संपादकीय

लोक नृत्य के अजीबो गरीब विश्वास

डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
भारत की संस्कृति, नृत्य, संगीत, कला, परंपरा, लोक विश्वास का आकाश अनंत है। किसी की मृत्यु पर नृत्य करने से मरने वाले की आत्मा पवित्र होती है सुन कर आश्चर्य होना स्वाभाविक है। यह अजीबो गरीब विश्वास भारत के पूर्वोत्तर में मिजोरम राज्य के मिजो आदिवासियों में आज भी है। वे मानते हैं कि मनुष्य की आत्मा चेराव नृत्य जिसे बांस नृत्य भी कहा जाता है की लय और शान के माध्यम से पवित्रता प्राप्त करती है। इसलिए इस नृत्य को किसी की मृत्यु के बाद भी किया जाता है।
मिजोरम का यह सबसे लोकप्रिय नृत्य है। इसमें लंबे – लबें बांसों का इस्तमाल किया जाता है। बांसों के चार समूह में आठ बांस होते हैं। पुरुष और महिलाएं साथ – साथ नृत्य करते हैं। पुरुष इन बांसों को पकड़ते है और महिलाएं इनके अंदर और बाहर ढोल की थाप पर गायन के साथ नृत्य करती हैं। पारंपरिक रूप से यहाँ ढोल बजकर संगीत प्रदान किया जाता है परंतु आजकल आधुनिक संगीत उपकरण भी उपयोग किए जाने लगे हैं। दक्षिण एशिया में विभिन्न जनजातियों में बांस नृत्य की शैली प्रचलित है । मिजो लोगों चेराव त्योहारों और विशेष अवसरों पर प्रदर्शन करते हैं।
मिजोरम की एक समृद्ध और जीवंत संस्कृति है जो इसकी जातीय विविधता और ऐतिहासिक विरासत से प्रभावित है। सांस्कृतिक एवं धार्मिक दृष्टि से यहां की अधिकांश जनसंख्या ईसाई है जो ईसाई पर्वों को पूरे उत्साह से मनाते हैं। बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम भी अपने सभी प्रमुख पर्वों को परंपरागत तरीके से मानते हैं। मिजो लोगों की एक अलग सांस्कृतिक पहचान है, जो उनकी भाषा, रीति-रिवाजों और परंपराओं में झलकती है। संगीत और नृत्य मिज़ो संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं, और कई पारंपरिक नृत्य हैं जो त्योहारों और समारोहों के दौरान किए जाते हैं।

चौंगलैज़ॉन नृत्य

यह नृत्य को मिजोरम के पावि जनजाति के द्वारा किया जाता है। यह एक अनूठी नृत्य शैली है । इस नृत्य का प्रदर्शन दो अलग अलग स्थिति दु: ख और खुशी दोनों में किया जाता है। दिलचस्प है, दोनो अवसर एक दूसरे से काफी अलग हैं। इस नृत्य शैली को खुशी की स्थिति में जैसे – एक अच्छे शिकार के बाद शिकारी का स्वागत करने के लिए किया जाता है । पुरुष और महिला कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होते हैं और हाथ के इशारों और विभिन्न मुद्राओं से यह नृत्य किया जाता है । एक रंगीन शाल इन लोगों के हाथ में होती है जिससे हस्तमुद्राए और भी सुन्दर लगती हैं। नृत्य की विचित्रता है कि एक विवाहित महिला की मृत्यु पर पति अपनी पीड़ा को प्रकट करने के लिए इस नृत्य का प्रदर्शन करता है और जब तक वह थकावट से गिर न जाये तब तक नाचता है।

खुल्लम नृत्य

हरे, पीले , लाल और काले रंग की धारियों की पोशाक जिसे पौंडन कहा जाता है इस नृत्य की खास पोशाक है । यह पोशाक शादी के बंधन का प्रतीक है और सभी दुल्हनों को उनकी शादी के दिन पर पेहनना पड़ता हैं। स्थानीय स्तर पर , इस नृत्य में कोई गीत नहीं होते बल्कि गबरू नाम का एक घंटा बजाया जाता है। इस घंटे की थाप पर लोग नाचते हैं।परंपरागत रूप से यह मेहमानों का नृत्य है । लोग इन प्रदर्शनों को देखने के लिए आमंत्रित किये जाते हैं ।

सौलकिन नृत्य

पहिटे जनजाति द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य एक योद्धा का नृत्य है। इसमें नृतक ढाल और अस्त्र शास्त्र लेकर नाचते है। इस नृत्य में गायन और नृत्य दोनों शामिल है। नृतक की पोशाक रंगीन कपड़े की बनी होती है और पारम्परिक गहने तथा एक लाल पंख लगाये जाते हैं ।

सोलकै नृत्य

इस नृत्य शैली को मुख्य रूप से मरास और पावि जनजातियों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है । सोलकै जीत का नृत्य है। ऐतिहासिक रूप से, यह पराक्रम प्रदर्शित करने के लिए योद्धाओं द्वारा किया गया था और पराजित योद्धा को दास के रूप में रख सकते हैं। इस नृत्य में नृतक अपने गीत स्वयं गाते हैं ।

चैलम् चपर कुट नृत्य

यह मार्च महीने का एक त्योहार है जो जंगल सफाई से सम्बंधित एक वसंत त्योहार है। चैलम् नृत्य आम तौर पर इस त्योहार के दौरान प्रदर्शित किया जाता है। इस नृत्य में, पुरुषों और महिलाओं को वैकल्पिक रूप से एक चक्र के रूप में खड़े होते है । पुरुष महिलाओं के कंधे पकड़ कर और महिला को पुरुषों की कमर पकड़ कर नृत्य करते हैं। ढोल बजाने वाले बीच में रहते हैं । सींग और मिथुन का पारंपरिक रूप से इस्तेमाल किया जाता हैं। पौराणिक कथा के अनुसार इस नृत्य को आम तौर पर चावल से बने एक मद्यसार से किया जाता है ।

परलम नृत्य

यह महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एक नृत्य है। वे अपने बालों में फूल लगाती हैं और रंगीन वेशभूषा पहनते हैं। वे अपने खुद के गीतों को गाते और नृत्य करते हैं। ढोल और संगीत पुरुषों द्वारा दिया जाता है। कृषि गतिविधियों से जुड़े यहां के लोग वर्ष में तीन बार तीन कुट., चापचर, मिम कुट एवं पावल कुट पर्वों का आयोजन नृत्य के साथ करते हैं।

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