सैर सपाटा

मनोरम प्राकृतिक छटा से लुभा लेती है बूंदी..

-डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
लेखक एवं पत्रकार

अरावली की पहाडयों की गोद में बसा बूंदी प्राकृतिक सौन्दर्य का अद्भुत नजारा लिए है। यहाँ अनेक मंदिर होने से इसे ’छोटी काशी‘ के नाम से विभूषित किया गया है। यह खूबसूरत शहर बूंदी जिले का मुख्यालय है। प्राचीन बूंदी रियासत के समय महलों से जुडी मजबूत चार दिवारी (परकोटे) से घिरी थी। इसमें पश्चिम में भैरोपोल, दक्षिण में चौगान गेट, पूर्व में पाटन पोल एवं उत्तर में शुल्क बावडी गेट बने हैं।
वर्षा एवं शरद ऋतु में विशेषकर बूंदी नगर का दृष्य अत्यंत मनोहारी होता है जब पर्वत हरियाली चादर ओढ लेते हैं, झील और तालाब पानी से लबालब भर जाते है, महल, छतरियों एवं मंदिरों का नया रूप नजर आने लगता है। बूंदी के आस पास के क्षेत्र में पहाडयों से गिरते झरनों पर पर्यटकों की चहल पहल बढ जाती है। नगर के मध्य स्थित आजाद पार्क एवं जैत सागर के किनारे बना रमणिक उद्यान की छंटा लुभावनी हो जाती है। रात्रि में बिजली की रोशनी में जगमगाते शहर की खूबसूरती का तो कहना ही क्या ! आज शहर ने परकोटे से बाहर निकल कर विस्तृत आकार लिया है। बूंदी में मोरडी की छतरी, छोटे महाराज की हवेली, कवि सूर्यमल्ल मिश्रण की हवेली, बडे महाराज की हवेली, मीरगेट स्कूल में बने पुराने चित्र एवं भालसिंह की बावडी भी दर्शनीय हैं। महाराव उम्मेदसिंह द्वारा १७७० ई. में निर्मित हनुमान जी की छतरी, चौथमाताजी का मंदिर, बाणगंगा में केदारेश्व महादेव एवं अन्य देव मंदिर, हंसादेवी माता जी का मंदिर, कल्याण जी का मंदिर एवं लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर विशेष रूप से दर्शनीय हैं।

  • तारागढ

बूंदी शहर के उत्तर में पहाडी पर बना तारागढ किला बूंदी के सिर पर ताज जैसा लगता है। यह किला बूंदी शहर से ६०० फीट तथा समुद्रतल से 1400 फीट ऊँचाई पर है। राव रतन सिंह ने 1354 ईस्वी में इसका निर्माण करवाया था। दुर्ग की बाहरी दीवारों का निर्माण 18 वीं सदी के पूर्वाद्ध में जयपुर द्वारा नियुक्त गर्वनर दलेल सिंह द्वारा करवाया गया था। तिहरे परकोटे में बना दुर्ग करीब साढे चार किलोमीटर परिधि में है। दुर्ग में भीम बुर्ज, महल, पानी का तालाब, छतरी मंदिर आदि दर्शनीय हैं। जलाशयों में वर्षा जल संग्रहित होता था एवं वर्ष भर पेयजल के काम आता था। यही पर १२० फीट परिधि वाली १६ खंभों की सूरज छतरी दर्शनीय है।

  • राज प्रसाद :

तारागढ दुर्ग के चरण पखारता बूंदी का राजमहल का अपना विशिष्ठ स्थान है। इसके निर्माण में अनेक शासकों का हाथ रहा। चौगान गेट से आगे चल कर महलों में जाते हैं तो महल की चढाई शुरू होने से पहले राजा उम्मेद सिंह के घोडे हंजा की प्रतिमा नजर आती है। समीप ही जरा सा आगे चलने पर शिव प्रसाद नामक हाथी की प्रतिमा बनी है। इसे महाराज छत्रसाल ने बनवाया था। यहाँ से आगे चलने पर एक के बाद दूसरा दो दरवाजे आते हैं। दूसरे दरवाजे पर 17 वीं शताब्दी में राजा रतनसिंह द्वारा बनवाया युग्म हाथियों के द्वार को हाथी पोल कहा जाता है। इस दरवाजे के दूसरी ओर रतन दौलत दरी खाना है। यहाँ बूंदी शासकों का राजतिलक किया जाता था। इसके आगे चलने पर छत्रमहल चौक के एक भवन में रामसिंह के समय के खगोल एवं ज्योतिष विधा के यंत्र रखे हैं। पास के कक्ष में बने सुन्दर भित्ती चित्र धुमिल हो गये है। छत्रमहल चौक के एक ओर हस्थिशाला बनी है।
आगे दरीखाना और दूसरी तरफ रंग विलास है। यहीं सुन्दर उद्यान एवं चित्रशाला तथा अनिरूद्ध महल बने हैं। जिसे उन्होने 1679 ई. में बनवाया था और आगे चल कर इसे जनाना महल बना दिया गया। चित्रशाला को कलादीर्घा कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां सम्पूर्ण दीवारों पर 18 वीं सदी पूर्वाद्ध के बूंदी शैली के चित्रों की ख्याति विश्व स्तर पर है। चित्रों को बचाये रखने के लिए सुरक्षित कर दिया गया है। दिन-रात पुरातत्व विभाग की निगरानी रहती है। गढ महल राजपूत शैली का दुर्लभ नमूना है।

