स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने बर्नाड वैन लीर फाउंडेशन के सहयोग से पालन 1000 अभियान शुरू किया
मुंबई : स्वास्थ्य और परिवर कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) ने हाल ही में बर्नार्ड वैन लीर फाउंडेशन (बीवीएलएफ) के सहयोग से पालन 1000 अभियान शुरू किया। यह अभियान संज्ञान (कॉग्निटिव) के क्षेत्र में अर्ली चाइल्ड हुड डेवलपमेंट (ईसीडी) को लेकर जागरुकता बढ़ाना चाहता है। इसके लिए छोटे बच्चों के माता-पिता और अभिभावकों के लिए बचपन में नवजात की उचित देखभाल का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके साथ ही परिवार की मूलभूत जरूरतें पूरी करने के लिए भी सेवाएं दी जा रही हैं। इस राष्ट्रीय अभियान में नवजात शिशुओं का उचित तरीके से पालन पोषण करने के संबंध में संदेशों का प्रसारण किया जाएगा। इसके अलावा कार्यक्रम में पैरेंटिंग ऐप को भी लॉन्च किया गया। इस ऐप से अभिभावकों को यह व्यावाहरिक सलाह मिलेगी कि उन्हें नवजात शिशुओं के संपूर्ण विकास के लिए रोजाना क्या दिनचर्या अपनानी चाहिए।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने वर्चुअल रूप से इस अभियान की शुरुआत की। उन्होंने कॉन्क्लेव का उद्घाटन किया और ऐप को भी लॉन्चत किया। इस अवसर पर नीति आयोग में स्वास्थ्य और पोषण विभाग के सदस्य डॉ. विनोद के. पॉल, महाराष्ट्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. प्रदीप व्यास, केंद्र सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में संयुक्त सचिव (आरसीएच) डॉ. पी. अशोक बाबू, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) में बाल स्वास्थ्य विभाग में अतिरिक्त आयुक्त डॉ. सुमिता घोष और बीवीएलएफ की मिस रुश्दा मजीद इस उद्घाटन समारोह में शामिल हुए। कैंपेन के सेलेब्रिटी चेहरे दिव्यांका त्रिपाठी ने विडियो लिंक के जरिए इस लॉन्च् समारोह में भाग लिया।
यह कार्यक्रम उन पहलों में से एक है, जिसे भारत सरकार राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत अमल में ला रही है। इस पहल में नवजात शिशुओं की बेहतर देखभाल पर जोर दिया गया है और यह गर्भधारण के समय से लेकर शिशुओं के दो साल का हो जाने तक पालन-पोषण पर ध्यान केंद्रित करती है।
दो साल तक के बच्चोंद का संज्ञानात्म क विकास इस कार्यक्रम का मुख्य फोकस क्षेत्र है, इसलिए यह अभियान बोस्टन बेसिक्स से अपनाये गये 6 सिद्धांतों पर फोकस करता है :
- ज्यादा से ज्यादा प्यार कीजिए – नवजात शिशुओं या छोटे बच्चों को उस समय काफी खुशी होती है, जब उन्हें कोई प्यार करता है और वह सुरक्षित महसूस करते हैं।
- बच्चों से बात करिए, उनसे जुड़िए (गाकर, इशारा करके, गिनती करके, समूह बनाकर और तुलना करके) बच्चे शुरुआत से ही भाषा सीखना शुरू कर देते हैं (अपने जन्म से पहले से ही) वह उन आवाजों को सुनते हैं, जब परिवार के लोग या अभिभावक उनसे बात करते हैं।
- बच्चों से तरह-तरह की गतिविधियां कीजिए और उनके साथ खेलिए- बच्चों को हिलाना-डुलाना और उनके साथ खेलना बच्चों के शरीर और दिमाग के लिए बेहद अच्छा होता है। इससे बच्चे स्वस्थ रहते हैं। उनमें तालमेल बनता है और ताकत आती है
- पढ़िए और बच्चों को कहानियां सुनाइए- पढ़ने और बच्चों को कहानियां सुनाने से उनका भाषा संबंधी ज्ञान विकसित होता है और उनकी कल्पना शक्ति बढ़ती है। शुरू से ही बच्चे को जोर-जोर से पढ़ना सिखाना उन बेहद महत्वपूर्ण चीजों में से एक है, जिसके माध्यम से आप अपने बच्चे की स्कूल में बेहतर परफॉर्मेंस देने की तैयारी करा सकते हैं।
- स्तनपान के दौरान मां का बच्चे के साथ जुड़ना- मां और बच्चे की नजदीकी काफी अनोखी होती है। मां से बच्चे का लगाव और अपनापन तब बढ़ जाता है, जब वह उसे स्तनपान कराती है तो बच्चों को पोषण के साथ गर्मजोशी और संपूर्णता की भावना भी आती है।
- तनाव को काबू में रखिए और शांत रहिए- बच्चे भावनाओं को पहचान लेते हैं और उसी के अनुसार अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। इसलिए बच्चों की देखभाल में व्यावाहरिक रणनीति अपनाना बहुत जरूरी है, जिससे जब आप छोटे बच्चों के आसपास रहें तो तनाव को खुद पर हावी न होने दें।
