शिक्षा

जिंदगी के सार्थक होने या बर्बाद होने के मायने क्या हैं?

सक्सेस गुरु ए.के. मिश्रा
डायरेक्टर (चाणक्य आई ए एस एकेडमी, नई दिल्ली)

हम अपनी जिंदगी को किस तरह मापते हैं? हमारी नजर में जिंदगी का सार्थक होना या जिंदगी का बर्बाद होने के क्या मायने हैं? क्या कभी हमने अपने जीवन में कुछ लम्हे निकालकर ये सोचा है कि हमने अपनी अभी तक की जिंदगी में क्या किया? जो भी निर्णय लिया क्या वे सही थे या नहीं? अगर हम इस पर ध्यान दें तो ये पाएंगे कि क्या हम अपनी क्षमताओं को पूरी तरह इस्तेमाल कर पाए या नहीं? लेकिन ये हम इसे कैसे मापेंगे?
वैसे हमारे इस धरती पर आने से पहले ही प्रकृति हमारे लिए कुछ लक्ष्यों को निर्धारित कर देती है। हम पैदा होते हैं, बढ़ते हैं, जवान होते हैं, बूढ़े होते हैं और फिर मर जाते हैं। ऐसे ही कुछ लक्ष्य हमारे समाज द्वारा भी निर्धारित किए जाते हैं। जैसे हम पढ़ते हैं, नौकरी करते हैं, शादी करते हैं, परिवार बढ़ाते हैं, उन्हें उनके जीवन में व्यवस्थित करते हैं और फि र जीवन के आखिरी पड़ाव में धूप में बैठकर अपने थके हुए पैरों को आराम देते हैं।
बहुत से लोग इसी प्रकिया को दोहराने में जिंदगी की सार्थकता समझते हैं। वे आगे बढ़ते हैं, शादी करते हैं, परिवार बढ़ाते हैं। बच्चों को सेटल करते हैं और जीवन को संतुष्टि से जीते हुए एक दिन मर जाते हैं। इसी जीवन को वे सार्थक समझते हैं। लेकिन इसी धरती पर ऐसे भी लोग हैं जो कि जीवन को अपनी तरह से जीने में विश्वास रखते हैं। वे अपने लिए मंजिलें और लक्ष्य स्वयं ही निर्धारित करते हैं। वे कुछ ऐसा कर जाते हैं कि उनको दुनिया से चले जाने के बाद भी लोग उन्हें याद रखते हैं। पूरी दुनिया के लिए वे एक मिसाल बन जाते हैं, उनकी दूरदर्शिता और चाहत उन्हें वहां तक पहुंचा देती है, जहां तक बाकी लोग जाने की सोच भी नहीं सकते। वे जिस भी क्षेत्र में जाते हैं वहां करिश्मा ही कर देते हैं।
बहुत से लोगों में कुछ ऐसा होता है कि जब तक जो उन्होंने सोचा है उसको हासिल न कर लें, वे चैन से नहीं बैठते हैं। हो सकता है कि आप के अंदर भी वह बेचैनी हो या न हो। वैसे भी आप तब तक ट्रेन में नहीं बैठते हैं, जब तक आप को आप की मंजिल का न पता हो, तो आप अपनी जिंदगी में ऐसा कैसे कर सकते हैं? इसलिए जीवन को सार्थकता से जीने के लिए यह आवश्यक है कि आप अपने लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित करें जिन्हें आप अपने जीवन की उपलब्धियों से माप सकें। इस तरह से लक्ष्य निर्धारित करके उन्हें प्राप्त करने की खुशी में ही पूर्णसंतुष्टि होती है।
– सबसे पहले अपने जीवन के पिछले हिस्से को देखकर अपने आप को ध्यान से देखें।
– अपनी कमजोरियों और ताकत को पहचानें।
– उस चीज के बारे में सोचें जो आप को सबसे ज्यादा खुशी देती है।
– संभावनाओं की सीमाओं को देखें और उनके परे भी झांकने की कोशिश करें।
अपने सपने को छोटे-छोटे लक्ष्यों में निर्धारित करें और आगे बढ़ें, फिर हर उपलब्धि पर खुद को एक उपहार या पुरस्कार दें।
– उम्र के साथ लक्ष्य और प्रेरणाएं बदलती हैं, इसलिए अपने लक्ष्यों को बदलते रहें।
लेकिन गलती ये होगी कि हम अपने आप को अपने करियर तक सीमित न कर दें, जो कि हम सब लोग अक्सर कर बैठते हैं। एक ब्यूरोक्रेट अपनी तरक्की पर, बिजनसमैन अपने बिजनसडील पर ही अपनी उपलब्धियों को मापता है। इसी तरह हम भी अपने जीवन का लक्ष्य दे सकते हैं, लेकिन ये तभी हो सकता है जब हम अपनी ताकत, संभावनाओं और कमियों को अच्छी तरह से जानते हों। तो अपने जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने और उसे प्राप्त करके संतुष्ट होने में ही जीवन की सार्थकता छिपी है। ये तभी संभव है जब हम जानते हों कि हम किस दिशा में जा रहे हैं और हमें ये रास्ता कहां तक पहुंचाएगा।

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