सामाजिक

20वें भारत रंग महोत्सव में युवा फोरम ने चार नाटकों का मंचन किया

डोंट किल माई वाइब : गुरू तेग बहादुर इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी की ड्रैमेटिक सोसायटी का यह नाटक एक चरित्र सिमरन के इर्द-गिर्द घूमता है, जो अपने जीवन में आ रहे उतार-चढ़ाव से उबर पाने में अक्षम है, उस पर अपनी पढ़ाई जारी रखने का दबाव है, परिवार की आकांक्षाओँ का बोझ है और साथ में उसका सामाजिक जीवन और उसके मन की शांति का भी सवाल है। वह समझ नहीं पाता है कि ऐसा क्या है जो उसे हर दिन के जीवन में रोक रहा है। उसे क्या हो रहा है यह जान नहीं पाना उसे सबसे अधिक परेशान कर रहा है। वह इस अनभिज्ञता की स्थिति से परेशान हो चुका है।

न्यूड मेकअप : शहीद भगत सिंह ईवनिंग कॉलेज की ड्रैमेटिक सोसायटी का यह नाटक पितृसत्ता की बात करता है और यह दर्शाता है कैसे एक व्यक्ति के तौर पर हम सब इसकी वकालत करते हैं और कहीं न कहीं इसका खामियाजा भी भुगतते हैं। यह सेक्स और जेंडर की गलत अवधारणा को भी स्पष्ट करता है जो हमारे समाज में हमेशा से व्याप्त है। यह दिखाता है कि पितृसत्ता क्या है, यह सामाजिक मॉडल पुरुषोँ व महिलाओँ में स्पष्ट विभेद पैदा करता है और कैसे पहले से जेंडर के आधार पर तय भूमिकाएँ अंततः पुरुषोँ व महिलाओँ दोनो पर ही गलत प्रभाव डालते हैं, जिन्हे हम विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और कानूनी पहलुओँ में देख सकते हैं।

दिस एंड्स नाउ : हंसराज ड्रैमेटिक सोसायटी का यह स्ट्रीट प्ले जनतंत्र के इर्द-गिर्द घूमता है। जो कि एक 19वीँ सदी का राजनैतिक संस्थान है, जिसे 15वीँ सदी की सूचना तकनीक की सहायता से 21वीँ सदी के लिए तैयार किया गया है। भारत की राजनैतिक शक्ति, सबसे युवा और तेजी से प्रगति करती डेमोक्रेसी होने के बावजूद, सिर्फ राजनैतिक नेताओं के कंधों पर झूल रही है। जो लगातार हमारी आवाज को दबा रहे हैं और हमेँ तमाम माध्यमों से जो सूचनाएँ मिल रही हैं वे सेंसर हो चुकी हैं और अपूर्ण हैं।

सिक-क्षा : विवेकानंद इंस्टिट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज का यह स्ट्रीट प्ले यह दर्शाता है कि किस प्रकार उच्च शिक्षा सत्ता, राजनीति और योजनाओं के जरिए विचार विशेष को थोपने का नया माध्यम बन चुकी है।
एम्बिएंस प्रस्तुतियों ने भारत रंग महोत्सव में हमारी सांस्कृतिक विविधता का परिदृश्य पेश किया। इन प्रस्तुतियों में उन स्थानीय कला विधाओँ की प्रस्तुति दी जाती है जो कम प्रचलित हैं और तमाम राज्योँ राष्ट्रीय राजधानी में आते हैं। इनकी प्रस्तुति एनएसडी परिसर में ऑडिटोरियम में नाटकोँ की प्रस्तुति से पहले इंटरवल में होती है। आज के एम्बिएंस प्रस्तुतियों में फिशर फोक, फोक, बार्दवी और मणिपुरी रास शामिल थे।
फिशर फोक गोवा के मछुआरों का एक लोक नृत्य है। बार्दवी सिकला एक परम्परागत नृत्य है जिसकी प्रस्तुति असम में फसलोँ की कटाई के समय दी जाती है। मणिपुरी रास मणिपुरी संस्कृति का एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है जो राधा और कृष्ण के अमिट प्रेम को दर्शाता है।
कतिवन्नूर वीरन के ग्रुप लीडर श्री शशिकुमार वी ने इस सत्र में हिस्सा लिया, उनके साथ थिएटर समीक्षक श्री संगम पांडेय और श्री दीवान सिंह बजेली ने सवाल-जवाब के रोचक सत्र की शुरुआत की।
श्री शशिकुमार वी ने कहा कि, “तय्यम एक लोक परम्परा से सम्बंधित है और इससे जुडने के लिए किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। यह एक सामुदायिक चीज है और अधिक स्वाभाविक है। इसमे कलाकार कुछ ऐसे जुडे होते है जो सामजिक थेरेपी का स्रोत बन जाते हैं। तय्यम लोगोँ को समाधान और भावनात्मक राहत दिलाता है। इस बार एनएसडी में. हमने प्रस्तुति को साढे तीन घंटे में पूरा किया क्योंकि हमे समय के दायरे में बांध दिया गया था, वर्ना इसमे तीन दिन का समय लगता है।“

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