संपादकीय

कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने वाले अटल जी

– अविनाश राय खन्ना
उपसभापति, भारतीय रेड क्रास सोसाईटी
1951 में स्थापित भारतीय जनसंघ का विलय 1977 में जनता पार्टी के साथ हो जाने के बावजूद कुछ वर्षों के अनुभव ने जनसंघ नेताओं को 1980 में भारतीय जनता पार्टी के रूप में एक नये दल के गठन के लिए बाध्य कर दिया। स्व. श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय जनता पार्टी के प्रथम अध्यक्ष थे। दो लोकसभा सांसदों के साथ शुरुआत करने वाले इस राजनीतिक दल को सत्ता के शिखर पर पहुँचाने में श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की महान भूमिका रही। पहली बार श्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने केवल 13 दिन के लिए, दूसरी बार उन्हें 13 महीने का कार्यकाल मिला और तीसरी बार 1999 में उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में पूरे लोकसभा सत्र का नेतृत्व करने का सौभाग्य प्राप्त कर लिया। इस महान इतिहास के पीछे उनका एक ही लक्षण सहायक था कि वे राजनीति के प्रत्येक उतार-चढ़ाव को, छोटी से बड़ी किसी भी समस्या को और यहाँ तक कि विरोधी राजनेताओं को मिलते हुए भी वे हास्य मुद्रा में ही दिखाई देते थे।
वर्ष 2004 में जब मैं पंजाब के होशियारपुर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सांसद निर्वाचित हुआ तो उस समय माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ निकटता अनुभव करने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस अवधि में हम विपक्षी सांसद थे। परन्तु मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ व्यतीत 2004 से 2009 तक का लोकसभा कार्यकाल अनेक दृष्टियों से एक महान प्रशिक्षण की तरह सिद्ध हुआ।
अटल जी के दो गुण मैं हमेशा ही उनके अन्दर नजदीकी से देखता आया हूँ – सरल स्वभाव और हर परिस्थिति में कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने की प्रवृत्ति। जब मैं लोकसभा का सदस्य था तो उस अवधि में पंजाब भाजपा का प्रधान भी रहा हूँ। एक दिन शुक्रवार को संसद के बरामदे में मैं तेज गति से निकल रहा था तो अचानक सामने से अटल जी आते हुए मिले। नजदीक आने पर मैं एकदम रूक गया, परन्तु मेरी तेज गति को देखकर वे बोले ‘‘अविनाश कहाँ भागे जा रहे हो।’’ इस पर मैंने उन्हें कहा कि कल पंजाब युवा मोर्चा की रैली है और मेरी ट्रेन का समय कम रह गया है। उन्होंने मुझे कहा कि जितनी तेज भाग रहे हो उतनी ही रैली भी सफल होनी चाहिए। उनकी इस टिप्पणी को मैंने उत्साह और आशीर्वाद दोनों के रूप में समझा। रैली वास्तव में बहुत सफल रही। दो दिन बाद सोमवार को उन्होंने स्वयं मुझे अपने कक्ष में बुलाया और कहा कि मैंने तुम्हारी रैली का विवरण प्राप्त किया है, बहुत ही सफल रैली रही। उनके द्वारा अपनी तारीफ सुनकर मुझे बड़ा उत्साह मिला। वे इसी प्रकार अक्सर हर कार्यकर्ता के कार्यों का ध्यान रखते थे और खुले मन से तारीफ करके उत्साह बढ़ाया करते थे।