इस अभियान के उद्देश्यों में ईसीडी पर शिक्षा और सहायता प्रदान करना और बच्चों के साथ अभिभावकों के महत्वपूर्ण जुड़ाव के संबंध में उन्हें शिक्षित करना शामिल है। इस अभियान के तहत अभिभावकों को जमीनी तौर पर सरकार और गैर सरकारी स्वास्थ्य संस्थाओं ने शिक्षित किया, जबकि कॉल सेंटर के माध्यम से ऑनलाइन इस कैंपेन को प्रसारित किया गया। कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में सात टीवी विज्ञापनों, रेडियो स्पॉट और प्रिंट मीडिया में भी इस अभियान को व्यापक स्तर पर प्रचार और प्रसार किया गया।
नवजात शिशुओं के बचपन में पालन-पोषण की अहमियत पर जोर देते हुए परिवार और कल्याण मंत्रालय के राज्य मंत्री माननीय डॉ. भारती प्रवीण पवार ने तहा, “बच्चों के मस्तिष्क का विकास गर्भावस्था से ही होना शुरू हो जाता है। यह मां की सेहत, पोषण और पर्यावरण पर आधारित होता है। पहले 1000 दिनों तक बच्चे के पालन-पोषण का तरीका उनके शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक और सामाजिकता के विकास के लिए ठोस बुनियाद प्रदान करता है। नवजात शिशुओं के पालनपोषण में निवेश जनकल्याण के लिहाज से किए गए सबसे मजबूत निवेश में से एक है। इससे बच्चों का पूरी क्षमता से विकास होगा और इसका एक वयस्क के तौर पर उनकी भविष्य की जिंदगी पर भी प्रभाव पड़ेगा। पालन 1000 पहल से बच्चों, माता-पिता, अभिभावकों और बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होगा।“
नीति आयोग में स्वास्थ्य और पोषण विभाग के सदस्य डॉ. विनोद के. पॉल ने कहा, “बच्चों का संज्ञानात्मक, व्यावहारिक, संवेदना और सामाजिक विकास सुनिश्चित करन काफी महत्वपूर्ण है। नवजात शिशुओं की मत्यु दर में कमी के अलावा अब बच्चों के लिए विकास के लिए उचित पोषण को अहमियत देने का समय आ गया है। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी। नवजात शिशुओं के 80 फीसदी दिमाग का विकास 2 साल की उम्र तक होता है। अपने बच्चों की क्षमता का पूर्ण विकास बहुत जरूरी है, जिसके लिए लोगों को अपनी गतिविधियां बढ़ानी होंगी। बाल रोग विशेषज्ञ और नीति निर्माण में सहायक होने के नाते मैं ईसीडी को अपने दिल के बहुत करीब महसूस करता हूं। मैं इस महान कैंपेन से जुड़कर खुद को काफी खुशनसीब महसूस कर रहा हूं।”
बर्नार्ड वैन लीर फाउंडेशन में भारत की प्रतिनिधि रुश्दा मजीद ने कहा, “शिशुओं के जन्म के पहले कुछ साल, खासतौर से शुरुआती 1000 दिन नवजात शिशुओं के विकास में बहुत अहम समय होता है, जो एक वयस्क के रूप में बच्चे की भावी जिंदगी को भी प्रभावित करता है। पालन 1000 कैंपेन और पैरंटिंग ऐप नवजात शिशुओं के माता-पिता और उनके अभिभावकों को पालन-पोषण के संबंध में सारी जानकारी उपलब्ध कराएगा। इसके साथ इस कैंपेन में बच्चों के दिमाग को विकसित करने समेत संपूर्ण विकास पर माता-पिता को सहयोग मुहैया करया जाएगा। हम इस अभियान की सफल शुरुआत से बेहद प्रसन्न हैं। इस कैंपेन के प्रति समर्पण और प्रतिबद्धता दिखाने के लिए हम परिवार कल्याण मंत्रालय के आभारी हैं। इसका उद्देश्य देश भर में ज्यादा से ज्यादा परिवारों को ईसीडी संबंधी जानकारी और सेवाएं उपलब्ध कराना है।”
इस ईसीडी कॉन्क्लेव में मेघालय, जम्मू-कश्मीर, असम, महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, केरल, तेलंगाना, दादरा और नागर हवेली और दमन और दीव द्वारा किए गए कार्यों पर भी जोर दिया गया।
इस लॉन्चिंग के बाद दोनों दिन अलग-अलग पक्षों, सामुदायिक संगठनों, हेल्थ प्रोफेशनल और ईसीडी विशेषज्ञों के बीच विचार-विमर्श किया गया। यूनिसेफ के लुइगी डि एक्वीनो, डब्ल्यूएचओ भारत की डॉ. पुष्पा चौधरी, हार्वर्ड सेंटर ऑफ डिवेलपिंग चाइल्ड के डॉ. जेम्स केयर्न्सल, बीवीएलएफ की डॉ. एंड्रिया टोरेस, एकेएफ की टिन्नी साहनी, एनआईपीआई के श्री अशफाक भट्ट, यूएसएआईडी के डॉ. सचिन गुप्ता, पीएचएफआई के राजन शुक्ला, जॉन हॉपकिंस सेंटर फॉर कम्युनिकेशन चेंज की सुश्री उत्तरा भरत कुमार, क्वीन रैना फाउंडेशन की सुश्री रूबा समैन और उम्मीयद की डॉ. विभा कृष्णामूर्ति कॉन्क्लेव में शामिल होने वाले विशिष्ट मेहमान थे।