ब्लड कैंसर से पीड़ित 60 वर्षीय मरीज को फोर्टिस गुरुग्राम में मिला नया जीवन
रांची। फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के डॉक्टरों ने रांची के 60 वर्षीय मरीज श्री लाल मणि महतो का सफलतापूर्वक उपचार किया जो क्रॉनिक माएलोमोनोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएमएमएल) से पीड़ित थे जो ब्लड कैंसर का ही एक प्रकार है जिसकी कोई निश्चित दवा उपलब्ध नहीं है। मरीज को बुखार, कम हीमोग्लोबिन, वजन कम होने और कम होते प्लेटलेट्स की शिकायत के साथ फोर्टिस गुरुग्राम में लाया गया था। डॉ. राहुल भार्गव, निदेशक, हेमेटोलॉजी एंड बीएमटी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट, गुरुग्राम और उनकी टीम ने मरीज का सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया।
श्री लाल मणि महतो को अग्रिम स्तर के ब्लड कैंसर की शिकायत के साथ अस्पताल लाया गया था। उन्हें अग्रिम स्तर के कैंसर के लिए कीमोथेरेपी दी गई। श्री महतो का वजन काफी तेजी से कम होने लगा। इस बीमारी के कारण का पता नहीं था, रांची में एक डॉक्टर से सलाह लेने पर पता चला कि उन्हें खून का नुकसान हो रहा था लेकिन उसका कारण पता नहीं चल सका। मरीज के खून का स्तर नियंत्रित करने के लिए उन्हें फोलिक एसिड दिया गया लेकिन मरीज की स्थिति और खराब होने लगी। जल्द ही हर 20 दिन में उनके ब्लड ट्रांसफ्यूजन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई। रांची में कई डॉक्टरों से सलाह लेने के बाद उन्हें ब्लड कैंसर का पता चला। उनकी समस्या का एकमात्र समाधान बोन मैरो ट्रांसप्लांट था। उन्हें डॉ. राहुल भार्गव के पास लाया गया जिन्होंने सफलतापूर्वक सर्जरी की।
डॉ. राहुल भार्गव, निदेशक, हेमेटोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने कहा, “ब्लड कैंसर का पता चलना मुश्किल है, दूसरी बात यह कि एक बार पता चलने पर भी कोई दवा नहीं है और बीएमटी ही एकमात्र उपाय है। बीएमटी की प्रक्रिया शुरू की गई, आरबीसी, डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेट्स को शरीर से बाहर निकाला गया। मरीज नवजात शिशु की तरह हो गया और उनमें संक्रमण का खतरा बढ़ गया। ऐसी स्थिति में मरीज को स्थिर करना एक चुनौती है। एक अन्य शरीर से स्टेम सेल को मरीज के शरीर में स्थानांतरित किया गया और सफल ट्रांसप्लांट के लिए शरीर का इसे स्वीकार करना जरूरी होता है। जहां तक बात डोनर की है तो इसमें कोई जोखिम नहीं होता है। डोनर को सिर्फ 300 मिली ब्लड स्टेम सेल दान करना होता है और इसमें डरने की कोई बात नहीं होती। मरीज बहुत ही भाग्यशाली थे क्योंकि आम तौर पर डोनर मैच 30 फीसदी होता है लेकिन इस मामले में बहन और भाई का मैच 100 फीसदी रहा। डोनर को डोनेशन के अगले ही दिन डिस्चार्ज कर दिया गया। मरीज को अस्पताल से सफलतापूर्वक डिस्चार्ज किया जा चुका है और वह सामान्य जीवन जी रहे हैं।”
मरीज श्री महतो ने कहा, “जब मैं फोर्टिस आया था तो मुझ में बहुत कम उम्मीद थी। मुझे हर 20 दिन में ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराना पड़ता था। मेरा परिवार मुझे हर दिन कमजोर होते देख रहे थे और मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता था। जब डॉ. भार्गव ने मुझे उम्मीद दी कि बीएमटी के बाद मैं पहले की ही तरह अपना जीवन जी सकूंगा तो मुझे यह चमत्कार लगा। मेरी छोटी बहन के स्टेम सेल मैच हो गए और मेरी जिंदगी बच गई। जब मैं आईसीयू में था तो मेरी स्थिति बेहद गंभीर थी और मेरा परिवार आस छोड़ रहा था। फोर्टिस गुरुग्राम में डॉ. राहुल भार्गव की ओर से किया जा रहा सतत उपचार ही था जिसकी वजह से मैं आज सेहतमंद हूं और आसानी से अपनी रोजाना के काम कर पा रहा हूं।”
डॉ. ऋतु गर्ग, जोनल निदेशक, एफएमआरआई ने कहा, “यह अस्पताल में आए सबसे चुनौतीपूर्ण मामलों में से एक था जिसमें मरीज को अग्रिम स्तर के कैंसर के साथ लाया गया था जो बहुत ही दुर्लभ है। इस मामले में कई जटिलताएं थीं और सर्जरी के बाद मरीज को स्थिर करना बहुत बड़ी उपलब्धि थी। मरीज की स्थिति जीवन के लिए घातक हो सकती थीं हालांकि चूंकि इस मामले पर बहुत ही अच्छे से नजर रखी गई इसलिए ऐसी स्थिति से सफलतापूर्वक बचा जा सका। एफएमआरआई ऐसी जटिलताओं का सामना करने के लिहाज से सभी सुविधाओं से भरपूर है। अस्पताल में रक्त संबंधी सभी समस्याओं से निपटने के लिए व्यापक टीम और आधुनिक प्रौद्योगिकी की मदद ली जाती है। इस मामले से पता चलता है कि हम विभिन्न विशेषज्ञताओं की ओर से सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।”