अटल जी जब संसदीय बोर्ड के चेयरमैंन थे तो देशभर में उम्मीदवारों को टिकट बांटने का काम मुख्य रूप से उन्हीं को करना होता था। वे एक-एक उम्मीदवार के विवरण पर पूरी गम्भीरता और गहराई के साथ विचार करते थे और जिन लोगों को टिकट नहीं मिल पाती थी, वे उन्हें भी अलग-अलग बातों से उत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। वे नकारात्मक जवाब को भी बड़े हास्य और मनोविनोदपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया करते थे। एक बार एक प्रतिनिधि मण्डल किसी समस्या पर उन्हें लगातार तीन बार मिलने आता रहा और तीसरी बार हिम्मत हारकर एक कार्यकर्ता ने उन्हें कह दिया कि अटल जी आप निर्णय तो करते नहीं। इस पर अटल जी ने बड़े सहज भाव से स्पष्ट इशारा करते हुए कहा कि कभी-कभी निर्णय न करना भी निर्णय ही होता है।
मैंने एक बार पंजाब में बहुत बड़ी रैली का आयोजन किया। मंच पर श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी तथा श्री लालकृष्ण आडवानी जी भी बैठे थे। भाषणबाजी पंजाबी में चल रही थी। मेरे भाषण पर दो-तीन बार जनता में से पूरे उत्साह के साथ तालियाँ बजी। अटल जी मेरे पंजाबी में बोले गये वक्तव्य को तो समझ नहीं पाये परन्तु तालियों को देखकर बड़े उत्साहित हुए। उन्होंने आडवानी जी से पूछा कि अविनाश ने ऐसा क्या कह दिया अपने भाषण में जो इतनी तालियाँ बज रही हैं। यह बात उन्होंने मुझे बाद में स्वयं ही बताई और मुझे उत्साहित किया। पंजाब में स्थानीय निर्वाचनों में हुई धांधलेबाजी का विवरण देने जब हम श्री प्रकाश सिंह बादल के साथ प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के पास पहुँचे तो पहले श्री बादल जी ने उन्हें तथ्यों से अवगत कराया और उसके बाद जब मैंने सारी स्थिति को स्पष्ट किया तो अटल जी ने मुझे कहा कि अविनाश तुम्हारे बताये गये विवरण से ऐसा लगता है कि जैसे तुम वहाँ स्वयं उपस्थित थे और तुमने सारा आँखों देखा हाल सुनाया है। परन्तु जब मैंने उन्हें बताया कि मैंने कार्यकर्ताओं से प्राप्त विस्तृत जानकारी के आधार पर ही सारी स्थिति आपके समक्ष रखी है तो उन्होंने मुझे उत्साहित करते हुए कहा कि कार्यकर्ताओं की बातों को अपने अन्दर इसी प्रकार रखना चाहिए जैसे वह कष्ट और पीड़ा हम पर ही बीती हो। इस प्रकार वे हर छोटी-बड़ी बात पर हमें सदैव उत्साहित और प्रेरित ही करते रहते थे।
मेरी बेटी जब पायलट बनी तो उसने अटल जी से मिलने की इच्छा व्यक्त की। उस वक्त अटल जी अस्वस्थ थे और अधिक वार्तालाप भी नहीं कर पाते थे। मैं अपनी बेटी को लेकर जब वहाँ गया तो हमें देखकर उन्होंने मुस्कुराहट से प्रसन्नता व्यक्त की। उनके सहायक अधिकारी ने जब उन्हें बेटी के पायलट बनने की सूचना अपने इशारों से दी तो उन्होंने बेटी को देखते हुए विशेष प्रसन्नता व्यक्त की। मेरी बेटी उनकी उस प्रसन्नता को आज तक स्मरण रखती है। उनके देहावसान का समाचार सुनकर मेरी बेटी ने कहा कि ऐसा लगता है जैसे हमारे घर का ही कोई सदस्य दिवंगत हो गया है।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ मिले इन अनुभवों के बल पर ही मुझे यह विशेष लाभ प्राप्त हुआ कि मैंने किसी भी राजनीतिक उथल-पुथल वाली परिस्थितियों के बावजूद कभी अपनी मानसिकता को असंतुलित नहीं होने दिया और सदैव हर अवस्था में हास्य और मनोविनोद भावों के द्वारा अपना ही नहीं अपितु अपने सभी सहयोगियों का उत्साह बढ़ाता रहा।

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