  • जैत सागर

बूंदी में ही बस स्टेण्ड से करीब दो कि.मी. पर पहाडयों की गोद में बना जैत सागर अपनी लुभावनी छटा लिए है। पहाडी नदी पर बांध बनाकर इसका निर्माण किया गया है। इसके किनारे बना सुख महल एवं सुंदर उद्यान बने हैं। जैत सागर में सैलानियों के लिए बोटिंग की व्यवस्था है। बूंदी के अंतिम मीणा शासक जैता ने इसका निर्माण 14 वीं सदी में करवाया था। सुख महल का निर्माण राजा विष्णुसिंह ने 1773 ई. में करवाया गया था। सुख महल परिसर ने नया संग्रहालय स्थापित किया गया है। जैत सागर के एक किनारे पर नगर परिषद् द्वारा पहाडी पर आकर्षक उद्यान विकसित किया गया है। जैत सागर में जब कमल के फूल अपनी रंगत बिखरते हैं तो शोभा निराली हो जाती है। जैतसागर के समीप बने सुख महल में भूतल पर एक बडा और दो छोटे कक्ष है। प्रथम तल पर दो कमरे आमने सामने हैं। छत गुम्बद युक्त, शि खरनुमा हैं। दोनों कक्षों के मध्य जैत सागर की पाल की ओर एक आठ स्तंभों पर आधारित छतरी भी है।

  • रानी जी की बावडी

बूंदी शहर की कलात्मक बावडयों एवं कुंडो में राव राजा अनिरूद्ध सिंह की विधवा रानी नाथावत द्वारा 1699 ई. में निर्मित शहर के मध्य स्थित रानी जी की बावडी सिरमौर है। बावडी में ऊपर से नीचे की ओर जाते हुए करीब 159 सीढयों के बाद जल कुण्ड आता है। स्थापत्य, मूर्ति, शिल्प बनावट सीढयां मध्य में बना हाथियों का तोरण द्वार, ऊपर बनी छतरियों तथा दीवारों में बने देवी देवताओं की मूर्तियां बावडी की विशेष ताएं हैं। शहर की दूसरी महत्वपूर्ण बावडी गुल्ला जी की कुण्डली आकार की बावडी है। इसे गुलाब बावडी भी कहा जाता है। इसके आगे एल आकार की भिस्तियों की बावडी, श्याम बावडी तथा व्यास बावडी भी दर्शनीय हैं। नागर-सागर नामक दो कुंड अपनी स्थापत्य एवं सीढयों की संरचना की दृष्टि से बेजोड हैं। यहां संगमरमर की प्राचीन छतरियां बनी हैं तथा आस-पास उद्यान बना है। कुडों में गजलक्ष्मी, सरस्वती एवं गणेश आदि धार्मिक मूर्तियां बनी हैं। रामसिंह की रानी चन्द्रभान कंवर ने इन्हें बनवाया था।

  • नवल सागर

करीब 400 वर्ष प्राचीन सुन्दर नवल सागर शहर के मध्य वार्ड सं. 2 में आकर्षण का केन्द्र है। महल के नीचे बने इस सरोवर से महल एवं तारागढ का संयुक्त दृष्य अत्यंत मनभावन लगता है। इससे शहर में जलापूर्ति भी की जाती है। सागर के किनारे बने मंदिर में गजलक्ष्मी की अद्वितीय मूर्ति स्थापित है। इसमें हाथी लक्ष्मी का घटाभिषेक करते नजर आते हैं। देवी के बालों से गिरते पानी को हंस अपनी चोंच में ले रहे हैं। देवी का नचे का भाग श्रीयंत्र के रूप में है। बताया जाता है कि पुराने समय में तांत्रिकों द्वारा इसकी पूजा की जाती थी। नवल सागर के किनारे पर राजा विष्णु सिंह की रक्षिता सुंदर शोभराज जी ने 18 वीं सदी के उत्तर्राध में सुंदर घाट एवं महलों का निर्माण कराया था। प्रथम मंजिल पर खडी मुद्रा में हनुमान जी की प्रतिमा है।

