संपादकीयसैर सपाटा

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात वाराणसी का भारत कला भवन संग्रहालय

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
भारत की कला, संस्कृति, सभ्यता, परंपरा का अनूठा संगम कहीं देखना हो तो उत्तरप्रदेश राज्य में वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर में स्थित भारत कला भवन संग्रहालय को अवश्य देखना चाहिए जहां भारतीय चित्रकला का सबसे बड़ा संग्रह देखने को मिलता है। वर्ष 1902 ई. में विख्यात कला मर्मज्ञ एवं कलाविद पद्मविभूषण राय कृष्णदास द्वारा ‘भारत कला भवन’ संग्रहालय की स्थापना की गई थी। संग्रहालय की चित्र वीथिका में 12वीं से 20वीं शती तक के भारतीय लघु चित्रों का प्रदर्शन अद्भुत है। चित्र ताड़ पत्र, कागज, शीशा, कपड़ा, काठ, हाथी दांत,अभ्रक तथा चमडे आदि पर बनाए गए हैं। भारत में प्रचलित लगभग समस्त चित्र शैलियों के 12 हजार से अधिक चित्रों का विशाल संग्रह यहां उपलब्ध है। यहाँ का चित्र संग्रह, विशेषकर लघुचित्रों का विश्व में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है।
संग्रहालय में चित्र, वीर रोरिक, एलिस बोनर, मूर्ति, बनारस अलंकरण, मृणमूर्ति, महेन्द्र कुमार, साहित्य-विभाग जैसे ग्यारह खंड और वीथिकाएं हैं जिनमें विभिन्न श्रेणी की अनेक दुर्लभ कलाकृतियां प्रदर्शित की गई हैं। लघुचित्रों की विकास गाथा पूर्वी भारत में चित्रित पोथी चित्रों से आरंभ होती है, जिनमें अजंता-भित्ति चित्रों की उत्कृष्ट परम्परा तथा मध्यकालीन कला विशिष्टताओं का अद्भुत समन्वय है। संग्रहालय में कार्तिकेय, शेख फूल, हम्जानामा, प्रसाधिका, औरंगजेब का फरमान, बीदरी के बर्तन और मुगल ग्लास जैसी दुर्लभ भारतीय कलाकृतियां शामिल हैं। इस महत्वपूर्ण कला संग्रहालय में एक लाख से ज्यादा कलाकृतियां
संग्रहित हैं जिनमें सिक्के, मूर्तियां, टेराकोटा, चित्र, पोर्टेट, धातु के पुराने गहने और पाण्डुलिपियां, सोने की मुहरे, मनके, महत्वपूर्ण दस्तावेज, साहित्यिक वस्तुओं के साथ ही विश्व के श्रेष्ठतम भारतीय लघु चित्रों को भी संग्रहित किया गया है।
प्रदर्शित चित्रों का क्रम गोविन्द पाल के शासन के चतुर्थ वर्ष (12वीं शती) में चित्रित बौद्ध ग्रंथ ‘प्रज्ञापारमिता’ से प्रारंभ होता है। भारतीय चित्रकला की सम्पूर्णता के यहां दर्शन होते हैं। संग्रह में पूर्वी भारत के चित्रित बौद्ध ग्रन्थ, पश्चिमी भारत के चित्रित जैन ग्रन्थ तथा कतिपय अन्य चित्रित ग्रन्थ और लोर चन्दा चैर पंचशिका, मृगावत, पूर्व व प्रारम्भिक मुगलकालीन शाहनामा, मुगल सम्राट अकबर, जहांगीर, शाहजहां तथा अन्य मुगल कालीन सम्राटों के समय के अनेक दुर्लभ लघुचित्र यहां उपलब्ध हैं। यहां राजस्थान के मेवाड़ ,बूंदी, कोटा, किशनगढ़ ,बीकानेर, जयपुर, नाथद्वारा, बसोहली, गुलेर, कांगड़ा, विलासपुर गढ़वाल के पहाड़ी शैली के साथ ही पटना, बनारस, अवध तथा दक्षिणी क्षेत्र शैली के चित्र प्रदर्शित हैं। संग्रहालय में बीसवीं सदी के प्राख्यात चित्रकारों अवनिन्द्र नाथ ठाकुर, गगनेन्द्रनाथ, नन्दलाल, यामिनी राय, शैलेन्द्र डे, राम गोपाल विजयवर्गीय एवं अन्य समकालीन चित्रकारों के चित्र भी संरक्षित हैं। भारतीय चित्रों के साथ साथ तिब्बत में चित्रित पटरा, पोथी चित्र और चित्रित थंकां का भी संग्रह भी किया गया है।
