स्वास्थ्य

मानसिक स्वास्थ्य सबके लिये – अधिक निवेश अधिक पहुंच, हर जगह हर एक के लिए

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस – 10 अक्टूबर 2020

-डॉ. अग्रवाल
विश्व मासिक दिवस के सन्दर्भ में मानसिक स्वस्थ्य को समर्पित मनोरोग विशेषज्ञ एवं होप सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. एम.एल.अग्रवाल ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य सबके लिये- अधिक निवेश अधिक पहुंच, हर जगह हर एक के लिए पर समाज को विशेष ध्यान देना होगा।
उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य संगठन की स्वास्थ्य की परिभाषा के मुताबिक पूर्ण शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य है, न कि केवल रोग मुक्त होना है। मानसिक स्वास्थ्य सदैव से ही उपेक्षित रहा है। मानसिक रोगों को तिरस्कार और हीनता की दृष्टि से देखा जाता है, डॉ. के पास जाने में झिझकते हैं।
डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि हम अपनी शारीरिक समस्याएं हृदय रोग, मधुमेह, चोट इत्यादि की सबसे बात कर लेते हैं, परन्तु मानसिक समस्याएं जैसे कि अवसाद, चिंता, बहम, निराशा आदि को छुपा कर रखते हैं। आज भी समाज में मनोचिकित्सक को दिखाने जाना पागलपन माना जाता हैं। यह समस्या विकसित और विकासशील देशों मे देखने को मिलती हैं।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि विश्व में करीब 45 करोड़ लोग मानसिक स्वस्थ्य समस्याओ से पीडि़त हैं। भारत को विश्व का सबसे निराशाजनक देश माना गया हैं। हमारे देश में करीब 19 करोड़ लोग (विश्व के 40 प्रतिशत) अवसाद से एवं चिता से पीडि़त हैं। उनका उपचार सरल व सुलभ हैं, परन्तु अज्ञानतावश और अंधविश्वास के चलते अधिकतर लोग झाड़ फूंक में उलझे रहते हैं और चिकित्सक के पास नहीं जाते हैं। हमारे देश में प्रतिवर्ष 1,39,000 लोगो की आत्महत्या से मृत्यु होती हैं अर्थात हर 4 मिनट में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। आत्महत्या करने वालों की संख्या महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक एवं मध्यप्रदेश मे सर्वाधिक है। राजस्थान का 14 वां स्थान हैं। मानसिक बीमारियों के उपयुक्त उपचार के अभाव में विश्व में प्रतिवर्ष एक खरब रूपये का नुकसान होता हैं।
होप सोसायटी के सचिव डॉ. अविनाश बंसल ने बताया कि हम मानसिक बीमारियों के चिन्ह आसानी से पहचान सकते हैं। रूचिकर कार्य अरूचिकर लगना, अत्याधिक दुखी होना – 2 सप्ताह से अधिक समय के लिये, कम या ज्यादा भूख, असहाय महसूस करना, आत्मग्लानि, जीवन व्यर्थ लगना, मरने-मारने की बात करना, ड्रग्स लेना, खतरों के खिलाड़ी बनना, अत्याधिक चिन्ता, भीड से डर, बार बार हाथ धोना, आवाजे सुनाई पड़ना, भ्रामक विचार, मतिभ्रम इत्यादि ऐसे लक्षण हैं जो मानसिक रूप से अस्वस्थता को बताते हैं। यदि आपको अपने परिवार, मित्र, कार्यस्थल पर किसी भी व्यक्ति मे एसे चिन्ह दिखे तो उनसे सीधा प्रश्न कररें कि उनको यह कब से हो रहा है। वह अपने को नुकसान पहुचाने अथवा आत्महत्या तो नही करना चाह रहा है। आत्महत्या एवं मानसिक रोगी से बात करने से इनमें वृद्वि नहीं होती, अपितु 70 से 75प्रतिशत आत्महत्या रोकी जा सकती हैं। वह व्यक्ति सहायता की गुहार कर रहा होता है, और सोच रहा होता है कि काश कोई उसका हाल पूछ ले।
