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पार्टियों के धार्मिक संकेत से जुड़े नाम की समीक्षा संबंधी याचिका पर अदालत ने मांगा केंद्र से जवाब

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने धार्मिक संकेतों से जुड़े नाम वाले राजनीतिक दलों की समीक्षा संबंधी जनहित याचिका पर केंद्र और निर्वाचन आयोग से शुक्रवार को जवाब मांगा। याचिका में निर्वाचन आयोग को धर्मों से जुड़े नाम वाले या राष्ट्रीय ध्वज जैसे प्रतीकों का इस्तेमाल करने वाले दलों की समीक्षा करने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में अपील की गई है कि अगर ये पार्टियां तीन महीने के भीतर इन्हें नहीं बदलती हैं तो उनका पंजीकरण रद्द कर दिया जाए। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भम्भानी की पीठ ने केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी कर उनसे भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की यचिका पर रुख स्पष्ट करने को कहा। निर्वाचन आयोग ने कहा कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। याचिका में जो मामला उठाया गया है, वह पहले से ही उसके ध्यान में है। पीठ ने कहा, ‘‘देखते हैं कि इसका ध्यान कैसे रखा गया है।’’ अदालत ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए 17 जुलाई की तिथि तय की। याचिका में तर्क दिया गया है कि धर्मों से जुड़े नाम का इस्तेमाल या राष्ट्रीय ध्वज जैसे प्रतीकों का उपयोग किसी उम्मीदवार की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है और यह जनप्रतिनिधित्व कानून (आरपीए) 1951 के तहत भ्रष्ट गतिविधि के समान है। इसमें आग्रह किया गया है, “धर्म, जाति, नस्ल और भाषाई अर्थ वाले राजनीतिक दलों की समीक्षा की जानी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि वे राष्ट्रीय ध्वज से मिलते जुलते ध्वज का इस्तेमाल नहीं करें। अगर वे तीन महीने के भीतर इन्हें नहीं बदलते तो उनका पंजीकरण रद्द किया जाना चाहिए।’’ पेशे से वकील अश्विनी ने दावा किया कि यह कदम उठाने से स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किये जा सकेंगे। उन्होंने अपनी याचिका में हिंदू सेना, ऑल इंडिया मज्लिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का जिक्र किया है। उन्होंने याचिका में कहा, “इसके अलावा, कांग्रेस समेत कई ऐसे राजनीतिक दल हैं, जो राष्ट्रीय ध्वज जैसे ध्वज का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसा करना जनप्रतिनिधित्व कानून के विरुद्ध है।’’

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