मूवी रिव्यु

समाज के बीच एक गंभीर बीमारी को हल्के-फुल्के अंदाज़ में दिखाती है फिल्म ‘गाॅन केश’

फिल्म का नाम : ‘गाॅन केश’
फिल्म के कलाकार : श्वेता त्रिपाठी, विपिन शर्मा, दीपिका अमीन, जितेंद्र कुमार,
फिल्म का निर्देशक : कासिम खालो
रेटिंग : 3/5

निर्देशक कासिम के निर्देशन में बनी फिल्म ‘गाॅन केश’ एक गंभीर बीमारी ‘एलोपिशिया’ पर आधारित है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के सिर के बाल जगह-जगह से बड़ी मात्रा में झड़ने लगते हैं और एक समय के बाद व्यक्ति पूरी तरीके से गंजा हो जाता है। यदि यह बीमारी किसी महिला को हो जाती है तो उसकी ज़िदगी में क्या बदलाव आते हैं और बीमारी की वजह से समाज का उस व्यक्ति के साथ व्यवहार और बर्ताव किस तरह से बदलता है। इसी सार को फिल्म में दिखाया गया है।

फिल्म की कहानी : फिल्म की कहानी शुरू होती है सिलीगुड़ी के छोटे से घर से जहां एक लड़की इनाक्षी अपने मां-बाप के साथ रहती है। इनाक्षी को लड़के वाले देखने के लिए आए होते हैं और उन्हें वो पसंद भी आ जाती है लेकिन जब उन्हें पता चलता है कि लड़की गंजी है तो वो शादी से इन्कार कर देते हैं और वहां से चले जाते हैं। फिर कहानी अतीत में जाती है जहां इनाक्षी स्कूल में पढ़ने वाली एक चंचल लड़की होती है, बाकि बच्चों की तरह वो भी स्कूल में जाती है, दोस्तों के साथ खेलती-कूदती है। एक अल्हड़ लड़की की तरह उसे भी किसी बात की परवाह नहीं होती। उसके बाल बहुत अधिक मात्रा में झड़ते हैं, पहले तो उसे इस बात का एहसास ही नहीं होता लेकिन उसे तब इस बात का थोड़ा एहसास होता है जब उसकी क्लास में लड़के द्वारा उसका मज़ाक बनाया जाता है। तब से वो थोड़ा परेशान रहती है और उसका सारा ध्यान पढ़ाई से हटकर बालों पर ही रहता है।
इनाक्षी के पिता (विपिन शर्मा) जो सिलीगुड़ी में एक छोटी-सी दुकान चलाते हैं और मां (दीपिका अमीन) हाउस वाइफ हैं। बाल झड़ने वाली बात को लेकर उसके माता-पिता इनाक्षी को नॉर्मल डॉक्टर को दिखाते हैं और उसके बाद शुरू होता है उसके इलाज का सिलसिला। स्कूल-कॉलेज में दोस्तों सुनने की वजह से इनाक्षी बहुत परेशान हो जाती है और रोने लगती है जब उसके मां-बाप उसे दिलासा देते हैं और उसे एक डर्माटोलाॅजिस्ट के पास लेकर जाते हैं जहां उन्हें पता चलता है उनकी बेटी एक गंभीर बीमारी एलापिशिया से पीड़ित है। उसके बाद उसे गाजर-सब्जी और सादा खाना दिया जाता है। डॉक्टर की सलाह पर उसे स्ट्रॉइड इस्तेमाल करने के बाद उसके बाल तो वापस आ जाते हैं, मगर सिर के साथ दाढ़ी-मूंछ भी उग आती है। तब उसे इलाज रोककर विग लगाने को मजबूर होना पड़ता है। इनाक्षी एक अच्छा डांसर बनना चाहती है और इसलिए वह माॅल में अपनी सेल्स गर्ल की नौकरी भी छोड़ देती है। दिल ही दिल में उसे एक लड़का श्रीजाॅय (जितेंद्र कुमार) चाहता है लेकिन इनाक्षी को वो कभी बोल नहीं पाता। क्या होता है जब श्रीजाॅय को पता चलता है कि इनाक्षी गंजी है। क्या इनाक्षी अपने गंजेपन को स्वीकार करके जिंदगी में आगे बढ़ पाती है। यह सब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

बात करें अभिनय की तो अभिनेत्री श्वेता त्रिपाठी शर्मा ने बहुत ही कम समय में अपनी फिल्मों के जरिए कामयाबी हासिल की है। मिर्जापुर में अपनी कमाल के किरदार के बाद श्वेता ने इसमें एक असामान्य लड़की की भूमिका बहुत शानदार तरीके से निभाया है, ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने किरदार को जिया है। माता-पिता के रूप में विपिन शर्मा और दीपिका अमीन ने बहुत बढ़िया किरदार निभाया है मिडलक्लास पैरेंट्स के रूप उनका अभिनय एकदम नेचुरल लगता है। जितेन्द्र कुमार ने इस फिल्म से अपना बाॅलीवुड डेब्यू किया है। फिल्म में उनका किरदार एक ऐसे लड़के का है जो एक लड़की को पसंद और प्यार तो करता है मगर उसे बताने से घबराता है। एक घबराए और शर्मीले लड़के के किरदार में जितेन्द्र खूब जमे हैं।

फिल्म की कहानी अच्छी है। एक गंभीर बीमारी को केन्द्र में रखकर कहानी को बुनना वाकई में एक अच्छी कोशिश है। कहानी में सबकुछ एकदम रियल लगता है। लेकिन जब आप फिल्म देखते हैं जैसे ही कहानी आपको समझ आने लगती तभी कहानी अतीत में चलती है और जब आप अतीत की कहानी को समझने लगते हैं तभी कहानी वर्तमान में चलने लगती है, समझ ही नहीं आता कि कब कहानी वर्तमान में चलती है और कब अतीत में चलती है। आप कन्फ्यूज होने लगते हैं। फिल्म का नरेशन दिलचस्प है। स्क्रीनप्ले थोड़ा कमज़ोर है। कहीं-कहीं इमोशन भी है।

फिल्म क्यों देखें : एक गंभीर बीमारी की वजह से एक मिडलक्लास फैमिली की जिंदगी किस तरह प्रभावित होती है, ये देखना दिलचस्प होगा।

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