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विश्व पुस्तक मेला प्रगति मैदान में चर्चित व्यंग्य लेखक डा रामरेखा की पुस्तक पुण्य की लूट का हुआ विमोचन

नई दिल्ली। 16 फरवरी प्रगति मैदान नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला में आज बिहार के बेगूसराय के चिकित्सक डा रामरेखा की दूसरी व्यंग्य पुस्तक पुण्य की लूट का आज विमोचन हुआ। प्रकाशन संस्थान दरियागंज नई दिल्ली की ओर से डा रामरेखा की पहली व्यंग्य रचना एक लेखक की नरक यात्रा के बाद मात्र सालभर में यह उनकी दूसरी व्यंग्य रचना है। पुण्य की लूट की भूमिका प्रो बली सिंह विभागाध्यक्ष हिन्दी, किरोड़ीमल कॉलेज दिल्ली विश्व विद्यालय, ने लिखी है। द्वितीय भूमिका में डा सीताराम सिंह प्रभंजन, पूर्व प्रधानाचार्य, ने व्यंग्य पुस्तक पुण्य की लूट को भविष्य जीवी रचना बताया है।
पुण्य की लूट मेें निहित रचनाओं के संबंध में पटना विश्वविद्यालय, मानविकी संकायाध्यक्ष एवं पटना काॅलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो तरुण कुमार ने लिखा है कि ये रचनाएं आपको गुदगुदायेगी, गुदगुदी से कभी हंसते हंसते आपकी आंखों में आंसू भी आ सकते हैं। गुदगुदी और आंसू का रिश्ता का न जाने कब से चला आ रहा है।हंसा हंसा कर रुलाने की कला का नाम ही शायद व्यंग्य है। डा रामरेखा की रचनाएं भी इसी अंदाज की हैं। लेखन व्यक्ति की सामाजिकता का ही विस्तार है। पाठकों को डा रामरेखा की और भी श्रेष्ठ रचनाओं का निश्चित रुप से इंतजार रहेगा।
डा रामरेखा मूलतः पटना जिले के रामपुर डुमरा, मरांची के वासी हैं और सरकारी सेवा में चिकित्सक के रुप में बेगूसराय में प्रतिष्ठित हैं। साहित्यिक सरोकार से जुडे गतिविधियों में सक्रिय डा रामरेखा दिनकर जयंती समारोह समिति, जिला साहित्य अकादमी, प्रगतिशील लेखक संघ एवं अन्य कई सामाजिक संगठनों में उत्साह से जुडी पहचान बनाये हैं।
वरिष्ठ कवि मदन कश्यप पुण्य की लूट व्यंग्य रचना और रचनाकार के संबंध में कहते हैं कि डॉ. रामरेखा सिंह पेशे से चिकित्सक हैं और मनोमिजाज से साहित्यकार । वे एक छोटे शहर के अत्यंत प्रतिष्ठित डॉक्टर हैं और इस नाते समाज के विभिन्न तबकों के लोगों से उनका सहज संपर्क बना रहता है और वे सामान्य से लेकर विशिष्ट जनों तक की बोली बानी के साथ-साथ हर तरह की गतिविधियों का भी सूक्ष्म अवलोकन करते रहते हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपनी रचना-विधा के रूप में व्यंग्य का चयन किया है। अन्यथा, वे जितने संवेदनशील हैं, कवि भी हो सकते थे। व्यंग्य में गद्य का उच्चतम रूप सामने आता है, या आना चाहिए। यह उनके लिए चुनौती भी है। लेकिन जैसा कि महान व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने कहा है, एक अच्छा व्यंग्य वही होता है, जिसमें करुणा अंतर्धारा के रूप में उपस्थित हो। इस दृष्टि से रामरेखा जी का लेखन सार्थक है, क्योंकि उनके व्यंग्य शब्दों के खेल मात्र नहीं हैं, बल्कि उनमें मनुष्य की करुणा और संघर्ष भी अन्तर्निहित है।

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