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केरल की परफाॅर्मिंग कला विधा को पुनर्जीवित करने के लिए अनूठे कुटियट्टम उत्सव का आयोजन करेगी सहपीडिया

नई दिल्ली। भारतीय संस्कृति और इतिहास का आॅनलाइन विश्वकोष सहपीडिया राष्ट्रीय राजधानी में अनूठे छह दिवसीय कुटियट्टम उत्सव का आयोजन करेगी। यह उत्सव केरल की परंपरागत नाट्य प्रस्तुति वाली इस कला विधा को प्रोत्साहित करने का एक प्रयास है, जिसमें भाव-भंगिमा के साथ संस्कृत साहित्य की रंगमंच प्रस्तुति की जाती है।
समारोह इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) के फाउंटेन लाॅन्स में 16 से 21 अगस्त तक आयोजित किया जाएगा। केरल का नेपथ्य समूह रामायण पर आधारित और शक्तिभद्र द्वारा लिखित शास्त्रीय संस्कृत नाटक आश्चर्यचुडामन के उत्कृष्ट अंश ‘सुर्पणखानकम’ की बड़े पैमाने पर एवं विस्तृत नाट्य प्रस्तुति करेगा। सहपीडिया एक अत्यंत दुर्लभ कार्यक्रम के तहत सहर, सेंटर फाॅर स्टडी आॅफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) तथा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) के सहयोग से इस शानदार रंगमंच प्रस्तुति का आयोजन कर रही है।
मार्गी मधु और डाॅ. इंदु जी के नेतृत्व में 12 कलाकार यह भव्य नृत्य प्रस्तुति देंगे। ये सभी कलाकार कठिन प्रशिक्षण और शुद्ध उच्चारण के अभ्यास के जरिये इस विधा में महारत हासिल कर चुके हैं। वर्ष 1998 में स्थापित कुटियट्टम की उत्कृष्ट संस्था नेपथ्य मध्य केरल के मुझिक्कुलम गांव से संचालित हो रही है जिसे इस नाट्य प्रस्तुति वाली कला विधा का गढ़ माना जाता है और जहां परंपरागत स्वरूप में यह विधा सिखाई जाती है, प्रस्तुत की जाती है तथा संरक्षित की जाती है।
सहपीडिया के कार्यकारी निदेशक डाॅ. सुधा गोपालकृष्णन ने कहा, “कुटियट्टम की दुर्लभ परंपरा अपने अस्तित्व, खासकर संपूर्ण स्तर पर विस्तृत रूप से प्रस्तुति का अवसर पाने के लिए संघर्ष कर रही है, जिसकी रंगमंच प्रस्तुति कई रातों तक चलती रहती है। संपूर्ण प्रस्तुति के रूप में अब केरल के बाहर के दर्शकों तक इसकी उत्कृष्टता, खूबसूरती तथा जटिलता को व्यक्त करना दुर्लभ हो गया है। यहां तक कि केरल में भी इस तरह की संपूर्ण नाट्य प्रस्तुति विरले ही देखने को मिलती है।”
भारत की प्राचीनतम जीवित नाट्î प्रस्तुति तथा प्राचीन काल के संस्कृत रंगमंच से नाट्य रूप में प्रस्तुत की जाने वाली एकमात्र बची कला विधा कुटियट्टम को यूनेस्को ने ‘मानवता की उत्कृष्ट मौखिक एवं अमूर्त धरोहर’ माना है। कुटियट्टम का रंगमंच संस्कृत की सर्वोत्कृष्ट शैली और केरल की स्थानीय परंपराओं का संगम प्रस्तुत करता है। परंपरागत रूप से कुटियट्टम ज्यादातर मंदिरों के अहातों में चाक्यार (केरल के हिंदुओं का एक समुदाय) तथा नांगयारम (अंबालावासी नांबियार जाति की महिलाएं) प्रस्तुत करते थे, लेकिन समकालीन दौर में अब सभी समुदायों के लोग यह प्रस्तुति करने लगे हैं।
‘सुर्पणखानकम’ लंकाधिपति रावण की बहन सुर्पणखा के राम और लक्ष्मण के साथ संवादों का नाट्य रूप में वर्णन करता है, जिसमें दिखाया गया है कि वनवास के दौरान लक्ष्मण बाद में उसके प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते हैं। आखिरी दिन ‘‘निनाम’’ (रक्तपात) कथांश में सुर्पणखा अपनी रक्तरंजित कटी नाक के साथ प्रवेश करती है और बढ़ा-चढ़ाकर अपने जख्म के निशान दिखाती है। यह दृश्य जितना डरावना लगता है, उतना ही प्रभावशाली भी।
भारतीय अध्ययन के जाने-माने विद्वान प्रो. डेविड शुलमैन और येरूशलम स्थित हिब्रू विश्वविद्यालय में मानवशास्त्र (ह्यूमैनिस्टिक स्टडीज) के प्रोफेसर रेनी लैंग बृहस्पतिवार 16 अगस्त को शाम 6ः15 बजे दर्शकों को इस नाट्î प्रस्तुति के बारे में बताएंगे। कुटियट्टम नाट्य प्रस्तुति सभी छह दिन शाम 6ः30 बजे से ही आरंभ होगी।

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