भारतीय फिल्म उद्योग और मीडिया को लेकर ‘प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ की तरफ से खुला पत्र
दिल्ली। पिछले कुछ महीनों से सभी मीडिया द्वारा भारतीय फिल्म उद्योग की प्रतिष्ठा पर लगातार हमला किया जा रहा है। एक होनहार युवा कलाकार की दुखद मृत्यु को कुछ लोग फिल्म उद्योग और उसके सदस्यों का नाम बदनाम करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। आउटसाइडर्स के लिए इस इंडस्ट्री को एक भयावह रूप में चित्रित किया गया है जहां आउटसाइडर्स की निंदा की जाती है। एक ऐसा स्थान जहां लोग प्रवेश करने का प्रयास करते हैं पर उनके साथ अपमानजनक दुव्र्यवहार किया जाता है, एक ऐसा स्थान जहां आपराधिकता और मादक द्रव्यों का सेवन किया जाता है। यह कहानी मीडिया इंडस्ट्री को अपनी रेटिंग और रीडरशिप बढ़ाने के लिए पर्याप्त है। परन्तु यह सत्य नहीं है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि अन्य क्षेत्रों की तरह फिल्म इंडस्ट्री में भी कई खामियां हैं, और किसी भी उद्योग को निरंतर सुधार लाने का प्रयास जारी रखना चाहिए। इंडस्ट्री को इससे सीखते और विकसित होते रहना चाहिए और किसी भी अनुसूचित तथ्यों का निराकरण करना चाहिए। परन्तु पूरी इंडस्ट्री को इन खामियों का जिम्मेदार ठहरना बहुत ही गलत बात है।
फिल्म इंडस्ट्री हजारों सैकड़ों लोगों को रोजगार प्रदान करती है, यात्रा और पर्यटन को बढ़ावा देती है। फिल्म इंडस्ट्री दुनियाभर में भारत की सॉफ्ट पॉवर का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत में से एक माना जाता है। यह इंडस्ट्री कई सदियों से करोड़ों लोगों का मनोरंजन करते आई है, जिसने देश के गौरव और सम्मान को बढ़ाने में निरंतर साथ दिया है। इस इंडस्ट्री ने देशभर से कला, साहित्य और संगीत से जुड़े प्रतिभाओं का स्वागत किया है। इन कलाओं ने अद्वितीय सिनेमेटिक लैंग्वेज बनाई है। इसी वजह से हम अभी भी कुछ ऐसे देशों में से एक हैं जो लंबे दशक से हॉलीवुड इंडस्ट्री के आक्रामक होने के बावजूद कई भाषाओं में स्थानीय फिल्म इंडस्ट्रीज को संपन्न, और जीवंत रखे है। इतना ही नहीं इस इंडस्ट्री ने नेशनल काॅउज में उदारता से योगदान भी किया है और हमने अक्सर बिना बुलाए भी आसानी से अपने संसाधनों (नाम, मान्यता, समय और धन )- की पेशकश की है।
हम इंडस्ट्री में से किसी के व्यक्तिगत अनुभवों को नकारते नहीं हैं। यह सत्य है कि कुछ लोग जो इस व्यवसाय में प्रवेश करते हैं और खुद को स्थापित करने की कोशिश करते दौरान कई कठिनाइयों, संघर्षों और निराशाओं का सामना करते हैं। किसी भी क्षेत्र चाहे वह राजनीति, कानून, व्यवसाय, चिकित्सा या मीडिया हो, हर जगह नए प्रवेशकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
यह सब जानते हुए भी ऐसी ठोस कोशिशें की जा रही है जहां पूरी फिल्म इंडस्ट्री को इस तरह से दर्शाया जा रहा है कि वे नए बाहरी टैलेंट्स को इस इंडस्ट्री में आगे बढ़ने से रोकते हैं। यह सत्य नहीं है। ऐसे कई प्रतिभाशाली अभिनेता, निर्देशक, लेखक, संगीतकार, छायाकार, संपादक, साउंड डिजाइनर, प्रोडक्शन डिजाइनर, कॉस्ट्यूम डिजाइनर, और कला निर्देशक हैं जिनका फिल्म इंडस्ट्री से कोई संबंध नहीं है, फिर भी वे प्रभावशाली काम करके खुद को इस इंडस्ट्री में स्थापित कर चुके हैं। इस इंडस्ट्री में कई ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने प्रेरणादायक और चुनौतीपूर्ण कार्य किये हैं जिसने भारतीय सिनेमा को पुनर्भाषित किया है। इंडस्ट्री में जन्म लेने के कारण कुछ लोगों को आसानी से अपना पहला ब्रेक मिल जाता है ,पर उसके बाद उन्हें अपनी कला और प्रतिभा को साबित करना पड़ता है, तभी वे इस इंडस्ट्री में आगे बढ़ते हैं।
हम फिल्म इंडस्ट्री के सभी उम्मीदवारों को यह बताना चाहते हैं कि उन्हें क्लिकबैट पत्रकारिता से गुमराह नहीं होना चाहिए। ऐसी पत्रकारिता के जरिए यह दिखाया जा रहा है कि फिल्म इंडस्ट्री एक बहुत ही डरावनी जगह है। यह एक ऐसी जगह है जो अंततः आपकी प्रतिभा, काम की नैतिकता और दर्शकों से जुड़ने की क्षमता स्वीकार करती है – आपके धर्म, लिंग, जाति या आर्थिक स्तर की परवाह किए बिना।
हालांकि आउटसाइडर्स के लिए इंडस्ट्री में अपनी प्रतिभा को पेश करना बहुत मुश्किल है लेकिन लगन, दृढ़ता और भाग्य से वे सफल हो सकते हैं और हुए भी हैं। कई ऐसे लोग हैं जो आउटसाइडर्स होने के बावजूद इंडस्ट्री में अपना नाम बना चुके हैैं।
यह समय हमारे देश और दुनिया के लिए यह बहुत ही कठिन हैं। इसलिए एक-दूसरे के प्रति हमारे भय और कुंठाओं को बाहर निकालने के बजाय, हमें एक दूसरे का साथ देना चाहिए है। इस आउटसाइडर्स की बहस में दोनों पक्षों को, विशेष रूप से महिलाओं को, बलात्कार की और मौत की धमकी मिल रही है, जो अस्वीकार्य है, और हमे इसे रोकना ही होगा।
मीडिया को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और गुनाह को बढ़ावा देने से रोकना चाहिए। विज्ञापन राजस्व और रेटिंग की तुलना में कुछ और चीजें महत्वपूर्ण हैं -जैसे कि सामान्य मानव शालीनता। आइए हम भी अपनी मानवता दिखाते हैं।