संपादकीय

बोतलबंद पानी में प्लास्टिक का घुलता जहर !

सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार (उत्तराखंड)

पहले की तुलना में आज आदमी की जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन आ गये हैं। बढ़ती जनसंख्या के साथ धरती के संसाधनों पर भी बहुत बोझ बढ़ा है। सर्वविदित तथ्य है कि जब जनसंख्या बढ़ती है तो पर्यावरण प्रदूषण में भी निश्चित ही बढ़ोतरी होती है। आज विकास के बीच विभिन्न उधोग-धंधों में भी बहुत बढ़ोत्तरी हुई है और यही कारण है कि औधोगिक उत्सर्जन में भी इजाफा हुआ है। बढ़ते वाहनों के बढ़ते प्रदूषण ने भी मानव जीवन शैली को बहुत प्रभावित किया है। दरअसल, प्रदूषण पृथ्वी पर जीवन को बनाये रखने वाले मूल कारकों को प्रभावित करते हैं। यह हमारे जीवन के लिये आवश्यक वायु, जल तथा अन्य पारिस्थितिकी तंत्र, जिस पर हम सभी निर्भर हैं, को नकारात्मक रूप से बहुत हद तक प्रभावित करते हैं। सच तो यह है कि प्रदूषण आज मनुष्यों और अन्य जीवित प्राणियों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। आज पहले के जमाने की तुलना में अधिक चिकित्सा सुविधाएं होने के बावजूद स्वास्थ्य में गिरावट देखने को मिल रही है। कारण प्रदूषण ही है।नित नये चिकित्सा अनुसंधानों, खोजों के बाद रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है ,तो उसकी वजह हमारी जीवनशैली में शामिल वे सभी कारक हैं, जो शनै:शनै: हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। ऐसे कारक हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हो रहे हैं लेकिन इनका हमें भान होते हुए भी भान नहीं है। जानकारी होने के बावजूद हम हमारे स्वास्थ्य को लगातार नजरंदाज कर रहे हैं। इसे हम मजबूरी कहें या जो भी कहें लेकिन इन कारकों ने मानवजाति पर बहुत अधिक प्रभाव डाला है। आज रोगियों से अस्पताल के अस्पताल भरे पड़े हैं और नयी नयी बिमारियां सामने आ रही हैं। जल को ही लीजिए। जल सभी प्राणियों के जीवन के लिए एक बहुत ही आवश्यक तत्व है। कहा भी गया है कि ‘जल ही जीवन है।’
आज बढ़ती जनसंख्या के बीच बड़े शहरों से लेकर गांव तक में बोतलबंद पानी का उपयोग होने लगा है। आज बाजार में बोतलबंद पानी के अनेक ब्रांड उपलब्ध हैं, लेकिन क्या हमने कभी इस बारे में थोड़ा सा भी चिंतन किया है कि बोतलबंद पानी हमारे स्वास्थ्य के लिए ठीक भी है या नहीं। हम बिना विचार किए हर कहीं से बोतलबंद पानी खरीदते हैं और धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं। वास्तव में,जल प्रदूषण और इससे बढ़ती स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं ने भारत में मिनिरल वॉटर के कारोबार के साइज को बड़ा किया है और शायद यही कारण है कि आज देशभर में बोतलबंद पानी की खपत बढ़ी है। मेट्रो सिटीज में तो यह खपत बहुत अधिक है, क्यों कि वहां पर गांवों की तरह प्याऊ जैसे विकल्प विरले ही उपलब्ध होते हैं।एक आंकड़े के अनुसार भारत में बोतलबंद पानी का मार्केट साल 2021 में करीब 20 हजार करोड़ रुपये का था। जानकारी मिलती है कि वर्ष 2024 में भारत में बोतलबंद पानी बाजार में राजस्व 6.1 बिलियन यूएस डॉलर का है और इसके सालाना 4.84 बढ़ने का अनुमान है। जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 2027 तक, घर से बाहर की खपत, जैसे बार और रेस्तरां में, बोतलबंद पानी बाजार में खर्च का 5% और वॉल्यूम खपत का 2% होने की उम्मीद है। इतना ही नहीं, इस खंड में मात्रा 2027 तक 28.1 बिलियन लीटर तक पहुंचने का अनुमान है।