यहां की प्राचीन मूर्ति कला स्थापत्य कला और चित्रकारी की चर्चा भारत ही नहीं वरन विदेशों में भी होती है। यहां मौर्य काल लगभग तीसरी शताब्दी ई. पू. से लेकर को 14 वीं शताब्दी तक की मूर्तियां संग्रहित हैं। इनमें भरहूत से प्राप्त निमिंगल जातक, फैजाबाद से मिली प्रसाधिका (द्वितीय शताब्दी ई.) आन्ध्र से प्राप्त नलगिरी विजय (द्वितीय शताब्दी ई) बनारस से प्राप्त कार्तिकेय (पांचवी सदी ई) शाहाबाद, बिहार से प्राप्त इन्द्राणी (छठवीं शदी ई) एटा से प्राप्त कल्याण सुन्दर मूर्ति, शिवविवाह एवं नटराज की प्रतिमा अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। मृणमूर्ति- मिट्टी की पुरानी मूर्तियों के संग्रह में हड़प्पा काल से लेकर अठारहवीं और उन्नसवीं शती तक की वस्तुएं संग्रहित हैं। भारत कला भवन गंगा के मैदानी भाग में मिलने वाली मूर्तियों के संग्रह के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। इनमें मृदंग वादक, शिव मस्तक एवं झूला झ्लती युवती विशेष उल्लेखनीय हैं। मुद्रायें- कला भवन में मुद्राओं का भी समृद्ध संग्रह है। यहाँ थलाई से (पीटकर) बनी मुद्रायें, ढलकर बने ताँबे के सिक्के, इण्डों ग्रीक शासकों के सिक्के, कुषाण एवं गुप्तकालीन स्वर्ण एवं रजत मुद्रायें तथा दिल्ली सुल्तान एवं शासकों के सिक्के उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त ब्रिटिश एवं भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किये गये आधुनिक सिक्के भी रखे गए हैं। सज्जाकला- यहां मध्यकाल में लिखित आभूषण शीशे की सामग्री, धातुकला का बेजोड़ संग्रह है। इनमें जहांगीर का लेखयुक्त मदिरा का प्याला।
कलाभवन के वस्त्र प्रदर्शनों में सूती, रेशमी तथा ऊनी वस्त्रों का विषाल संग्रह है जिसमें बनारसी किमखाब तथा कश्मीरी शाह, विशेष उल्लेखनीय हैं। हथकरघे पर बनी मिश्रित कशीदाकारी वाले कश्मीरी शाही तूश की शाल अपने आप में अद्वितीय है। यहां प्रदर्शन मेंअनुष्ठान तथा मीनाकारी के आभूषण एवं शाही गड़गड़ा और विभिन्न कामदार बर्तन, पीतल एवं ताँबे के ज्योतिष पत्र आदि भी प्रमुख हैं। साहित्य संग्रह में प्राचीन भारत के कर्मकाण्ड, संगीत, ज्योतिष, आयुर्वेद, शिल्प आदि विषयों से संबंधित करीब 6000 हस्तलिखित पोथियां प्रदर्शित हैं। आधुनिक हिन्दी के जनक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’, मुंशी प्रेमचन्द्र, निराला, मैथिली शरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त, राहुल सांस्कृत्यायन, रामचन्द्र शुक्ल, रायकृष्णदास, महादेवी वर्मा, अज्ञेय तथा हिन्दी के अन्य कई प्रमुख साहित्यकारों की हस्तलिखित साहित्य भी यहां संग्रहित हैं।
भारतीय चित्रकला विषय पर अध्यन और शोध के लिए यह संग्रहालय एक दम सही और उचित जगह है। इस समृद्ध और विशाल संग्रहालय में छात्रों और अध्येताओं के शोध के लिए ढेरों ग्रन्थों से समृद्ध एवं साधन सम्पन्न पुस्तकालय एवं आधुनिक समय के दृश्य श्रव्य शैक्षणिक साधनों से युक्त संगोष्ठी कक्ष उपलब्ध है। संग्रहालय अपने देेेशी-विदेशी पर्यटकों और शोधार्थियों के आकर्षण का विशेष केन्द्र है, नियमित ढेरों देशी-विदेशी पर्यटक यहाँ के दुर्लभ संग्रह को देखने के लिए आते रहते हैं। संग्रहालय सुबह 10.00 से सांय 5.00 बजे तक दर्शकों के लिए खुला रहता है।

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