  • शिकार बुर्ज

बूंदी में बनी शिकार बुर्ज राजाओं के शिकार के लिए बना सुंदर भवन है। इसे 1770 ई. में महाराव उम्मेद सिंह ने रहने के लिए बनवाया था और वे प्रायः यहाँ विश्राम करने आते थे। बाद में इस भवन को शिकारगाह के रूप में उपयोग में लिया जाने लगा। इसी के पास हनुमान छतरी बनी है। यह कभी खूबसूरत पिकनिक स्थल रहा।

  • खूबसूरत झरने

बूंदी से 9 कि.मी. दूरी पर प्रकृति की गोद में रामेश्वम् खूबसूरत जगह है। यह 200 फीट से ऊँचाई से गिरता झरना देखना रोमांचक लगता है। यह झरना जहाँ गिरता है वहां शिवलिंग स्थापित है। यहीं एक गुफा में पांच सौ वर्ष पुराने शिव लिंग की पूजा की जाती है। चट्टान की प्राकृतिक सुंदरता को मध्य गुफा से बाहर यहाँ शिव रात्रि पर मेला भरता है।
बूंदी से 15 कि.मी. दूर भीमलत नामक सुंदर झरना अद्वितीय है। बताया जाता है बनवास के दौरान पाण्डव यहाँ आये थे। इस स्थल पर बना शिव मंदिर पूज्य है। बरसात के दिनों में इन दोनों जलप्रपातों पर सैलानियों का जमघट लगा रहता है।

  • फूल सागर

बूंदी शहर के उत्तर पश्चिम में करीब ५ कि.मी. दूरी पर फूलसागर दर्शनीय स्थल है। इसके किनारे एक बडा पानी का कुण्ड, मध्य में छतरी तथा दो छोटे महल बने है। इस सागर का निर्माण राजा भोज सिंह की उप रानी फूललता द्वारा 17 वीं सदी के पूर्वाद्ध में कराने से उनके नाम पर फूल सागर रख दिया गया। महल रायल परिवार की निजी सम्पत्ति है। सरोवर निर्माण के 70 साल बाद उद्यान एवं झरना बनाया गया।

  • केशरबाग

बूंदी से करीब साढे चार कि.मी. दूर शिकार बुर्ज के समीप ऊँची दिवारों से घिरी 66 छतरियां (जो राजाओं, रानियों, राजकुमारों की समाधि स्वरूप बनाई गई) स्थान को केशरबाग कहा जाता है। इनमें कतिपय छतरियां अपनी स्थापत्य एवं मूर्ति शिल्प कला में अद्वितीय हैं। सबसे पुरानी छतरी राव सुरजन के पुत्र महाराज कुमार दूधा की है। वह 1582 ई. में मुगलों से युद्ध करता हुआ मारा गया था। आखरी छतरी महाराव विष्णु सिंह की है जिसकी 1821 ई. में मृत्यु हो गई थी। यह स्थल उपेक्षित स्थिती में है।

  • चौरासी खंबो की छतरी

बूंदी के पर्यटक स्थलों में चौरासी खम्बों की छतरी स्मारक दर्शनीय है। बूंदी में ही देवपुरा के समीप स्थित कलात्मक छतरी का निर्माण 1684 ईस्वीं में धाबाई देवा की समृति में करवाया गया था। देवा राव राजा अनिरुद्ध सिह का धाबाई था। तीन मंजल की छतरी चौरासी खंबों पर बनी है एवम् स्थापत्य कला दर्शनीय है।

  • आसपास

बूंदी जिले में केशवरायजी का मंदिर, मुनि सुवर्तनाथ जी का जैन मंदिर, इंद्रगढ़ का किला और पर्वत पर बीजासन माता का मंदिर और कमलेश्वर महादेव का मंदिर आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

  • उत्सव

बूंदी में कजली तीज का मेला, बूंदी स्थापना दिवस एवं हाडौती उत्सव मुख्य सांस्कृतिक आयोजन है। इनमें विदेशी सैलानी भी रूचि पूर्वक हिस्सा लेते हैं तथा विभिन्न
प्रतियोगिताओं में शामिल होते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर केशोरायपाटन में मेले का आयोजन किया जाता है।

  • महत्वपूर्ण

बूंदी जयपुर -जबलपुर राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर कोटा शहर से 36 किमी.दूरी पर स्थित है। यहां ठहरने के लिए अच्छे होटल एवम पेइंग गेस्ट हाउस की अच्छी सुविधाएं हैं। होटलों में भोजन की पर्याप्त सुविधाएं हैं।

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