स्वास्थ्य

साधारण कार्बोहाइड्रेट्स और जटिल बीमारियाँ : प्रॉसेस्ड व जंक फूड बन रहा है किशोर व युवावस्था में डायबीटीज का कारण

गुरुग्राम। एक नामी स्कूल के 10 कक्षा का 16 वर्षीय छात्र राकेश (बदला हुआ नाम) पिछले कई सालों से स्कूल से घर आने के बाद वही चीजें खाना पसंद करता था जो ऑनलाइन ऑर्डर करके बाहर से आता था। पिज्जा और कोला जैसी चीजेँ उसे गेम और टेलीविजन में ध्यान लगाने में सहायक लगती थीं। लेकिन, वक्त के साथ उसका वजन बढ़ता गया और स्कूल में आयोजित एक स्वास्थ्य शिविर में पता लगा कि वह प्री-डायबिटिक है, यह एक गम्भीर स्वास्थ्य स्थिति है जिसमें ब्लड शुगर का स्तर सामान्य से अधिक होता है, लेकिन यह इतना भी अधिक नहीं होता कि व्यक्ति को टाइप 2 डायबिटिक की श्रेणी में रखा जाए। प्री-डायबीटीज टाइप 2 डायबीटीज विकसित होने, दिल की बीमारियों और स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा देती है जिसकी अक्सर जांच ही नहीं हो पाती है।
राकेश को तुरंत नियंत्रित आहार और एक्टिविटी रुटीन पर लाया गया, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि यह अपनी तरह का कोई इकलौता मामला नहीं है। कोलम्बिया एशिया हॉस्पिटल के डॉक्टरों का कहना है कि, प्रॉसेस्ड और जंक फूड का लम्बे समय तक लगातार इस्तेमाल करने से युवाओं के शरीर में साधारण कार्बोहाइड्रेट्स जैसे कि शुगर की मात्रा बढ़ जाती है जो कि डायबीटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बडी क्रॉनिक बीमारियों के लिए रास्ता खोल देती हैं।
डॉ. शालिनी गर्विन ब्लिस, कंसलटेंट डायटीशियन, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, गुड़गांव का कहना है कि, “प्री-डायबीटीज एक चेतावनी की तरह है जब व्यक्ति के पास अपनी स्वास्थ्य स्थिति को वापस सही ट्रैक पर लाने का मौका रहता है। हालांकि, यह एक साइलेंट चरण होता है जब अधिकतर लोग जांच ही नहीं कराते हैं, यह सिर्फ रुटीन जांच के दौरान ही सामने आ पाता है, जो अधिकतर लोग 30 अथवा इससे अधिक आयु में कराते हैं। बच्चों को आमतौर पर टाइप 1 डायबीटीज होती है जिसका कारण है शरीर में इंसुलिन उत्पादन की क्षमता का फेल हो जाना। इंसुलिन वह हार्मोन है जो ब्लड शुगर के स्तर और मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करता है। मगर आजकल छोटी उम्र में ही टाइप 2 डायबीटीज होने का ट्रेंड सामने आ रहा है – और इसी प्रक्रिया के दौरान पिछले एक साल में हमारे पास 100 ऐसे मामले आए हैं जिसमें नाबालिगों में डायबीटीज का पता चला है, जो कभी सिर्फ वयस्कों की बीमारी हुआ करती थी। इनमें से अधिकतर बच्चों में, उनके वयस्क प्रतिद्वंदियों की ही भांति, या तो सामान्य से अधिक वजन पाया गया अथवा वे मोटापे की चपेट में आ चुके थे जो वयस्क होकर एक अनुपयुक्त सेहत वाले व्यक्ति बनते हैं।”
इस स्थिति के लिए डॉक्टर जंक फूड के बढते इस्तेमाल को जिम्मेदार ठहराते हैं जिसमें कैलोरी की मात्रा तो अधिक होती है लेकिन पोषण कम होता है और वयस्कों की भरपूर निगरानी न होने से बच्चे ऐसी चीजों का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करने लगते हैं। जंक फूड जैसे कि प्रॉसेस्ड फूड, माइक्रोवेव फूड, शुगर और रोस्टेड या बार्बिक्यु मीट में एडवांस्ड लेवल का ग्लाइकेशन एंड-प्रॉडक्ट (एजीई) होता है, जिसे विभिन्न ऑक्सिडेटिव-बेस्ड बीमारियों जैसे कि डायबीटीज, एथिरोस्क्लेरोसिस (फैट का जमाव, क्लेस्ट्रॉल और अन्य तत्वों के आर्टरी वॉल में जमाव अथवा प्लॉक, रक्त संचार में रुकावट) और न्युरोलॉजिकल डिसॉर्डर के लिए जिम्मेदार माना जाता है। जंक फूड में विटामिंस और मिनरल्स की मात्रा कम होती है और इनमें फाइबर की मात्रा कम होती है। इन खाद्य सामग्रियों में अधिक मात्रा में एडेड शुगर और हाई सैचुरेटेड फैट और ट्रांसफैट-ये चीजें जल्दी से हजम हो जाती हैं और ब्लड शुगर क स्तर को एकदम से बढ़ा देती हैं और साथ ही बैड कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी बढा देती हैं।
“बच्चों को जंक फूड की जगह इसके स्वस्थ्य विकल्पों के इस्तेमाल हेतु अधिक से अधिक प्रेरित करना चाहिए। वे तले हुए चिप्स की जगह घर में बेक किए गए चिप्स खा सकते हैं जिसमें तेल और कैलोरे की मात्रा कम होती है और ये स्वास्थ्य के लिए बेहतर साबित होते हैं।
डॉ शालिनी गर्विन ब्लिस, कंसलटेंट डायटीशियन, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, गुड़गांव का कहना है, “कैलोरी के बेहतर उपयोग के लिए बच्चों के शारीरिक सक्रियता के स्तर को बढ़ाने तथा उनका स्क्रीन टाइम कम करने की भी जरूरत है। एयरेटेड पेय पदार्थ और सोडा में कृत्रिम शुगर होता है जो शरीर के लिए नुकसानदेय होता है ऐसे में बेहतर है कि घर में बना ताजा जूस अथवा ड्रिंक जैसे कि नीम्बू पानी, स्मूदी, शिकंजी, नारियल पानी, लस्सी आदि इस्तेमाल करना बेहतर विकल्प है। भोजन में साबुत अनाज का चयन करें जिसमें फाइबर, पोटैशियम, मैग्नीशियम और सेलेनियम की मात्रा अधिक होती है और प्रॉसेस्ड व्होल ग्रेन जैसे कि क्विनोआ, बकव्हीटऔर व्होल-व्हीट पास्ता का इस्तेमाल कम करें। इसके साथ ही भोजन में फाइबर से भरपूर सब्जियाँ और फल अधिक मात्रा में लेने चाहिए और अधिक सक्रिय जीवनशैली अपनानी चहिए।“

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