संपादकीय

श्यामा शर्मा ने बाल साहित्य में बनाई पहचान

-डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
लेखक एवम पत्रकार

कोटा की वरिष्ठ साहित्यकार श्यामा शर्मा आज राजस्थान में बाल साहित्य के क्षेत्र में उभरती साहित्यिक प्रतिभा हैं। ज्यादा समय नहीं हुआ यही कोई आठ नौ साल का समय जब इन्होंने बाल कविताएं और गीत लिखना शुरू किया और अल्प समय में अपनी पहचान कायम करली। हाल ही में इन्हें साहित्य मंडल नाथद्वारा द्वारा 7 जनवरी 2022 को राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्यकार सम्मान से नवाजा जाना इस तथ्य को इंगित करता है।
आपकी साहित्यिक यात्रा के विषय में चर्चा के दौरान कहती है बाल साहित्य लिखना अन्य विधाओं की अपेक्षा काफी कठिन है। बालकों की कोमल मनोभावनाओं, उनके मनोविज्ञान, ग्रहीयता, परिवेश सभी को ध्यान में रख कर सरल शब्दों का चयन और उनकी जुगलबंदी कर लिखना आसान नहीं है। यही नहीं यह भी देखना पड़ता है कि जो कुछ भी सृजन हो वह संदेश परक भी हो और बच्चों का मनोरंजन करने के साथ – साथ उनके नैतिक और मानसिक विकास में भी सहायक हो। बाल साहित्य के क्षेत्र में आगे आने के लिए वह अपने पति प्रतिष्ठित साहित्यकार जितेंद्र ‘निर्मोही ‘ को श्रेय देते हुए बताती है उनकी प्रेरणा ही है जिन्होने एक बार कहा था ” बाल साहित्य ही तुम्हें साहित्य जगत में स्थापित करेगा। इसी दिशा में प्रयास करो, आगे बढ़ो “।

बाल कविताएं : अपनी बाल कविताओं में आपने जीवन के अनेक पहलुओं को छुआ हैं। बच्चों को सहज आकर्षित करने और उन्हें प्रकृति से जोड़ कर उनके मन को प्रफुल्लित करने वाली कविताओं में- बन्दर, बारिश, काले बादल, खरगोश, अंगूर, सूरज, बरसा पानी, गिलहरी,केसूला फूल, मोर, तितली हैं। बच्चों में संस्कार और मानवीय गुण विकसित करने की दृष्टि से गांधी जी, नारी दिवस, छुआछूत, स्वच्छता अभियान, शिक्षक दिवस, जैसी कविताएँ लिखी हैं। विज्ञान का क्षेत्र भी इनकी कविताओं से अछूता नहीं है आपने जैव विविधता, कम्प्यूटर, ओजोन परत, जल संरक्षण, पृथ्वी दिवस, वन्य जीव सप्ताह, योगासन जैसी जानकारी देने वाली कविताओं का सृजन भी किया है। बस्ता, रेल, नानी का घर, पार्क की ढोलक, पाठशाला जैसी कविताओं के माध्यम से बच्चों को सहज रूप से जोड़ा है वहीं मैं सीमा पर जाऊंगी, आगे कदम बढ़ाता चल, धरती राजस्थान की, सलूंबर की हाड़ी रानी जैसी कविताओं से बच्चों में शोर्य की भावनाएं प्रवाहित करने में सफल रही हैं। आपकी ऐसी 40 कविताओं का बाल काव्य संग्रह ” कोई गीत सुनाओ ना ” का प्रकाशन जन चेतना प्रकाशन कोटा से 2020 किया गया। इस कृति को जिसे इसी वर्ष के किए 2022 में राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर से प्रकाशन सहयोग प्रदान किया गया है। यह कृति काफी चर्चा में रही परिणाम स्वरुप इस कृति पर उत्कर्ष साहित्य मंच नई दिल्ली से वर्ष 2022 का सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्यकार पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुआ है।

आपकी बाल कविता के एक बानगी देखिए……….

समरसता के गीत सुनाता
बाल काव्य मुझको है माता
बाघ,रीछ, चीता और बंदर
सब आ जाते इसके अंदर।
सारा जग इसमें आ जाए
यह बच्चों का ज्ञान बढ़ाए
पोथी कक्षा और पाठशाला
राज्य, देश और जगत निराला I
दादाजी भी इनको गाये
ये दादी के मन को भाये ।।
कविता बच्चों को तो एक दिशा देती ही है वहीं बड़ों को सावचेत कर कहती हैं…….
बच्चों का बचपन ना छीनो
पढ़ना लिखना ना इनका रोको…।
इसी प्रकार विज्ञान की विविधता पर उनकी एक कविता की बानगी देखिए……..
इलेक्ट्रॉनिक कार
उस पर होगें आज सवार
ला दो ना इलेक्ट्रॉनिक कार
कार हमारी खर्चीली है
वैसे रंग में यह पीली है ।
दूषित पर्यावरण है होता
और मनुज आक्सीजन खोता
जितना कम होगा आक्सीजन
उतना भय से कांपे जन जन ।
हमें आज ये संकट हरना
शीघ्र काम ये पापा करना
क्षत शिक्षित ओजोन परत है
और मनुष्य प्रदूषण में है ।
हमें संकट समाज का हरना
देखो पापा काम ये करना।।

लोक कथाएं : आपने हाड़ोती अंचल में प्रचलित लोक कथाओं राजकुमारी पचफूलां, थप्पड़ खोल, कठपूतली, लोढ़ी की सूज बूथ,अपणो अपणो भाग,बढ़,पचधींगा की बू,गीला जी,मोत्यां को रुंख, और गुरगल के माध्यम से जन-जन की उन बातों को उजागर किया है जो उन्हें जीवन जीने के लिए प्रेरणादायी दिशाबोध प्रदान करती है। आपकी 10 लोक कथाओं का संग्रह “राजस्थानी लोककथावां’ के प्रथम पुस्तक के रूप में राजस्थानी भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी,बीकानेर के आंशिक आर्थिक सहयोग से बोधि प्रकाशन,जयपुर से दिसम्बर 2012 में प्रकाशित हुई है।

आंचलिक लोक कथाओं की यह कृति काफी चर्चित रही। कृति पर टिप्पणी करते हुए

साहित्यकार राधेश्याम मेहर ने कहा ” श्यामा जी का मांडबा में एक धारछै एक गति छै।बात क्हबा कि बोली चाली को लटको,ठाम ठाम पै रचना का रुपाळापण कै तांई मनमोहणों बनावै छै। श्यामा जी की मेहनत अर काबिलियत सरावण जोग छै। ई बगत जद मनख को बरताव दोगलो होतो जा र्यो छै।मनख्यां की संवेदनावां समटती जा’री छै।अस्या में श्यामा जी की ई पोथी को आबो सरावण जोग छै।” कवि दुर्गा दान सिंह गौड़ ने कहा ” ई पोथी में हाड़ौती अंचल का लोक की धड़कन छै।” इस कृति के महत्व का इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि इसका उल्लेख लोक साहित्य पुरोधा डॉ महेंद्र भानावत ने अपनी कृति में किया है। राजस्थानी साहित्य मर्मज्ञ जुगल परिहार ने समय – समय पर संकलन की कथाओं को” माणक” पत्रिका में प्रकाशित किया है। कथाकार विजय जोशी सहित अन्य साहित्यकारों ने आपकी कृतियों पर समीक्षाएं भी लिखी हैं।
श्यामा जी की दूसरी कृति “हाड़ौती अंचल की रोचक लोक कथाएं” (2018) में राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के सहयोग से प्रकाशित हुई है। आपने अपने पति की चर्चित राजस्थानी बाल काव्य कृति” जंगळी जीवां की पछाण” का हिंदी अनुवाद ” वन्य जीवों की पहचान” के रुप में किया है। आपकी कृति “चिड़िया रानी आओ ना” वर्ष 2022 राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के सहयोग से सामने आई है। आपको -विश्व वाणी मंच जबलपुर से हिंदी साहित्य श्री सम्मान, कर्मयोगी सेवा संस्थान कोटा से सम्मान और प्रजापिता ब्रह्माकुमारी कोटा कोटा से सम्मानित किया गया है।

परिचय : आपका जन्म 10 जनवरी 1958 को कोटा जिले की पीपल्दा तहसील में कारवाड़ में स्व. राम प्रताप के आंगन में हुआ। दुर्भाग्यवश बचपन में पिता का साया सर से उठ गया और आपका ननिहाल में पालन पोषण हुआ।आपने हिंदी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।किसी पारिवारिक वजह से स्नातकोत्तर की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। वर्तमान में आप राजस्थानी भाषा साहित्य में संस्मरण और कहानियां लिख रही है जो संकलन के रुप में जल्दी ही सामने आयेंगे। आपकी सृजन यात्रा निरंतर जारी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *