संपादकीय

विजय कुमार शर्मा ने कथा और कहानियों से साहित्य को समृद्ध किया

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा

“इनकी कहानियाँ मात्र समाज में होने वाले परिवर्तन की गाथा ही नहीं वरन् सामाजिक संघर्ष और आस की पराकाष्ठा को भी उजागर करती है।”कथाकार के साहित्य सृजन की चरम परिणीति क्या होगी इसका अंदाज़ा आगाज़ देख कर ही लगाया जा सकता है। देश में राजस्थान के कोटा सशक्त कथा शिल्पी विजय कुमार शर्मा ने ऐसे साहित्यकार के रूप में अपनी पहचान बनाई जिन्होंने अपनी कहानियों और लघु कथाओं से हाड़ोती अंचल के साहित्य को समृद्ध बनाया है। इनका सृजन इनकी बौद्धिक विचारशीलता का तो प्रतिबिंब है ही साथ ही पाठक को मनोरंजन के साथ – साथ परिवेश से जोड़ता है और चिंतन की एक दिशा प्रदान करता हैं। साहित्य के क्षेत्र में अभी इनका प्रारब्ध है। साहित्य सृजन की लंबी यात्रा तय करनी है और कई प्रकाशन और पुरस्कार निश्चित ही इनकी झोली में होंगे इसमें कदापि कोई संदेह नहीं है।
** सृजन की प्रभावशीलता का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि इनके 15 कहानियों के प्रथम संग्रह “फाँस” को पहली बार में ही राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर से प्रकाशन हेतु आर्थिक सहयोग प्राप्त होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। विजय कुमार शर्मा का कहना है कि “वस्तुतः कहानी में कल्पनाएँ तो बहुत कम होती हैं। हमारे आसपास की घटनाएँ और पात्र ही रात- दिन कहानियों को जन्म देते हैं। इन पात्रों की जो अनकही है वही मेरी कहानियाँ बन जाती है। ऐसे ही सुंदर पुष्पों से मेरी “फाँस” कहानी संग्रह रूपी फूल बगिया तैयार हुई है।”
इसका हर एक फूल अलग-अलग भावनाओं के रंग और सुगंध लिये हुए है। इस संग्रह में प्रायश्चित, ऊँच-नीच,अहं के घेरे,बेरहम, पहचान, महक उठी मालती, इंद्रधनुष, प्रतिदान,जवाब,फ़र्ज, उपहार, निरुत्तर,फाँस मोती और प्रेम के पर्याय कहानियां संकलित की गई हैं।
** फांस कहानी संग्रह के बारे में कोटा के नामी कथाकार और समीक्षक विजय जोशी टिप्पणी करते हैं, ” अपने परिवेश प्रति सजग और व्यापक दृष्टि से सम्पन्न व्यक्ति जब अपने विचारों को अपनी अनुभूति के आधार पर गहराई से विश्लेषित करता है तो उसके सामाजिक और पारिवारिक सरोकारों की स्व चेतना का आभास होता है। यह सन्दर्भ जब एक सृजनकर्ता के साथ सामने आता है तो वह अपनी रचना में नवीन तथ्यों को ही उजागर नहीं करता है वरन् तार्किक रूप से भी अपनी संवेदना के आयामों को उभारता है। इन्हीं सन्दर्भों को अपने भीतर तक संरक्षित और पल्लवित किये हुए हैं कहानीकार विजय कुमार शर्मा जिनकी कहानियाँ अपने समय के साथ कदमताल करते हुए पाठकों को पठन हेतु आमंत्रित करती हैं। कहानियों की यही विशेषता इन्हें एक संवेदनशील कहानीकार के रूप में सामने लाती हैं। इनका कहानी संग्रह “फाँस” मानवीय सन्दर्भों का ऐसा कहानी संग्रह है जिसमें परिवार और समाज के बदलते मूल्यों का सच और उससे उपजे प्रभाव का का खुलासा हुआ है। शीर्षित कहानी “फाँस” की तासीर प्रतीकात्मक रूप में समूचे कहानी-संग्रह में अन्तःसलीला-सी