इसके अलावा, वर्ष 2025 में वॉल्यूम में 4.4% की वृद्धि होने का अनुमान है। आपको जानकारी हासिल करके हैरानी होगी कि वर्ष 2024 में बोतलबंद पानी बाजार में प्रति व्यक्ति औसत मात्रा 17.74 लीटर तक होने की उम्मीद जताई गई है। बढ़ते शहरीकरण, औधोगिकीकरण, बढ़ती जनसंख्या और पानी की गुणवत्ता और सुरक्षा के बारे में बढ़ती चिंताओं के कारण भारत का बोतलबंद पानी बाजार आज बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है। बाजार ने हमें पानी के विकल्प दिए हैं लेकिन ये सुविधाजनक पानी के विकल्प हमारी जिंदगी में कहीं न कहीं जहर घोल रहे हैं। अध्ययन बताते हैं कि बोतलबंद पानी अनुमान से कहीं ज्यादा खतरनाक है।
अध्ययन बताते हैं कि पानी की हर बूंद में प्लास्टिक के लाखों कण घुले होते हैं, जो पानी के साथ हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। हाल ही में, वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक से बोतलबंद पानी में मौजूद प्लास्टिक के कणों की गिनती की। जानकारी देना चाहूंगा कि प्रोसेडिंग्स आफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज नाम की संस्था ने यह खुलासा किया है।इसमें एक नई टेक्नॉलजी की मदद ली गई है, जिसे स्टिमलेटेड रमन स्कैटरिंग माइक्रोस्कोपी कहा जाता है। जानकारी देना चाहूंगा कि पहले तो ये महीन से महीन प्लास्टिक टुकड़ों को खोजती है फिर इनकी गिनती भी लगाती है। स्टडी में बताया गया है कि एक लीटर बंद बोतल पानी में औसत 2.4 लाख प्लास्टिक के कण मिले हैं।यह आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए क्यों कि यह हाल तब है जब इस स्टडी में टाप दस ब्रांडेड कंपनियों की पानी की बोतलों को शामिल किया गया है।रिसर्चर्स के अनुसार, दुकानों में बिकने वाले बोतलबंद पानी में प्लास्टिक के 10 से 100 गुना बारीक टुकड़े या नैनोकण हो सकते हैं। ये इतने छोटे होते हैं कि उन्हें माइक्रोस्कोप के नीचे भी देखना संभव नहीं होता।शोध में बताया गया है कि इनका आकार मनुष्य के बाल की औसत चौड़ाई का लगभग 1,000वां हिस्सा होता है। ये इतने छोटे होते हैं कि वे पाचन तंत्र से लेकर फेफड़ों और ब्‍लड स्‍ट्रीम तक एक टिश्‍यू से दूसरे टिश्‍यू को आसानी से पार कर सकते हैं। इस तरह से यह सिंथेटिक केमिकल धीरे-धीरे पूरी बॉडी में फैलकर कई अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं।अमरीकी वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक बोतलबंद पानी में प्लास्टिक के लाखों छोटे कण मौजूद होते हैं।स्टडी में इस बात की पुष्टि की गई है कि बोतल का पानी पीने के बजाय अगर नल का पानी स्‍टील या कांच के गिलास में पिया जाए, तो यह ज्‍यादा सुरक्षित है। आज रेगिस्तान, मैदान से लेकर पहाड़ों तक प्लास्टिक का दैत्य आज फैला हुआ है, क्यों कि आज आदमी विलासितापूर्ण जीवन जीने का आदी हो चुका है।आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पूरी दुनिया में हर साल इंसान 40 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक का प्रोडक्शन कर रहा है। उसमें से 3 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक पानी या जमीन पर फेंका जा रहा है। प्लास्टिक करोड़ों सालों तक नष्ट नहीं होता है और न ही गलता है, तो प्रश्न यह है कि आखिर ये जाता कहां है। दरअसल , ये किसी न किसी रूप में हवा के जरिए हमारी सांस में जाता है, मिट्टी में मिलकर फसलों, पेड़ों और अंत में हमारे भोजन में जाता है। कुल मिलाकर हमारा ही बनाया दैत्य पलटकर हमारे लिए ही घातक व खतरनाक सिद्ध हो रहा है।