धर्मसैर सपाटा

विश्व विरासत फतेहपुर सीकरी

">‘एक शहंशाह के ख्याल की बेमिसाल ताबीर’

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

हिन्दू-मुस्लिम सम्मिलित वास्तु कला के चिरस्मरणीय स्थल और इमारतों के दर्शन करने हों तो उत्तर प्रदेश में आगरा के समीप फतेहपुर सीकरी जरूर जाइये। पूरा का पूरा नगर वास्तु वैभव का अनूठा संगम स्थल है। अकल्पनीय और बेमिसाल कलात्मक किला एवं भवनों का समूह देख कर उन अनाम शिल्पियों के प्रति श्रद्धा भाव उतपन्न होता है जिनकी हथौड़ी और छेनी ने इतनी सुंदर कल्पनाओं को साकार किया। इनकी चमक 400 वर्ष बाद भी बरकरार है और सैलानियों को अपने जादुई सम्मोहन में बांध लेने की पूरी शक्ति रखते हैं। यहाँ विश्व का सबसे बड़ा बुलंद दरवाजा होने से वर्ष 1986 ई. में फतेहपुर सीकरी के नाम से यूनेस्को की सांस्कृतिक श्रेणी में विश्व धरोहर में शामिल किया गया। इससे इस ऐतिहासिक स्थान का महत्व और भी बढ़ गया।

बुलन्द दरवाजा

बुलन्द दरवाजे को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। बुलन्द दरवाजा 53.63 मीटर ऊँचा और 35 मीटर चौड़ा है। इसे लाल और बलुआ पत्थर से बनाय गया है। इस बुलन्द द्वार की सज्जा और नक्काशी में काले व सफेद संगमरमर पत्थर का उपयोग किया गया है। बुलन्द दरवाजे के मध्य ऊपर की ओर लगे शिलालेख से अकबर की धार्मिक भावना का पता चलता है। बुलन्द दरवाजे की जमीन की ऊँचाई 280 फीट है। दर्शक 52 सीढ़ियां चढ़ने के बाद इस दरवाजे पर पहुँचते हैं। दरवाजे में लकड़ी के विशाल किवाड़ आजतक वैसे ही लगे हुए हैं। बुलन्द दरवाजे को सम्राट अकबर ने अपनी गुजरात विजय के बाद 1602 ई. में बनवाया था।

मस्जिद-दरगाह

बुलन्द दरवाजे के पीछे यहां की मस्जिद मक्का की मस्जिद की तर्ज पर जामा मस्जिद बनाई गई है और इसके डिजाईन में हिन्दू और पारसी वास्तुशिल्प का प्रयोग किया गया है। मस्जिद में एक स्थान पर एक विचित्र प्रकार का पत्थर लगा है। जिसको थपथपाने से नगाड़े जैसी ध्वनी सुनाई देती है। मस्जिद पर सुन्दर नक्काशी की गई है। मस्जिद के उत्तर में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह बनी है। बताया जाता है कि यहां आकर निःसन्तान मुस्लिम महिलाएं सन्तान के लिए दुआ मांगती हैं। शेख सलीम की समाधि संगरमर से बनी है तथा इसके चारों ओर पत्थर के बहुत बारिक कार्य की सुन्दर जाली लगाई गई है जो मनमोहक दिखाई देती है। यह जाली दूर से देखने पर जालीदार श्वेत रेशमी वस्त्र की भांति नजर आती है। समाधि के ऊपर मूल्यवान सीपए सींग तथा चन्दन का 400 वर्ष पुराना शिल्प कार्य लगता है मानो अभी-अभी किया है। श्वेत पत्थरों में विविध रंगों वाली फूल.पत्तीयां नक्काशी की कला के उदाहरण है। समाधि के किवाड़ आबनूस के बने हैं।जहाँगीर ने समाधि की दीवार पर चित्रकारी करवाई। लार्ड कर्जन ने समाधि के चंदन और शीप के कटघरे का पुनर्निर्माण कराया।

पंच महल

अकबर द्वारा निर्मित एक महल पंच महल है जिसे अकबर महल भी कहते है। इस पांच मंजिले महल की वास्तुकला किसी बौद्ध मन्दिर से प्रेरित प्रतीत होती है। इसमें कारीगरीपूर्ण कुल 176 खम्भे हैं। जिनमें से 84 भूतल पर, 56 प्रथम तल पर और 20 तथा 12 खम्भे क्रमशः द्वितीय तथा तृतीय तल पर हैं। अन्तिम तल पर 4 खम्भे हैं जिनके ऊपर एक छतरी स्थित है। यह भवन की पांच मंजिलें ऊंचाई में क्रमशः छोटी होती जाती हैं। भवन के चार चमन के आंगन में सुंदर तालाब अनुपताल है, जहाँ तानसेन राग दीपक गया करते थे।इसका उपयोग शाही हरम में रहने वाली महिलाओं के विलास और मनोरंजन के लिए किया जाता था।
जोधाबाई के महल की ओर जाने वाले मार्ग पर अन्य इमारतों में ख्वाबगाहए अनूप तालाब, आबदार खाना, पचीसी दरबार, आँख मिचोली (जहां अकबर अपने हरम की महिलाओं के साथ छुपा.छिपी का खेल खेलते थे) और इसे बाद में शाही खजाने में तब्दील कर दिया गया। ज्योतिषी का कमरा, दफ्तर खाना, इबादतखाना और हरम प्रमुख हैं।

जोधाबाई का महल

सभी महलों में सबसे बड़ा महल जोधा बाई का महल है,जिसमें अकबर की महारानी जोधा बाई रहती थी। यहाँ गुजरात, मांडू एवं ग्वालियर की वास्तुकला का परम्परागत इस्लामी वास्तुकला के साथ मिश्रण किया गया है। साथ ही इसकी नीली टाइलों से बनी छत फतेहपुर सीकरी में अपने तरह की एकमात्र वास्तुकला है।

रूकैया बेगम महल

ताल के पूर्व में अकबर की तुर्की बेगम रूकैया का महल है। इस महल की सजावट तुर्की के शिल्पकारों ने की थी। दीवारों, छतों एवं स्तम्भों की बारीक कारीगरी देखते ही बनती हैं। रुकैया बेगम के महल के दांई ओर दीवान-ए-आम 350 फीट लम्बा नक्काशीदार हॉल बना है जहां अकबर अपनी दो बेगमों के साथ न्याय करता था। दीवान-ए-खास की विशेषता इसके मध्य एक अष्टकोणीय पाषाण स्तम्भ है जिसपर भवन टिका हुआ है। यह एक मंजिला भवन बाहर से देखने पर दुमंजिला नजर आता है।

इतिहास

कहा जाता है कि मुगल राजा अकबर की कई पत्नियाँ थीं लेकिन उनकी कोई सन्तान नहीं थी। संतान के रूप में एक पुत्र प्राप्ति की इच्छा में वह कई संतों के साथ-साथ अंत में सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के पास गये और अकबर ने उनसे सन्तान के लिये मन्नत मांगी। संत ने अकबर को सन्तान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। संत के आशीर्वाद से अकबर को 1569 में एक पुत्र की प्राप्ति हुई और पुत्र का नाम संत के नाम पर सलीम रखा गया।
अकबर संत से प्रभावित हुए कि उन्होंने फतेहपुर सीकरी में एक भव्य जामा मस्जिद का निर्माण करवाया। बताया जाता यह मस्जिद मदीना मस्जिद की तर्ज पर बनवाई गई है। इस मस्जिद के पश्चिम में दो कब्रें हैं, जिनमें से एक उस संत की है और दूसरी उसके नवजात शिशु की। यही नहीं अकबर ने संत की स्मृति में एक भव्य नगर के निर्माण का निर्णय लिया और फतेहपुर सीकरी का निर्माण करवाया। यह नगर एक पत्थर की पहाड़ी के किनारे पर स्थित है और इसके भीतर विशाल आँगन, महल, मस्जिदें ,जलाशय और बगीचे बने हैं जिनकी भव्यता दिल्ली और आगरा के भवनों के समान हैं। अकबर ने इसे अपनी राजधानी बना लिया और करीब 15 वर्षो तक यहीं से शासन किया।बाद में पानी की कमी हो जाने से वह वापस अपनी राजधानी को आगरा ले गया। अकबर द्वारा बनाई गई लाल बलुआ पाषण की कल्पनाएं आज सैलानियों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन गई हैं। आज कई वर्ष बीत जाने के बाद भी इस शहर की भव्यता में कमी नहीं आई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *