वाकई में छोरियां छोरों से कम नहीं होती
फिल्म का नाम : छोरियां छोरों से कम नहीं होती
फिल्म के कलाकार : सतीश कौशिक, रश्मि सोमवंशी, अनिरुद्ध दवे
फिल्म के निर्देशक : राजेश अमरलाल बब्बर
फिल्म के निर्माता : जी स्टूडियो और सतीश कौशिक एंटरटेनमेंट
रेटिंग : 3/5
हमेशा से ही बेटियों को बेटों के आगे कमतर समझा जाता हैं, लेकिन आखिर में बेटियां ही मां-बाप का सहारा बनती हैं। कहते हैं कि ज़माना बदल गया है लेकिन कहीं न कहीं देश के कुछ हिस्सों में आज भी परिवार में बेटों का मान बहुत किया जाता है, और बेटियों को यह समझा जाता है कि बेटियां सिर्फ पराया धन होती हैं। इसी सोच के मद्देनज़र सतीश कौशिक ने बतौर निर्माता फिल्म, छोरियां छोरों से कम नहीं होती बनाई है। फिल्म हरियाणवी कल्चर पर आधारित है। फिल्म का मूल सूत्र वही है कि माता-पिता को उनकी मुसीबतों से आखिर में छुटकारा बेटी भी दिला सकती है, ये फिल्म भी यही कहती है, बेटी ही बचाएगी।
फिल्म की कहानी :
स्त्री पुरुष अनुपात में दशकों से पीछे रहा हरियाणा बदल रहा है। यहां की बेटियों की कहानियां राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान पा रही हैं और छोरियां छोरों से कम नहीं होती भी हरियाणा की इसी नई सूरत की नई दमक है। फिल्म दो बेटियों की कहानी है, जिनका पिता उन्हें लड़कियों से आगे कुछ नहीं समझता। पिता को गम है कि बेटा क्यों नहीं हुआ और बेटी में दम है कि वह आईपीएस बनकर दिखा देती है और पिता की मुसीबतों का हल ढूंढ लाती है।
निर्देशक राजेश बब्बर ने फिल्म का कैनवास बड़ा रखने का अच्छा प्रयास किया है। फिल्म में सतीश कौशिक स्वयं लीड रोल में हैं, जो पिता की भूमिका निभा रहे। इससे पहले उन्हें ज़्यादातर काॅमेडी जाॅनर में ही देखा गया है। रश्मि सोमवंशी ने महिला पुलिस की भूमिका को जीवंत बनाने के लिए वाकई में कड़ी मेहनत की है, उनकी मेहनत उनके अभिनय में साफ दिखता है। अनिरुद्ध दवे फिल्म में रश्मि के दोस्त हैं। संजीव रामफल और करनाल के एस्ट्रोलाजर दीपक पंडित इस फिल्म में एडवोकेट की भूमिका में हैं। इसका संगीत भी फिल्म को मजबूत सहारा देते दिखता है।
फिल्म क्यों देखें :
फिल्म का काॅन्सेप्ट अच्छा है, एक बार देखी जा सकती है।