आज हमारे पर्यावरण में चारों ओर प्लास्टिक का ही साम्राज्य फैला हुआ है। हमारे नींद से जागने से लेकर सोने तक हम किसी न किसी रूप में प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं। हवा पानी में, हमारे खाने में जिधर नजर दौड़ाएं उधर माइक्रो और नैनो प्लास्टिक तैर रहा है लेकिन हम उसे अपनी नंगी आंखों से नहीं देख पाते हैं। हमारे रोजाना इस्तेमाल की लगभग लगभग चीजें प्लास्टिक में ही तो पैक हैं। बिस्किट, चिप्स, नमकीन,टाफी, चाकलेट, पानी की बोतलों से लेकर ऐसा क्या है, जिनमें किसी न किसी रूप में प्लास्टिक मौजूद नहीं है। यह प्लास्टिक ही है जो आज ल्यूकेमिया, लिंफोमा, ब्रेन और ब्रेस्ट कैंसर समेत अन्य कैंसर, प्रजनन क्षमता को कम करने जैसी अनेक घातक व गंभीर बीमारियों को जन्म दे रहा है और हम अनजान बने हुए हैं।आज अंटार्कटिका की बर्फ से लेकर पहाड़ों तक में प्लास्टिक का साम्राज्य है।
प्लास्टिक हमारे फेफड़ों के लिए, हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो रहा है। प्लास्टिक का ज्यादा इस्तेमाल अस्थमा और पल्मोनरी कैंसर को बुलावा है। इसमें मौजूद लेड, मरकरी और कैडवियम बर्थ डिसऑर्डर पैदा कर सकते हैं। प्लास्टिक में घातक टॉक्सिन बीपीए बिस्फेनॉल ए होता है, पेड़-पौधों और फसलों को नुकसान पहुंचाता है। प्लास्टिक हमारे डाइजेस्टिव सिस्टम, किडनी, ब्रेन को नुक्सान पहुंचा रहा है। इनकी घातकता का खतरा इसलिए भी है कि ये माइक्रोप्लास्टिक्स की तुलना में जल्दी हमारी कोशिकाओं व रक्त में प्रवेश करके शरीर के अवयवों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।अनुसंधानकर्ताओं ने चिंता जतायी है कि प्लास्टिक के ये सूक्ष्म कण नाल के जरिये अजन्मे बच्चे देह भी पहुंच सकते हैं। आज हम बोतलबंद पानी पीते हैं लेकिन लगातार बोतलाें से पानी पीना शरीर में प्लास्टिक पॉल्यूशन को बढ़ाने जैसा है। ये बहुत छोटे-छोटे कण शरीर के मुख्‍य अंगाें के सेल्‍स और टिश्‍यू पर अटैक करते हैं और फेथलेट, बिस्फेनॉल और हैवी मेटल जैसे हानिकारक केमिकल को जमा करके सेलुलर प्रोसेस को डिस्‍टर्ब कर सकते हैं। ग्लोबल लेवल पर देखें तो हर साल 11,845 से 1,93,200 माइक्रोप्लास्टिक पार्टिकल्स इंसान निगल जाता है। हालांकि, इन पार्टिकल्स का सबसे बड़ा सोर्स बोतलबंद पानी है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि बाजार ने मुनाफे ने मानवजाति को अनेक सस्ते विकल्प तो दिये हैं ,लेकिन साथ ही बीमारियों के लिये भी उर्वरा जमीन तैयार कर दी है। आज सुविधा के लिये हम सफर में, स्कूल-कॉलेज तथा ऑफिस जाने के दौरान प्लास्टिक वाली पानी की बोतल लेकर चलते हैं। स्कूली बच्चों के टिफिन तक प्लास्टिक के होते हैं। हाल ही में जो अध्ययन किया गया है वह अमेरिका की कुछेक शीतल जल बेचने वाली कंपनियों की बोतलों के नमूने लेकर किया गया है, ऐसे में भारत जैसे विकासशील देश में बिकने वाली, गुणवत्ता के लिहाज से हल्की बोतलों से यह संकट कितना बड़ा हो सकता है, अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है।