हलचल

राजस्थानी का श्रृंगार काव्य संयोग-वियोग का अद्भूत मेल है : साहित्यकार जितेन्द्र निर्माेही

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
राजस्थानी भाषा के ख्यातनाम कवि, साहित्यकार जितेन्द्र निर्माेही ने कहा कि राजस्थानी भाषा के श्रृगांर काव्य में प्रेम के संयोग और वियोग का अदभूत मिश्रण नजर आता है और प्रेम की अभिव्यक्ति श्रृंगार रस के माध्यम से ही होती है।
श्री निर्मोही शुक्रवार को जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के राजस्थानी विभाग द्वारा ऑनलाईन फेसबुक लाइव गुमेज व्याख्यान श्रृंखला अंतर्गत विषय विशेषज्ञ के रूप में अपने विचार प्रस्तुत कर रहे थे ।
कार्यक्रम की संयोजक एवं राजस्थानी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. मीनाक्षी बोराणा ने बताया कि ऑन लाईन राजस्थानी भाषा व्याख्यानमाला देश विदेश में सतत लोकप्रिय हो रही है । आधुनिक राजस्थानी श्रृंगार पर बोलते हुए जितेन्द्र निर्माेही ने कहा कि श्रृंगार एक लोकप्रिय एवं जनप्रिय शब्द है। श्रृंगार का अर्थ शोभा और सुन्दरता बढ़ाने वाला तत्व और उसका स्थाई भाव रति है ।
निर्माेही ने कहा कि राजस्थानी भाषा के प्राचीन साहित्य में अगर हम देखे तो 9 वीं सदी के कुवळयमाळा से माधवनळ, कामंदकला से लेकर आज तक काव्य में प्रचुर मात्रा में श्रृंगार काव्य मिलता है,जिसमें बीसलदेव रासो, ढोला मारू रा दुहा, रूकमणी हरण, वैलि किसन रूकमणी, मीरा पदावली, रसमंजरी, आदि कई ग्रंथ मिलते है। राजस्थान श्रृंगार, भक्ति, शक्ति की भूमि रहा है। उन्होंने सुर्यमल्ल मिसण के ग्रंथ में और ढोला मारू के दोहो में संयोग वियोग श्रृंगार का जो सुंदर रूप मिलता है, उसके बारे में विस्तार से बताया, ईसरदास जी के वीर सतसई के दोहों में श्रृंगार का अदभूत वर्णन मिलता है, यही श्रृंगार जब धीरे धीरे लोक में आया तो सुक्तियों के रूप में बहुत प्रचलित हुआ। जिनमें श्रृंगार के विविध रूपों का वर्णन किया गया है। आधुनिक राजस्थानी श्रृंगार काव्य राजस्थानी लोक साहित्य, लोक गीतो के माध्यम से आया है।
जितेन्द्र ने बताया कि प्राचीन काल और आधुनिक काल में श्रृंगार काव्य की अनुवाद की हुई कई अदभूत पुस्तके सामने आई है। उन कविताओं का प्रस्तुति करण करते हुए बताया कि श्रृंगार काव्य में प्रेम ही मुख्य तत्व है और यदि प्रेम को निकाल दिया जाए तो श्रृंगार का कोई महत्व नही रह जाता है। आपने समकालीन काव्य में श्रृंगार की बात करते हुए अलग अलग कवियों द्वारा अलग अलग तरीके से काव्य में प्रेम की जो अभिव्यक्ति की गई है उनकी कविताओं का विस्तार से वर्णन किया है । सर्वश्री नारायण सिंह भाटी, मेघराज मुकल, सत्यप्रकाश जोशी, डॉ. भगवती लाल व्यास, सी.पी. देवल, डॉ. अर्जुनदेव चारण, मीठेश निर्माेही, अंबिका दत्त, डॉ.नीरज दईया, नंद भारद्वाज, आईदान सिंह भाटी, कुंदन माली, रवि पुरोहित, ओम पुरोहित, अजय कुमार सोनी, ज्योति पूंज, राजु सारासर, अशोक जोशी, राजेन्द्र जोशी आदि रचनाकारों का उल्लेख किया । आपने कहा कि नई काव्य रचनाओं में प्रगतिशील, प्रयोगवादी, प्रकृतिवादी लेखन देखने को मिलता है, जिसमें कन्हैयालाल सेठिया, श्याम महर्षि, मालचंद तिवाडी, मदन गोपाल लढ्ढा आदि की कविताएं प्रमुख है । राजस्थानी महिला काव्य लेखकों की चर्चा करते हुए कहा कि इनकी रचनाओं में श्रृंगार की बहुत ही खुब सुरत अभिव्यक्ति हुई है और इनके लेखन ने श्रृंगार काव्य कों समृद्व किया है, जिसमें रानी लक्ष्मी कुमारी चुंडावत, तारा लक्ष्मण गहलोत, कमला कमलेश, सुखदा कच्छावा, पुष्पलता कश्यप, सावित्री डागा, शारदा कृष्ण, बसंती पंवार, निवीमा राठौड, डॉ. मीनाक्षी बोराणा, मोनिका गौड़, गीता सामौर किरण राजपुरोहित, कृष्ण जाखड, पुजाश्री आदि।
हाडौती अचंल की प्राचीन परम्परा पर बात करते हुए कहा कि इस परम्परा का सबसे बड़ा एवं महत्वपूर्ण नाम रघुराज सिंह हाडा है, जिनके काव्य में श्रृंगार एक अलग ही ऊंचाई लिए हुए है ।
नई पीढ़ी के श्रृंगार काव्य में नए चित्र बिंबो उदीपन, विभाव, विपल्व श्रृंगार, प्रतिक बिंब, संचारी भाव, जड़ता, आवैग आदि को लेकर गीत रचे गए है। इसके अलावा श्रृंगार काव्य में लोक समाज, घटना प्रधान, दर्शन, बोध, अध्यात्म, सगुन विज्ञान, प्रकृति, नारी सौंदर्य,नायक नायिक के विभिन्न रूप, पशु पक्षी, तीज त्योहार, व्रत उपवास, चांद तारें, सुरज, भूमि, बाग बगीचे, पौराणी पात्र, बरसात चौमासा, खेत खलिहान, प्रकृति के विभिन्न रूप, भक्ति का श्रृंगार काव्य, किसान, नायिका की भाव भंगिमाओं का वर्णन बहुत ही सुंदर तरीके से मिलता है ।
इस ऑनलाईन व्याख्यानमाला में देश भर से बड़ी संख्या में साहित्यकार, विद्वान और शोधार्थी, विद्यार्थी जुडे रहे। जिनमें प्रमुख रूप से रमेेश बोराणा, डॉ नीरज दैया, डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित, बसंती पंवार, भंवरलाल सुथार, सुरेन्द स्वामी, संपोष पारीक, शोभना शर्मा, राजपाल चौधरी, विजय जोशी, नेमीचंदन गहलोत, कवि देवकी दर्पण, शिवचरण शिवा, पप्पसा ईनाणिया, श्रीकांत पारीक, शिवशंकर, विष्णुशंकर, रविन्द्र, भगवान पारीक, डॉ अनिता वर्मा, आशीष परिहार आदि है ।

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