राजस्थान में जैव ईंधन उत्पादन की अपार संभावनाएं
-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
लेखक एवं पत्रकार
विश्व में प्राकृतिक क्रूड तेल के भंडारों को खत्म होने से बचने और उन पर निर्भरता कम करने के साथ-साथ वैकल्पिक जैव ईंधन को बढ़ावा देने के लिए विश्व जैव ईंधन दिवस का आयोजन कर इस दिशा में जागृति लाने के प्रयास प्रारम्भ किये गए हैं। वनस्पति एवं कूड़े-कचरे से ईधन बनाने की और अब वैश्विक स्तर पर पर चिंतन-मनन का माहौल बन है। इस दिशा में भारत में भी कई जगह काम हुआ है,अनुसंधान किये जा रहे हैं और कुछ प्रेरणादायी परिणाम भी सामने आए हैं। बायोफ्यूल पर्यावरण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण घटक होने, क्रूड ऑयल अर्थात कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम कर इसके बिल में कमी लाने में सहायक होने एवं इस काम से गांवों,किसानों और गरीब को जोड़ कर उनकी आर्थिक स्थिति को उबारने की दृष्टि से सरकार आगे आ कर अधिक से अधिक जागरूकता के प्रयास कर रही हैं। जैव ईंधन को प्रयोत्सहित करने के लिए पिछले कुछ वर्षों से 10 अगस्त की विश्व जैव ईंधन दिवस का आयोजन किया जा रहा है।
याद हो आता है जब पिछले वर्ष दिल्ली में इस दिवस के आयोजन पर प्रधनमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि ईंधन में मिलाएं जाने वाले एथनोल पर लगने वाली जीएसटी को कम कर 18 से 5 फीसदी किया गया है। एथनोल की आपूर्ति बढ़ाने के लिए तेल एवं प्राकृतिक मंत्रालय ने कई उपाय किये हैं। जैव ईंधन कार्यक्रम स्वच्छ भारत और किसानों की आय बढ़ाने वाली परियोजनाओं के साथ-साथ भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने कहा था एथनोल उत्पादन के लिए हर प्रकार के कृषि अपशिष्ट का उपयोग किया जा शत हैं। सरकार का प्रयास है कि वर्ष 2022 तक 10 फीसदी एथनोल पेट्रोल में मिलाया जाने लगे और वर्ष 2030 तक बढ़ कर यह 20 फीसदी तक पहुँच जाए। सरकार एथनोल का वतर्मान के 141 करोड़ लीटर के उत्पादन को अगले चार साल में बढ़ कर 450 लीटर तक ले जाने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने देश में 10 करोड़ रुपये से एक दर्जन बायोफ्यूल रिफाइनरी लगाने की घोषणा कर बताया कि इनमें बड़े शहरों के कचरे का उपयोग होगा और कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम होने में सहायता मिलेगी। इससे करीब 12 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत भी हो सकेगी। सरकार की नई राष्ट्रीय बायोफ्यूल नीति में ये लक्ष्य तय किये गये हैं। साथ ही बायोफ्यूल के लिये गन्ना,मक्का,शकरकंद जैसी फसलों के उपयोग का उपयोग करने का रास्ता क्लियर किया गया। प्रधानमंत्री के इस उद्बोधन से भारत सरकार इरादा और मन्तव्य स्पस्ट है कि सरकार चाहती हैं लोग इस दिशा में पहल कर आगे आये और अपनी सक्रिय सहभागिता निभाये। सरकार ने एथनोल के लिए नियंत्रित मूल्य प्रणाली,तेल विपणन कम्पनियों के लिए प्रक्रिया के सरलीकरण के साथ-साथ 1951 के उद्योग ( विकास एवं नियमन) अधिनियम में संशोघन किया और एथनोल की खरीद के लिये लिग्नोसेलुलोसिक तरीके को अपनाने जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
भारतीय पेट्रोलियम संस्थान देहरादून द्वारा जट्रोफा से बने फ्यूल से विमान उड़ाने का सफल परीक्षण किया जा चुका है। राजस्थान में भी जट्रोफा से फ्यूल उत्पादन में सफलता प्राप्त की गई है और उत्पादित फ्यूल का विविध कार्यो में उपयोग किया जा रहा है। जट्रोफा खेती को समुचित बढ़ावा दिया जा रहा है। राजस्थान में भी नई बायोफ्यूल नीति लागू की जाकर बड़े पैमाने पर बायोफ्यूल उत्पादन प्रारंम्भ करने की तैयारी है। वर्तमान में फुलेरा एवं भीलवाड़ा के प्रॉसेसिंग इकाइयों से करीब 50 टन प्रतिदिन का उत्पादन किया जा रहा हैं। जयपुर के बगरू एवं सिरोही के स्वरूपगंज की इकाइयां भी जल्द चालू होने की आशा है,जिनके शुरू होने से उत्पादन बढ़ कर 100 तन प्रतिदिन हो जाएगा।राज्य में बायोफ्यूल उत्पादन की फ्रीडती से अब तक रतनजोत और करंज के करीब साढ़े सात करोड़ पौधे लगाए जा चुके हैं। राजस्थान में लगभग 70 लाख हैक्टेयर वेस्ट लैंड होने से यहां बायोफ्यूल उत्पादन की व्यापक संभावनाएं हैं।
जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने एवं जैविक ईंधन के महत्व के आधार पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान हैदराबाद के शोधकर्ता ऐसी विधियों का उपयोग कर रहे हैं जो देश के ईंधन क्षेत्र में जैव ईँधन को शामिल करने से कारकों और बाधाओं को समझने में सहायक हो सकते हैं। जो ढांचा तैयार किया गया है उसकी विशेषता यह है कि केवल जैविक ईंधन को बिक्री को राजस्व सृजन का आधार नहीं मन गया बल्कि पूरी परियोजना चक्र में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के माध्यम से कार्बन क्रेडिट को भी शामिल किया गया है।
जैव ईँधन के इतिहास को देखें तो डीजल इंजन के आविष्कारक सर रुडॉल्फ ने 10 अगस्त 1893 को प्रथम बार मूंगफली के तेल से यांत्रिक इंजन को सफलतापूर्वक चलाया। उन्होंने ने इस प्रयोग की सफलता से उत्साहित हो कर उस समय भविष्यवाणी की थी कि अगली सदी में विभिन्न यांत्रिक इंजन में वनस्पति तेल की जगह जीवाश्म ईँधन का प्रयोग होने लगेगा।