अध्ययन बताता है कि बोतलबंद पानी में प्लास्टिक कण पहले के अनुमान से बढ़कर सौ गुना अधिक संख्या में हो सकते हैं। ऐसे में सफर करते समय प्लास्टिक बोतलबंद पानी का इस्तेमाल कम से करना चाहिए, जैसा कि स्टील की बोतल या अन्य विकल्प अपनाये जा सकते हैं लेकिन फिर भी यदि बोतलबंद पानी का उपयोग करना भी पड़े तो बोतलबंद पानी व बोतल की क्वालिटी पर जरूर ध्यान देना चाहिए‌। हमें यह चाहिए कि जब कभी भी हम पानी खरीदें या फ्रिज में रखें तो उसके लिए हम शीशे की बोतल का इस्तेमाल करें। हालांकि, शीशे के बोतल के साथ हमें इस बात का ख्याल जरूर रखना चाहिए कि हम उसे समय समय पर गर्म पानी से धुलते रहें।इससे हम बैक्टीरिया से होने वाले तमाम रोगों से बचे रहेंगे। बोतलों में स्टील और तांबा अन्य विकल्प हैं। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज कहीं न कहीं प्लास्टिक की बोतलों में पाये जाने वाले रसायन लोगों के प्रतिरक्षातंत्र को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में बेहतर होगा कि लोग पीने के पानी के लिए परंपरागत विकल्पों को गंभीरता से लें। ऊपर बता चुका हूं कि सुरक्षित होगा कि हम दैनिक व्यवहार में प्लास्टिक की बोतल के स्थान पर स्टील, कांच या तांबे की बोतलों को प्राथमिकता दें।ये बोतलें थोड़ी महंगी या भारी जरूर हो सकती हैं लेकिन सेहत के लिये अच्छी हैं। बोतलें ही नहीं आम जीवन में हमें प्लास्टिक की थैलियों के उपयोग से भी बचना चाहिए और जूट या कपड़े अथवा कागज़ के बैग्स का इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे हमारा पर्यावरण भी बचा रहेगा और हमारा स्वास्थ्य भी। हमें ऐसे प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचना चाहिए जिसे एक बार इस्तेमाल के बाद ही फेंकना होता है जैसे प्लास्टिक के पतले ग्लास, कटोरियां, डिस्पोजेबल, तरल पदार्थ पीने की स्ट्रॉ और इसी तरह का अन्य सामान। हमें चाहिए कि हम मिट्टी के पारंपरिक तरीके से बने बर्तनों या धातुओं यथा तांबा, कांसा आदि के बर्तनों के इस्तेमाल को बढ़ावा दें। हमें यह चाहिए कि हम प्लास्टिक सामान को कम करने की कोशिश करें। धीरे-धीरे प्लास्टिक से बने सामान की जगह दूसरे पदार्थ से बने सामान अपनाएं। प्लास्टिक की पीईटीई और एचडीपीई प्रकार के सामान हमें चुनने चाहिए क्योंकि यह प्लास्टिक आसानी से रिसाइकल हो जाता है। हमें यह चाहिए कि हम कम से कम प्लास्टिक सामान फेंकने की कोशिश करें। अपने आसपास प्लास्टिक के कम इस्तेमाल को लेकर आमजन के साथ चर्चा करें। आज हमारे देश में भी अनेक ऐसे सेंटर स्थापित हो गए हैं जहां प्लास्टिक रिसाईकल किया जाता है। हमें यह चाहिए कि हम अपने कचरे को वहां पहुंचाने की व्यवस्था करें। हम कभी भी खुद प्लास्टिक को खत्म करने की कोशिश न करें। क्यों कि न पानी में, न जमीन पर और न ही जमीन के नीचे प्लास्टिक खत्म होता है। इसे जलाना तो पर्यावरण के लिए और भी अत्यधिक हानिकारक और घातक है, क्यों कि इसे जलाने से कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं। वास्तव में सच तो यह है कि प्लास्टिक का उपयोग पर्यावरण और संपूर्ण जीव जगत के लिए बहुत ही घातक है। हमें एक जागरूक नागरिक होने के नाते प्लास्टिक के प्रति सतर्कता बरतनी चाहिए। सरकार और पर्यावरण संस्थाओं के अलावा भी हम सभी की पर्यावरण के प्रति कुछ खास जिम्मेदारियां हैं, जिन्हें अगर समझ लिया जाए तो पर्यावरण को होने वाली हानि को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।

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