समलैंगिता पर आधारित है फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’
फिल्म का नाम : शुभ मंगल ज्यादा सावधान
फिल्म के निर्देशक : हितेश केवल्या
फिल्म के कलाकार : आयुष्मान खुराना, जितेन्द्र कुमार, गजराज राव, नीना गुप्ता
रिव्यू : 3/5
इंटरनेट ने सभी ‘सिंगल-रेडी-टू-मिंगल’ शख्स को आपकी उंगलियो पर लाकर रख दिया है, हाल ही में सोशल नेटवर्किंग गे डेटिंग ऐप्प ‘ब्लूड’ को भारत में लाॅन्च किया गया है। यह ऐप्प एलजीबीटीक्यूआई (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इन्टरटेक्स) समुदाय और उसके बारे में है। इसी समुदाय से संबंधित हमारे बीच बाॅलीवुड फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ रिलीज़ हुई है।
आनंद एल राय निर्मित और हितेश केवल्या द्वारा निर्देशित ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ का यह डायलॉग समलैंगिक कम्युनिटी की बेबसी और संघर्ष को दर्शाता है। आज भले ही कानून ने समलैंगिता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया हो, लेकिन समलैंगिक समुदाय को होमोफोबिया के रूप में अपने ही परिवारों से घृणा, तिरस्कार और रिजेक्शन सहना पड़ता है। फिल्म इस पॉइंट को साबित करने में सफल साबित होती है कि सिर्फ कानून बनाने से बात नहीं बनेगी, सामजिक तौर पर यह काउंसिलिंग होनी भी जरूरी है कि होमोसेक्शुऐलिटी कोई बीमारी नहीं बल्कि उपर वाला जिसे जैसा चाहता है, वैसा बनाता है और उपर वाले की बनावट पर सवाल खड़े करना ठीक नहीं है।
फिल्म की कहानी :
कहानी के शुरुआत में ही पता चल जाता है कि कार्तिक (आयुष्मान खुराना) गे है और वह अमन त्रिपाठी से प्यार करता है। उनका जद्दोजहद तब शुरू होता है, जब अमन की कजिन की शादी के दौरान अमन के पिता शंकर त्रिपाठी उन दोनों को ट्रेन में चुम्बन करते हुए देख लेते हैं। अमन के पिता अपने बेटे की होमोसेक्शुऐलिटी को समझ भी नहीं पाए थे कि शादी के दौरान दोनों के रिश्ते का सच सबके सामने आ जाता है। उसके बाद तो दोनों के प्यार में कई दीवारें खड़ी करने की कोशिश की जाती हैं।
कार्तिक को मारा-पीटा जाता है। संयुक्त परिवार में भाई, बहन चाचा-चाची के बीच मां (नीना गुप्ता) अमन को समझाने की कोशिश करती है कि इस ‘बीमारी’ का इलाज संभव है। मां पंडित जी से कर्मकांड करवा कर अमन का अंतिम संस्कार कर उसे नया जन्म देने की विधि भी करवाती है। और तो और पिता आत्महत्या की कोशिश और धमकी देकर अमन को शादी करने पर मजबूर भी कर देते हैं। पिता और परिवार के लिए अमन शादी करने को राजी हो जाता है। मगर कार्तिक लगातार अमन को समझाता रहता है कि उसे अपने प्यार के लिए आगे आना होगा? क्या कार्तिक और अमन अपनी सेक्शुऐलिटी के साथ परिवार की एक्सेप्टेंस हासिल कर पाते हैं? इसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
होमोसेक्शुऐलिटी पर इससे पहले भी कई फिल्में बनी हैं, मगर निर्देशक हितेश ने इसे बहुत ही मजेदार और मनोरंजक ढंग से दिखाया है। इससे पहले बनी कई फिल्मों में समलैंगिकों की सेक्शुऐलिटी पर ज्यादा फोकस किया गया था, जबकि इसमें उनकी पारिवारिक एक्सेप्टेंस के मुद्दे पर जोर दिया गया है। उन्होंने बताने की कोशिश की है कि प्यार का कोई लिंग नहीं होता। बैकड्रॉप में इलाहबाद जैसे छोटे शहर के बड़े से परिवार का निरंतर चलनेवाला क्या फिल्म को रिऐलिस्टिक होने के साथ-साथ कॉमिक रंग भी देता है।
फिल्म का फर्स्ट हाफ ज्यादा स्ट्रॉन्ग है। फिल्म के ‘शंकर त्रिपाठी बीमार बहुत बीमार, उस बीमारी का नाम होमोफोबिया है’, ‘उन्हें गे कहते हैं’ जैसे फिल्म के कई डायलॉग्स चुटीले हैं। संगीत की बात करें, तो तनिष्क बागची का संगीतबद्ध ‘गबरू’ रेडियो मिर्ची के टॉप ट्वेंटी में आठवें पायदान पर है जबकि ‘अरे प्यार कर ले’ जैसे रिमिक्स को भी काफी पसंद किया है।
कार्तिक के रूप में आयुष्मान खुराना ने गे चरित्र को न केवल करने का रिस्क उठाया बल्कि उसे बेहद मजबूती से अंजाम दिया। उनके अभिनय की सबसे बड़ी खूबी यही है कि उनका समलैंगिक चरित्र दर्शक को कहीं भी विरक्त नहीं करता। जितेंद्र कुमार की तारीफ करनी होगी कि अमन के रूप में वे कहीं भी उन्नीस साबित नहीं हुए। उन्होंने अपनी भूमिका को बेहद सटल अंदाज में निभाया है। माता-पिता के रूप मं नीना गुप्ता और गजराज राव की जोड़ी और केमेस्ट्री ने खूब मनोरंजन किया है। नीना और गजराज के हिस्से में ‘मां के पास दिल होता है’, ‘हां बाप तो बैटरी से चलता है’ जैसे फनी और इमोशनल संवाद भी आए हैं। सपॉर्टिंग कास्ट में कजिन गूगल के रूप में मानवी गागरू, चाचा के रोल में मनुश्री चड्ढा और चाची के किरदार में सुनीता राजवर ने खुलकर हंसने पर मजबूर किया है।
फिल्म क्यों देखें? : सभी लोगों को यह फिल्म एक बार ज़रूर देखनी चाहिए।