भारत विकास परिषद चिकित्सालय के मनोचिकित्सक डॉ. दीपक गुप्ता बताते हैं कि हमारे देश में प्रत्येक एक लाख व्यक्तियों पर 2 मनो चिकित्सक 75 प्रतिशत रोगियों को सुविधा सुलभ नहीं है। जितनी सुलभ हैं वह गुणवत्ता में बहुत कम है। अभी भी मानसिक रोग को कलंक की तरह देखा जाता हैं। हमारे चलचित्रो, पाठ् सामग्री इत्यादि में भी मानसिक बीमारियों का भ्रामक रूप दिखाया जाता हैं। हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य का बजट-पूर्ण स्वास्थ्य बजट का कुल 2 प्रतिशत ही हैं।अग्रवाल न्यूरो साइक्रेट्री सेन्टर के मनोचिकित्सक डॉ. विनायक पाठक ने बताया कि कोरोना काल में मानसिक बीमारियों एवं आत्महत्या में वृद्वि हुई हैं। अकेलापन, मृत्यु का भय, आर्थिक समस्या, यात्रा प्रतिबंध इत्यादि इसका प्रमुख कारण हैं। भारत की मानसिक स्वास्थ्य नीति में इन समस्ययों से निपटने के लिये विस्तृत प्लान बनाया गया हैं। सेवा मे विस्तार, उपलब्धता, गुणवत्ता एवं कलंक दूर करने पर विषेश ध्यान दिया गया गया है। बजट मे भी बढ़ोतरी का प्रावधान हैं।
होप सोसायटी एवं मीडिया से जुड़े जनसम्पर्क विभाग के पूर्व सँयुक्त निदेशक डॉ.प्रभात कुमार सिंघल ने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति, स्वास्थ्यकर्मी, गैर सरकारी सेवा संगठन मानसिक स्वास्थ्य जागृति में योगदान कर सकते हैं। जनसाधारण में फैली भ्रांतियों को दूर करने और मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा के प्रति जाग्रति उत्पन्न करने में मीडिया, समाचार पत्र, टीवी चैनल्स, समाचार पोर्टल, सोशल मीडिया आदि माध्य्म महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और वे इस कर भी रहे हैं। मीडिया टीवी, मोबाइल आदि का उपयोग भी समझदारी से करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी रहता है, विशेषज्ञों की माने तो सब मिलाकर डेढ़ घन्टे से ज्यादा उपयोग नहीं करना चाहिये।
डॉ. अविनाश बंसल ने बताया नियमित एक घण्टा व्यायाम, योग, मनन, 7 घन्टे की नींद, पौष्टिक आहार (हरी पत्तेदार सब्जी, फल, अंकुरित), एक समय का भोजन परिवार के साथ करना(बातचीत हो,  टी.वी./रेडियो/अखबार रहित हो) साथ खाये, खेले, कार्य करें। सबको विश्वास हो कि घर के द्वार और माता पिता की बांहें सदैव उनके लिये खुली हैं। यह मानसिक बीमारी की रोकथाम का सर्वोतम टीका हैं।कोटा में होप सोसायटी पिछले 7 वर्षो से दूरभाष 0744-2333666 पर 24*7 प्रशिक्षित प्रामेशकों द्वारा निःषुल्क समस्याओ का निदान कर रही हैं। अब तक करीब 7 हजार से ज्यादा लोग लाभान्वित हो चुके हैं। प्रयास करें और मिलकर भारत को मानसिक स्वास्थ्य की राजधानी बनाये। मानसिक रोगो से जुड़े कलंक को दूर करे और उनको किसी भी अन्य बीमारी की तरह देखें, प्रेम एवं संवेदनाओ के साथ उपचार करायें। आत्महत्या एक रोग है और इसकी रोकथाम 70 से 80 प्रतिशत तक संभव हैं। हर किसी को हर जगह मानसिक स्वास्थ्य सेवा मिले – इसे आज ही सुनिश्चित करें।

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