संपादकीय

माटी का कर्ज उतारती योगेंद्र शर्मा की कृति “मेरा गांव – मेरा जीवन”

पुस्तक समीक्षा

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा

योगेंद्र शर्मा की नई कृति ” मेरा गांव-मेरा जीवन” शनिवार को डाक से प्राप्त हुई। रंगबिरंगा आवरण पृष्ठ एक दृष्टि में आकर्षक है। बारां जिले के प्राचीन शेरगढ़ किले की प्राचीर और धनुष लीला से सजे आवरण से ही अनुमान लगता है की पुस्तक अटरु के संदर्भ में लिखी गई है। पुस्तक में अटरु और इस क्षेत्र से जुड़ी तमाम यादों को 117 पृष्ठों में समाहित किया गया है। दो भागों में लिखी पुस्तक में अटरु की एतिहासिक, सांस्कृतिक और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों को लेखक ने परिश्रम और अपने अनुभवों के साथ 44 शीर्षकों और 105 रंगीन चित्रों के साथ लिपिबद्ध किया है।
पुस्तक पढ़ने पर स्पस्ट महसूस होता है की यह कृति लेखक की अपने गांव की माटी के प्रति कर्ज उतारने की भावना से लिखी गई है जो अनुकरणीय है। अपनी इस भावना को दर्शाते हुए लेखक ने लिखा है उनके मन में यह विचार करीब दो वर्ष पूर्व आया और उन्होंने तत्थपूर्ण जानकारी जानकर विशेषज्ञों के माध्यम से जुटा कर लिखना शुरू किया। इस प्रयास की परिणीति इस सुंदर कृति के रूप में हुई है। मेरा गांव मेरा जीवन शीर्षक से शुरू हो कर लेखन की यात्रा अंतिम पड़ाव चतुर्भुज शिव प्रतिमा पर समाप्त होती है।
अटरु में जन्में लेखक ने खेलने, पढ़ने, मस्ती करने की यादों के साथ-साथ उन क्षणों का भी रोचक वर्णन किया हैं जब वे एक फार्म हाउस पर मटर और मूंगफली खाने का आनंद लेते थे, खूब फुटबॉल खेलते थे, गांव में स्वस्तिक साहित्य संस्थान पुस्तकालय की स्थापना की थी और तीन दिवसीय वार्षिक सांस्कृतिक आयोजन धुनुष लीला उनके के लिए किसी स्वप्निल सपने जैसा होता था। प्रथम भाग में इसके साथ ही प्रमुख महत्वपूर्ण व्यक्तियों सहित अटरु का परिचय, हस्त लिखित पांडुलिपियों सहित 144 वर्ष पुरानी धनुष लीला का जनक संवाद और परशुराम -लक्ष्मण संवाद के साथ विस्तृत वर्णन, स्वतंत्रता सैनानी पंडित अभिन्न हरी जी के कृतित्व और व्यक्तित्व को समाहित किया गया है।
पुस्तक के दूसरे भाग में प्राचीन किले शेरगढ़ का इतिहास – इसकी प्राचीर, मंदिर, मकबरा, कल्ला जी की छतरी, त्रिनेत्र शिवलिंग, गणेश पोल, कालेशाह और उसकी मजार, छतरियां,जैन व बौद्ध धर्म के चिन्ह, वैष्णव संतों की समाधि के साथ विस्तृत विवरण है।,
इस भाग में गढ़िया ( गड़गच) मंदिर, रतनपुरा की छतरियां, अटरु बांध,गणेश मंदिर, श्रद्धा माता मंदिर, दिगंबर जैन मंदिर, बुध सागर तालाब, रेलवे स्टेशन, डिस्टलरी, कुंजेड, सालपुर और पाटन की बावड़ियां, दाता साहब मंडोला, शिव मंदिर बिछालस, सती स्थल बडोरा,कल्लाजी महाराज का इतिहास, महासती स्थल मोठपुर , हाथी दिलोद का मंदिर और खरखड़ा में चर्रभुज शिवलिंग प्रतिमा आदि स्थलों का सचित्र वृतांत लिखा गया है। पुस्तक के पृष्ठ संख्या 74 पर झालावाड़ के इतिहासकार ललित शर्मा का लेख ” अटरु ( बारां ) अल्पज्ञात पुरातात्त्विक कला धरोहर” पुस्तक की गुणवत्ता में चार चांद लगाता है। वहीं पृष्ठ संख्या 72 पर लेखक राकेश शर्मा संदेश देते हैं, ” अटरु की विरासत को जानो, समूह बना कर स्थलों का भ्रमण करें, सोशल मीडिया पर इनके बारे में लिखे और पर्यटन को बढ़ावा दें”।
निसंदेह गांव की माटी का कर्ज उतारने के लिए लिखी गई यह कृति पाठकों को अटरु के सांस्कृतिक परम्पराओं और एतिहासिक स्थलों को देखने के लिए प्रेरित करने में सफल रही है।
पुस्तक का प्रकाशन निजी स्तर पर दुर्गा प्रिंटर्स, संतोषी नगर,कोटा से कराया गया है। इसका मूल्य 200 ₹ है।

लेखक परिचय :

लेखक योगेंद्र शर्मा की यह चौथी कृति है। इससे पूर्व राष्ट्र- संस्कृति के स्वर, राष्ट्र की विभूतियां और गुलदस्ते में कैक्टस प्रकाशित हो चुकी हैं। आप अंग्रेजी लिटरेचर में एम. ए., बी.एड. हैं। ” हिंदी के माथे पर बिंदी” आपकी प्रथम काव्य रचना थी। कविताएं और सामयिक समस्याओं पर आपके लेख विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। शैक्षणिक क्षेत्र में आपको कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। आप शिशु भारती एजुकेशन ग्रुप, कोटा के चेयरमैन है।

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