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मानवीय रिश्तों और उनकी मजबूरी के साथ कश्मीर की जटिलता को दर्शाती है फिल्म ‘नो फादर इन कश्मीर

फिल्म का नाम : ‘नो फादर इन कश्मीर’
फिल्म के कलाकार : सोनी राजदान, कुलभूषण खरबंदा, अंशुमन झा, जारा वेब, नताशा मागो, शिवम रैना, अश्विन कुमार
फिल्म के निर्देशक : अश्विन कुमार
रेटिंग : 3/5

निर्देशक अश्विन कुमार के निर्देशन में बनी फिल्म ‘नो फादर्स इन कश्मीर’ कश्मीर के 16 साल के 2 युवाओं की कहानी है जो अपने खोए हुए पिताओं को ढूंढ रहे हैं। उन्होंने घाटी में गायब या आर्मी द्वारा घर से उठा लिए गए लोगों की दास्तान को दिल छूने वाले अंदाज में बयान किया है। अश्विन इससे पहले इंशाअल्लाह फुटबॉल और इंशाअल्लाह कश्मीर बना चुके हैं। उनकी शॉर्ट फिल्म लिटल टेररिस्ट को ऑस्कर का नॉमिनेशन भी मिला था।

फिल्म की कहानी :
फिल्म की कहानी नूर (जारा वेब) की है 6 साल की नूर लंदन से अपनी मां (नताशा मागो) और होने वाले सौतेले पिता के साथ अपनी पैदाइशी जमीन कश्मीर में आती है। उसे बताया जाता है कि उसके अब्बा उसे छोड़ गये थे। मगर कश्मीर में दादी (सोनी राजदान) और दादा (कुलभूषण खरबंदा) के पास आने के बाद उसे पता चलता है कि उसके पिता मरे नहीं बल्कि गायब हो गये है। उसकी मुलाकात माजिद (शिवम रैना) से होती है। नूर की तरह उसका अब्बा भी बहुत दिनों से गायब है। अपने अब्बा के अतीत को खंगालती नूर अर्शिद माजिद के अब्बा के दोस्त (आश्विन कुमार) से टकराती है। अपने अब्बा को तलाशते हुए नूर को कश्मीर से जुड़ी कई सच्चाईयों का पता चलता है, जहां उसे अहसास होता है कि कश्मीर के गायब हुए मर्दों के कारण औरतों की हालात न तो विधवा जैसी है और न ही सधवा जैसी। इस सफर में उसका साथ देता है माजिद। माजिद और नूर को एक-दूसरे के करीब आते हैं। नूर अपने अब्बा की कब्र को ढूंढते हुए माजिद को कश्मीर के उस प्रतिबंधित इलाके में ले जाती है, जहां आम लोगों को जाने की मनाही है। जंगल और घाटी के इस रोमांचक सफर में नूर और माजिद रास्ता भटक जाते हैं। जब सुबह उनकी आंख खुलती है, देखते है आर्मी उन्हें पकड़ कर ले जा रहे, आर्मी के लोग उन्हें आतंकवादी मानकर बहुत टॉर्चर करते हैं। नूर तो अपनी ब्रिटिश नागरिकता के कारण वहां से निकल जाती है, मगर हामिद नहीं निकल पाता। पूरी कहानी को विस्तार से जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

अश्विन कुमार निर्देशन में मंझे हुए हैं। उन्होंने कश्मीर की जटिलता के साथ-साथ मानवीय रिश्तों और उनकी मजबूरी की दास्तान को पर्दे पर बहुत ही खूबसूरती से उतारा है। फिल्म का पहला भाग थोड़ा धीमा है, लेकिन दूसरा भाग में कहानी रफ्तार पकड़ती है। कश्मीर की वादियों की उदासी को पर्दे पर एकदम रियलिस्टक तरीके से उकेरा गया है।

फिल्म के दोनों लीड किरदारों जारा वेब और शिवम रैना का अभिनय काबिले तारीफ है। माजिद के रूप में शिवम रैना अपनी भूमिका में अच्छे दिखे हैं। दादा के रूप में कुलभूषण खरबंदा खूब जमे हैं। सोनी राजदान के हिस्से में ज्यादा सीन तो नहीं आते पर जितने भी हैं शानदार हैं। अश्विन कुमार ने फिल्म में अर्शिद के अहम किरदार में अपना बेस्ट दिया है। नताशा मागो, अंशुमन झा, माया सराओ, सुशील दहिया ने अपने किरदारों के हिसाब से ठीक काम किया है।

फिल्म क्यों देखें : यह फिल्म सहानुभूति और दया दर्शाती है। फिल्म अच्छी है, देखने में कोई हर्ज़ नहीं।

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