बहती प्रतीत होती है। कहानियों के सभी पात्र अपने-अपने मन-मस्तिष्क में करवट लेती वैचारिक चुभन से जीवन के पथ पर अग्रसर होते हैं। संग्रह की प्रथम कहानी ‘प्रायश्चित’ कहानी में व्यक्ति को न समझने की ग्लानि को उजागर किया गया है, वहीं ” ऊँच-नीच” कहानी ‘मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है’ को सार्थक रूप से सामने लाती है। ‘अहम् के घेरे’ यथा शीर्षक पात्रों की भाव-संवेदनाओं को उजागर करती है। ‘बेरहम’ कहानी में पारिवारिक द्वन्द्व और अपने-अपने स्वार्थ में डूबे पात्रों का वास्तविक रूप गहराई से विवेचित हुआ है।
** आपका एक बाल कहानी संग्रह ” असली जीत” के रूप में प्रकाशन की प्रक्रिया में है जिसमें 9 कहानियों का संग्रह है। आपने अब तक कुल 40 कहानियां,80 लघु कथाएं तथा कुछ लेख और कविताओं का सृजन भी किया है। लेखन की प्रेरणा पर आप बताते हैं कि ‘प्राथमिक विद्यालय से ही हिन्दी की कविताओं को कंठस्थ करते हुए ,अमर चित्रकथा,चंपक,नंदन,सौरभसुमन ,चाचाचौधरी,धर्मयुग,इत्यादि पत्रिकाओं को पढ़ते हुए यह सफ़र विद्यालय और महाविद्यालय की प्रतियोगिताओं जैसे बाल दिवस,गांधी जयंती,तुलसी जयंती,विज्ञान दिवस, वादविवाद मे मिले पुरस्कार, प्रशंसा,और सम्मान ही लिखने की प्रेरणा बन गये।
** स्कूली जीवन में जहाँ “पत्र संपादक के नाम”और कॉलेज में दैनिक भास्कर के “आह और वाह” व्यंग कॉलम में स्थान मिलने से ऊर्जा में बढ़ोतरी हुई वही डी.सी.एम. श्रीराम् की विभागीय पत्रिका “श्रीराम पत्रिका” में कविताओं और आलेख का प्रकाशन हुआ।
नवनीत हिन्दी डाइजेस्ट जैसी प्रतिष्ठित पुस्तक ने कहानियों को छापकर लिखने के नये आयाम प्रदान किए। आकाशवाणी केंद्र से भी आपकी कहानियां प्रकाशित हुई हैं। आपकी एक सशक्त कविता ” चलता चल” की बानगी और इसकी गहराई देखिए……….
डाल अपनी कश्ती को
उत्ताल तरंगित् जीवन सागर में
डूबने, उतरने और लहराने दे
मत हट पीछे, मत बन कायर
मान दुःख सुख को ज्वार भाटे।
खैता जा कश्ती को किनारे पे,
मुश्किलें सब हो जाएगी आसान !
ज्यों थम जाते तूफान !
मत कर चिंतन पाँवों में चुभते शूलों का,
आँखों में रख सपना सुरभित पुष्पों का।
बढ़ता चल, बढ़ाता चल,
रे पथिक विजय पथ की राह में,
कदम बढ़ाता चल।
चलता चल,चलाता चल,
जब तक न हो जीवन अस्ताचल।

** परिचय : कथाकार विजय कुमार शर्मा का जन्म 14 जनवरी 1964 को माता स्व.उषा शर्मा एवम पिता स्व. रमेशचंद्र शर्मा के आंगन में इंदौर में हुआ। आपने (जियोलॉजी) भू – गर्भ विज्ञान में एम.एससी की डिग्री प्राप्त की। आप डी.सी.एम. श्रीराम लिमिटेड से सेवा निवृत हैं। आपको लिखने के साथ – साथ देशाटन में विशेष रुचि होने से आपने भारत के 17 राज्यों, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड एवं केंद्र शासित प्रदेश, दमन, दीव, चंडीगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थलों का भ्रमण किया और इनकी संस्कृति को देखा और समझा। इनका विचार अपनी यात्रा – संस्मरण पर एक किताब लिखने का है। खास एक बात और आपने फिल्म समीक्षा के क्षेत्र में भी एक कदम बढ़ाया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *