ण बातें हमारे सामने आई हैं, जिनमें ब्रिक्स के विस्तार में अर्जेंटीना, मिस्र, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात(यूएई) का शामिल होना बहुत ही अहम होने के साथ ही विश्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह भी उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स के नये देशों अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की पूर्ण सदस्यता 1 जनवरी 2024 यानी की नये साल से प्रभावी होगी। पाठकों को बताना चाहूंगा कि वर्ष 2010 के बाद से यह ब्रिक्स का पहला विस्तार है। दरअसल ब्रिक्स इसलिए अपना विस्तार कर रहा है ताकि वह विश्व पर अपने प्रभाव को बढ़ा सके, जैसा कि ब्रिक्स देशों के पास अब तक दुनिया का 25.9 प्रतिशत भू-भाग एवं 43 प्रतिशत आबादी है और नये देशों के ब्रिक्स में शामिल होने से उसका प्रभाव विश्व पर और बढ़ेगा। ब्रिक्स में अर्जेंटीना, मिस्र, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को शामिल करने से भारत-चीन संबंधों के प्रभावित होने की प्रबल संभावना है। ब्रिक्स के विस्तार से कहीं न कहीं भारत के विदेशी संबंधों पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। निश्चित ही ब्रिक्स के विस्तार से देश की डिजीटल अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जलवायु के प्रति प्रतिबद्धता को भी बल मिलेगा। सच तो यह है कि ब्रिक्स डिजिटल इकोनॉमी पार्टनरशिप का शुभारंभ अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।
भारत के विदेशी संबंधों और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसकी स्थिति को मजबूत करने में ब्रिक्स की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रहेगी। मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका से नए सदस्यों के शामिल होने से भारत को समूह में एक मजबूत आवाज मिलेगी और इससे भारत के आर्थिक और राजनीतिक रिश्तों में विविधता लाने में भी मदद मिलेगी। इससे चीन पर भारत की निर्भरता कम करने में को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन यहां यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जैसा कि ब्रिक्स के सभी नए सदस्य अपेक्षाकृत चीन के करीब हैं, इससे भारत के लिए लद्दाख में सीमा विवाद परिवर्तन को संबोधित करने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए ब्रिक्स जैसे मुद्दों पर चीन के सामने खड़ा होना और भी मुश्किल हो सकता है। सच तो यह है कि ब्रिक्स के विस्तार से चीन को विश्व मंच पर कहीं न कहीं अधिक वैधता मिलेगी। यह एक कड़वा सच है कि ब्रिक्स पश्चिम का प्रतिकार रहा है और चीन ब्रिक्स का सबसे शक्तिशाली और ताकतवर राष्ट्र है। चिंतनीय यह है कि चीन ब्रिक्स को जी- 7 विरोधी समूह में बदलना चाहता है और एक आम मुद्रा के बजाय अपने देश की मुद्रा युआन को आगे बढ़ाना चाहता है। पाठकों को यहां यह जानना जरूरी है कि भारत ने अब तक ब्रिक्स के विस्तार का अब से पहले कभी भी खुल कर समर्थन नहीं किया था। उल्लेखनीय है कि भारत और ब्राजील ब्रिक्स में सदस्य देशों की संख्या बढ़ाने के लिए राजी नहीं थे, लेकिन हाल ही में भारत ने कहा कि ब्रिक्स को विस्तार के लेकर उसका रुख सकारात्मक है और वो खुले दिमाग से इसका समर्थन करता है। अब देखना यह है कि ब्रिक्स में भारत कैसी रणनीति अपनाता है ?

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *