सामाजिक

विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिए कई शहरों के धरोहर स्थलों की सैर का आयोजन

नई दिल्ली। सहपीडिया के इंडिया हेरिटेज वॉक फेस्टिवल (आई.एच.डब्ल्यू.एफ.) का दूसरा सत्र विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियों और अभावग्रस्त बच्चों के लिए कई शहरों की विरासत की सैर कराने के श्रृँखलाबद्ध कार्यक्रम के साथ शुरू होगा। यह सत्र ‘अनुभूति’ कार्यक्रम के तहत आयोजित किया जाएगा। इस ऑनलाइन मंच के समाज के सभी वर्गों तक भारतीय कला एवं संस्कृति की पहुँच बनाने के दीर्घकालिक उद्देश्य के तहत इस सैर (वॉक) को उन समुदायों के लिए विशेष रूप से डिजाइन एवं सहयोग किया गया है, जिन्हें सांस्कृतिक विरासत को गहराई से जानने का कोई अवसर नहीं मिल पाता है।
पिछले साल आई.एच.डब्ल्यू.एफ. को अपनापहला सत्र आयोजित करने के लिए 2018 के पाटा (PATA) स्वर्ण पदक से पुरस्कृत किया गया था। यह एक महीने तक चलने वाला अपने तरह का पहला महोत्सव है जिसके तहत लगभग 100 धरोहरों की सैर और इनसे जुड़े कार्यक्रमों के साथ 37 शहरों का भ्रमण किया जाता है। यूनेस्को की भागीदारी से आयोजित यह महोत्सव इस बार नेशनल मिनरल डेवलपमेंट काॅरपोरेशन (एन.एम.डी.सी.) के सहयोग से 2 से 28 फरवरी के बीच आयोजित किया जाएगा। कार्यक्रम की सभी बुकिंग बर्डग्रुप के ओडिगोज (Odigos) ऐप के जरिये की जाएगी। यह एक ऑनलाइन मार्केटप्लेस है जो सैलानियों को भारत में मान्यता प्राप्त गाइडों के साथ जोड़ता है। ओडिगोज ऐप सैलानियों और स्थानीय, दोनों तरह केलोगों को हमारे देश के प्रसिद्ध स्थलों के बारे में जानने और समझने के लिए निर्बाध सुविधा प्रदान करता है।
धरोहर रूपी संसाधन के विभिन्न स्वरूपों तक किसी भी तरह की पहुँच से वंचित समूहों के लिए धरोहर की शिक्षा को अनुभव जन्य और समावेशी बनाने के उद्देश्य से सहपीडिया ने देशभर के स्कूलों, एनजीओ तथा अन्य समाज कल्याण संस्थाओं जैसे कई स्थानीय भागीदारों के साथ साझेदारी की है ताकि कोलकाता, शिलाँग, मुंबई व भुवनेश्वर जैसे शहरों में स्पेशल वॉक का संचालन किया जा सके।
आई.एच.डब्ल्यू.एफ. के निदेशक और सहपीडिया के सचिव वैभव चैहान ने कहा, “स्पेशल वॉक का मुख्य उद्देश्य दिव्यांग जनों और अन्य सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की ऐतिहासिक स्थलों तक पहुँच बनाना है ताकि वे देश की विरासत से वंचित न रहने पाएँ। इस पर हमारा फोकस आई.एच.डब्ल्यू.एफ. के अलावा भी पूरे साल रहता है। पिछले एक वर्ष में सहपीडिया ने लगभग 2,000 दिव्यांगजनों के लिए 50 से अधिक धरोहर कार्यक्रमों का आयोजन और सहयोग किया है।”
भुवनेश्वर में ‘मुक्तेश्वर मंदिर में मंदिर निर्माण की कलिंग शैली का अनुभव’ शीर्षक से पहली सैर 3 फरवरी को तीन बजे दोपहर को दृष्टि बाधित छात्रों के लिए आयोजित की जाएगी। सेंटर फॉर यूथ एंड सोशल वेलफेयर (सी.वाई.एस.डब्ल्यू.) की भागीदारी और नीतूरंजन दास के नेतृत्व में आयोजित इस सैर का मुख्य मकसद उड़ीसा की वास्तुकला का नगीना कहे जाने वाले मुक्तेश्वर मंदिर के बारे में जानकारी जुटाना होगा।
कई छोटे-छोटे तीर्थस्थलों, एक सरोवर और एक विशाल सुसज्जित तोरण के बीच स्थित 15 फुट ऊँचा यह मंदिर हिंदू देवता शिव को समर्पित है। इस परिसर में जहाँ विभिन्न मुद्राओं में अनगिनत मूर्तियाँ मौजूद हैं, वहीं कुछ विद्वान इसमंदिर की भूमिका तांत्रिक परंपरा के केंद्र के रूप मेंभीदेखते हैं।
स्पेशल वॉक का एक मुख्य आकर्षण मुंबई की 200 फुट ऊँची गिल्बर्ट पहाड़ी है जहाँ दृष्टिबाधित और बधिर छात्रों को सैर कराई जायेगी। यह 660 लाख वर्षपुरानी चट्टान है जो अब विश्व के तीन स्थानों पर ही पाई जाती है। यह पहाड़ी मुंबई के उपनगरीय इलाके अंधेरी में है। कुल 180 सीढ़ियों की चढ़ाई पर स्थित इस पहाड़ी से मुंबई उपनगरीय इलाके का मनोहारी दृश्य नजर आता है। इसी परिसर में दो मंदिर भी हैं। एक्सेस फॉर ऑल के संस्थापक सिद्धांत शाह के नेतृत्व में यह वॉक 18 फरवरी को सुबह 11 बजे शुरू होगा।
कोलकाता में सैर का नेतृत्व मेकर्स को लैबोरेटिव की स्वाति मिश्रा करेंगी और पंडित जवाहरलाल नेहरू को समर्पित तथा दुनिया के 88 देशों की गुड़ियों के विशाल संग्रहालय, नेहरू चिल्ड्रेंस म्यूजियम में आर्थिक रूप से पिछड़ी पृष्ठभूमि के छात्रों को सैर कराएँगी। यहाँ पौराणिक कथाओं के विभिन्न दृश्यों और घटनाओं को मिट्टी से बनाया गया है जिसे देखकर बच्चे बहुत खुश होते हैं।
सुश्री मिश्रा ने कहा, “इस वॉक के तहत हम होप फाउंडेशन के सीखने में कठिनाई अनुभव करने वाले बच्चों को संग्रहालय के गलियारों में ले जाएँगे। इससे पहले उन्हें दो दिन नेहरू बाल संग्रहालय की सामाजिक पृष्ठभूमि से रूबरू कराया जाएगा। संग्रहालय का दौरा करने वाले विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को इस सैर के लिए तैयार करने का काम विशेषज्ञों की मदद से मेकर्स को लैबोरेटिव द्वारा किया जा रहा है।”
स्पेशल वॉक के अन्य कार्यक्रमों में आर्थिकरूप से पिछड़े बच्चों के लिए शिलाँग के डॉन बॉस्को सेंटर फॉर इंडिजिनस कल्चर्स में सैर का कार्यक्रम भी शामिल है। यह 17 गैलरियों वाला संग्रहालय है जहाँ पूर्वोत्तर भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सहेजकर रखा गया है, जिनमें इस क्षेत्र के कैथोलिक चर्च, विभिन्न जनजातियों केवाद्ययंत्रों, शिल्प कृतियों और पारंपरिक परिधानों का संग्रह शामिल है। पुरातत्वविद् और इतिहास के शिक्षक नफिबहुन लिंगदोह के नेतृत्व में यह सैर 16 फरवरी को आयोजित की जाएगी।
शहर में रहने वालों को अपने खाने की सामग्री स्वयं उगाने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से आशिम बेरी, दिल्ली में 14 फरवरी को मैजिक बस फाउंडेशन के आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों के लिए एक कार्यशाला आयोजित करेंगे। यह कार्यशाला भागीदारों को ड्रम टावर (2 वर्गफुट में 20 वनस्पतियों से बना एक टावर) से लेकर टोकरी और केतली निर्माण जैसी मृदा कला की विभिन्न तकनीकों को जानने और सीखने में मदद करेगी।
स्पेशल वॉक के अलावा सहपीडिया ने देश के बड़े महानगरों, टीयर-2 और टीयर-3 शहरों और केंद्रशासित प्रदेशों में विषय आधारित हेरिटेज वॉक, सोशल मीडिया और फोटोग्राफी आधारित ‘इंस्टामीट’, ‘बैठक’ और अन्य समांतर कार्यक्रम आयोजित करने की विस्तृत योजना बनाई है। दिल्ली में प्रतिष्ठित लेखक और विद्वान 3 फरवरी को मशहूर शायर, आगा शाहिद अली की रचनाओं पर केंद्रित बैठक ‘लुकिंग फॉर शाहिद’ का आयोजन करेंगे।
स्थानीय स्तर के 40 भागीदारों के साथ देश के सभी क्षेत्रों में फैला आई.एच.डब्ल्यू.एफ.जमीनी स्तर पर जुड़ने पर जोर देते हुए देशव्यापी पहुँच रखता है। फेस्टिवल के पहले सप्ताह में देश के विभिन्न शहरों में लगभग 40 हेरिटेज वॉक आयोजित किए जाएँगे, जिसके तहत स्थानीय भागीदारों और विशेषज्ञों की मदद से गुमनाम स्थलों और देश की धरोहरों के अपेक्षाकृत कम ज्ञात पहलुओं पर फोकस किया जाएगा।
नई दिल्ली स्थित यूनेस्को के कार्यलय में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रमुख और विशेषज्ञ जुन्ही हान ने कहा, “आई.एच.डब्ल्यू.एफ कार्यक्रम लिंग समानता से जुड़े मुद्दों, अधिक समावेशी और सुगम तरीके से सांस्कृतिक धरोहरों तक पहुँच बनाने की सुविधाओं पर केंद्रित रहने के साथ ही स्थानीय वास्तुकला की धरोहरों एवं दीर्घकालिक पर्यटन से संबंधित है। इस कार्यक्रम के साथ अधिक से अधिक लोगों, खासकर युवाओं, के जुड़ने, दिलचस्पी रखने और उन्हें संवेदनशील बनाए जाने की उम्मीद है, जो इसके माध्यम से अपनी सांस्कृतिक धरोहर के बारे में समझ सकें और शहरी धरोहर, मौखिक इतिहास और समुदायों के बारे में जानकारी देते हुए समाज को जुड़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकें।”
एन.एम.डी.सी. के सी.एम.डी. बैजेंद्र कुमार ने कहा, “आईएचडब्ल्यूएफ जैसी मुहिम में स्थानीय समुदायों को शामिल किया गया है जो भारत की धरोहर को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। एनएमडीसी पिछले 60 वर्षों से बस्तर के सुदूरवर्ती आदिवासी क्षेत्रों और बेलाडिला की पहाड़ियों में काम कर रही है और इसने जनजातीय संस्कृति और भारतीय विरासत के अन्यरूपों को भी गंभीरता से प्रोत्साहित किया है।

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