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न्याय की अनोखी कहानी को बयां करती फिल्म ‘वन डे : जस्टिस डिलिवर्ड’

फिल्म का नाम : वन डे: जस्टिस डिलिवर्ड
फिल्म के कलाकार : अनुपम खेर, ईशा गुप्ता, कुमुद मिश्रा, ज़ाकिर हुसैन, राजेश शर्मा, अनुस्मृति सरकार
फिल्म के निर्देशक : अशोक नंदा
फिल्म के निर्माता : केतन पटेल, कमलेश सिंह कुशवाहा और स्वाति सिंह
रेटिंग : 2.5/5

निर्देशक अशोक नंदा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘वन डे: जस्टिस डिलिवर्ड’ एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म है जो आज से सिनेमाघरों में लग गई है। वैसे तो असल ज़िंदगी में न्याय मिलने में सालों साल लग जाते हैं, कई बार ऐसा भी होता है कि वर्षों बीतने के बाद भी न्याय नहीं मिलता। लेकिन असल ज़िंदगी में लोग न्याय पाने के लिए सारी हदों को पार नहीं करते। भले ही असल ज़िंदगी में न होता हो लेकिन फिल्मों में तो होता ही है। ऐसी ही कुछ फिल्म वन डे की कहानी में भी है।

फिल्म की कहानी :
यह कहानी है झारखंड के रिटायर्ड जज जस्टिस त्यागी (अनुपम खेर) की जो रिटायर होने के बाद अपने उन गलत फैसलों पर पछतावा करता है जो उसने कानून के दायरे में रहकर किए हैं। रिटायर होने के बाद वो उन दोषियों को सज़ा देने के लिए एक मिशन तैयार करता है। दूसरी ओर एक दिन अचानक डॉक्टर अजय (मुरली शर्मा) और उनकी पत्नी डॉक्टर रीना (दीपशिखा नागपाल) गायब हो जाते हैं। इंस्पेक्टर शर्मा (कुमुद मिश्रा) जांच शुरू करता है। तभी हॉटेलियर पंकज सिंह (राजेश शर्मा) भी गायब हो जाता है। जब मामला बहुत गंभीर हो जाता है तब क्राइम ब्रांच की ऑफिसर लक्ष्मी राठी (ईशा गुप्ता) को केस की ज़िम्मेदारी दी जाती है। लक्ष्मी राठी के आने के बाद भी कई लोग लापता होते हैं। त्यागी और लक्ष्मी राठी दोनों अपने-अपने मिशन में कैसे कामयाब होते हैं? यह जानने के लिए आपको सिनेमाघर का रूख करना होगा।

बात करें कलाकारों की अदाकारी कि तो हमेशा कि तरह अनुपम खेर इस बार भी आपको अपने किरदार में खूब भाएंगे, यही उनकी सबसे बड़ी खासियत है कि किरदार की बारिकियों को वो समझते हैं और कोई भी किरदार हो वो अपने किरदार में पूरी तरह से रम जाते हैं। स्पेशल पुलिस अफ़सर की भूमिका में ईशा गुप्ता अच्छी लगती हैं। पुलिस इंस्पेक्टर शर्मा के रोल में कुमुद मिश्रा प्रभावित करते हैं।

हालांकि फिल्म की कहानी काफी अच्छी चुनी गई है और साथ ही साथ एक अच्छा संदेश भी देने की कोशिश की गई है, लेकिन यदि फिल्म का निर्देशन भी कमाल का किया गया होता तो यह फिल्म बहुत ही बेहतरीन बनती। फिल्म के पहले भाग से ज़्यादा अच्छा दूसरा भाग है क्योंकि दूसरा भाग जिज्ञासा पैदा करता है कि अब आगे क्या होगा? फिल्म का संगीत कुछ खास नहीं है जिसे आप गुनगुनाते हुए थिएटर से बाहर आएं।

फिल्म क्यों देखें? :
फिल्म का विषय काफी अच्छा है लेकिन फिर भी एक ही बार देखने लायक है।

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