फिल्म साइन करते वक्त मेरे लिए सबसे ज़रूरी कहानी होती है : मनोज वाजपेयी
फिल्म ‘‘गली गुलियां’’ इसी सप्ताह यानि 7 सितंबर को रिलीज़ हो रही है। फिल्म के रिलीज़ होने से पहले अभिनेता मनोज वाजपेयी इसके प्रमोशन में लगे हैं। हाल ही में फिल्म के प्रमोशन के सिलसिले में मनोज वाजपेयी और निर्देशक दिपेश जैन दिल्ली के जनकपुरी इलाके में स्थित ‘सिनेपोलिस जनक सिनेमा’ में अपने प्रशंसकों और मीडिया से रूबरू हुए। इस फिल्म में मनोज अपने अवरुद्ध मनोविज्ञान से जूझते एक पागल इंसान का रोल निभा रहे हैं। इस फिल्म के लिए मनोज कों मेलबर्न फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट ऐक्टर का अवॉर्ड भी मिल चुका है। फिल्म की निर्माता एक्सटेंट मोशन पिक्चर्स की शुचि जैन हैं
ड्रीमरोल के बारे में मनोज से पूछने पर उन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से किसी भी कलाकार से यह न पूछा जाए कि उसका सबसे अच्छा किरदार कौन सा रहा है क्योंकि कलाकार, कलाकार होता है वो हर रोल के लिए पूरी शिद्दत के साथ काम करता है जिस तरह एक मां अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है बिना किसी भेदभाव के अपने हर बच्चे को सीने से चिपकाए रखती है, ठीक उसी तरह कलाकार भी अपने हर किरदार को पूरी मेहनत और लगाव के साथ करता है। मेरा अपना मानना है कि अभिनेता जैसे-जैसे मेच्योर होता है, जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती जाती है, जैसे-जैसे वह जिंदगी को देखता है वो उतना बढ़िया अभिनेता बनता जाता है। अभिनेता हमेशा किरदार से जुड़ा होता है और किरदार जिंदगी से जुड़ा होता है इसलिए जितना आप जिंदगी को देखते है, जितना आप जिंदगी को देखते-देखते पकते जाते हैं उतना आप देखेंगे कि आप मैच्योर होते जाते हैं। जितना आदमी मेच्योर होता है उतना एक्टर मेच्योर होता है उसी के साथ-साथ एक्टिंग में परफेक्शन आता जाता है। गली-गुलियां जैसी फिल्में मुझे मैच्योर बनाती है और मुझे कुछ नया सिखाती हैं।
जब भी मैं कोई फिल्म साइन करता हूं उस वक्त मेरे लिए सबसे ज़रूरी चीज़ कहानी होती है। अगर मैं सत्समेव जयते नहीं करता तो मैं यह देखता हूं कि यह फिल्म कमिर्शियल फिल्म है कि नहीं, कहानी मेरे दिल को छूती है कि नहीं। ‘गली-गुलियां जब मैंने पढ़ी तो जो कुछ भी किरदार के साथ घट रहा था वो मेरे दिल को छू रहा था…..मेरे दिमाग को छू रहा था। जब इस तरह की स्क्रिप्ट आपके दिल और दिमाग को छूती है तब उस काम में आपका परफेक्शन नज़र आता है और एक अच्छी फिल्म बनती है।
-शबनम नबी