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भारतीय आर्थोपेडिक सर्जन को बैंकाक में प्राइड आफ एशिया : हेल्थ एक्सीलेंस अवार्ड

नई दिल्ली। प्रसिद्ध आर्थोपेडिक सर्जन प्रो. (डा.) राजू वैश्य को थाईलैंड की राजकुमारी मोम लुआंग राजदर्शी जयंकुरा ने प्राइड आफ एशिया: हेल्थ एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित किया। डा. राजू वैश्य को यह सम्मान चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए बैंकाक में होटल होलीडे इन सिलोम में शनिवार की रात आयोजित एक भव्य समारोह में दिया गया।
यह पुरस्कार ग्रहण करते हुए डा. राजू वैश्य ने कहा, ‘मेरे लिए यह गौरव एवं खुशी का क्षण है कि मुझे यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किया गया है। यह पुरस्कार अन्य लोगों को भी प्रेरित करेगा। मैं यह पुरस्कार अपने वरिष्ठ चिकित्सकों को समर्पित करता हूं जिन्होंने मुझे प्रेरित किया, अपने उन सहयोगियों को समर्पित करता हूं जिन्होंने मुझे हर संभव सहयोग किया तथा उन मरीजों को समर्पित करता हूं जिन्होंने मुझपर विश्वास किया।’’
इस मौके पर थाईलैंड एवं भारत के अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे। थाईलैंड की राजकुमारी इस समारोह में मुख्य अतिथि थी जबकि भारत से लोकसभा सदस्य श्री उदित राज विशेष अतिथि थे। यह पुरस्कार ग्लोबल एचीवर्स एलायंस (जीएए) की ओर से दिया जाता है।
डा. राजू वैश्य नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में वरिष्ठ आर्थोपेडिक एवं ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन हैं। वह इंडियन कार्टिलेज सोसायटी के अध्यक्ष हैं। उन्हें मई 2013 में उत्तरी भारत में पहला कस्टमाइज्ड जिग्ज (प्रीप्लान) टोटल नी आर्थ्रोप्लास्टी करने का श्रेय हासिल है। प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में उनके 250 से अधिक शोध आलेख प्रकाशित हो चुके हैं तथा वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में 58 शोध पेपर प्रकाशित हुए जो कि एक रिकॉर्ड है। हिप एवं नी ऑथ्रोप्लास्टी, स्पोर्ट्स मेडिसीन और आर्थ्रोस्कोपी जैसे विभिन्न ऑर्थोपेडिक विषयों पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और बैठकों में व्याख्यान के लिए वह आमंत्रित किए जाते रहे हैं। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध लिवरपूल यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड से केवल 30 साल की उम्र में एमसीएच (आर्थो) की प्रतिष्ठित उपाधि हासिल की और वह इस उपाधि के लिए चुने जाने वाले सबसे कम उम्र के छात्र थे। उन्होंने 2012 में रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन्स ऑफ इंग्लैंड से एफआरसीएस (इंग्लैंड) किया। अफगानिस्तान, नाइजीरिया, कांगो आदि जैसे दुनिया के सबसे कठिन और युद्धग्रस्त इलाकों में भी उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को चिकित्सा सेवाएं प्रदान की है। दुलर्भ किस्म की आर्थोपेडिक शल्य क्रियाओं को सफल अंजाम देने के लिए उनका नाम 2012, 2013, 2014 और 2016 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज किया जा चुका है।

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